देश भर में लागू हुआ रियल एस्टेट कानून (Real estate regulator bill)

रियल एस्टेट रेगुलेटर कानून एक मई से लागू हो गया है।

क्या है इस कानून में?

  • इससे मकान खरीदने वालों को सहूलियत होगी। वहीं, रियल एस्टेट डेवलपरों को तय समय में फ्लैट या मकान बनाकर देना होगा। 
  •  वे मनमाने तरीके से खरीदारों पर नई-नई शर्तें नहीं थोप सकेंगे।
  • कानून के आधार पर डेवलपर की जिम्मेदारी होगी कि वायदे के अनुसार वह तयशुदा वक्त में बायर्स को फ्लैट का कब्जा सौंप दें। डेवलपर अगर वादाखिलाफी करता है तो उस पर कार्रवाई होगी।
  • डेवलपर बीच में निर्माण सामग्री महंगी होने का हवाला देकर फ्लैट की कीमत नहीं बढ़ा सकेगा।
  •  खास बात यह कि सारी प्रक्रिया पर रेगुलेटर की नजर होगी। हालांकि, रियल एस्टेट (रेगूलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट लागू होने के बाद गेंद राज्यों के पाले में पहुंच जाएगी। 
  • केंद्र के कानून को मॉडल मानते हुए राज्य अपनी जरूरतों के हिसाब से थोड़ा फेरबदल करते हुए अपने कानून बनाएंगे। Real estateनोटिफिकेशन जारी होने के एक साल के भीतर यानी 31 अप्रैल 2017 तक राज्य सरकारों को रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन करना होगा।
  • जिन राज्यों में पहले से कानून हैं, वहां नया कानून लागू करना करना होगा। जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक केंद्र और राज्यों को अधिकतम छह माह के भीतर यानी 31 अक्टूबर 2016 से पहले नियम बनाने होंगे। 
  •  खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए एक साल के भीतर रियल एस्टेट रेगुलेटर बनाए जाने हैं। उपभोक्ताओं और रियलटी कंपनियों की शिकायतें 60 दिन के भीतर हल की जाएंगी।
    * कंपनियों को 15 महीने में प्रोजेक्ट पूरा करना होगा। इसके साथ ही एक साल के भीतर अपीलीय ट्रिब्यूनल भी बनाए जाने हैं। ट्रिब्यूनल को 60 दिनों के भीतर दावों का निपटान करना होगा।

=>कॉरपेट एरिया पर होगी बिक्री :-

- नए कानून के अनुसार डेवलपर को प्रोजेक्‍ट की बिक्री सुपर एरिया पर नहीं कॉरपेट एरिया पर करनी होगी। डेवलपर को प्रोजेक्‍ट का पजेशन देने के तीन महीने के अंदर रेसिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन को हैंडओवर करना होगा।

=> होगा सेंट्रल रेगुलेटर :-

- रियलएस्‍टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट के प्रावधान के अनुसार इस सेक्‍टर के लिए एक सेंट्रल रेगुलेटर होगा। यह प्रत्‍येक राज्य के रेग्युलेटर की देखरेख करेगा और उनके कामों की समीक्षा करेगा।

=>छोटे बिल्डर भी होंगे रेगुलेट 

- नए कानून में प्रोजेक्‍ट एरिया 1,000 वर्ग मीटर से घटाकर 500 वर्ग मीटर कर दिया गया है। यानी, आठ फ्लैट का प्रोजेक्‍ट भी रेगुलेटर की निगरानी के दायरे में आएगा। 

 संसद से पास कानून में 500 वर्ग मीटर से बड़े प्लॉट या 8 फ्लैट वाली सोसायटी को रियल एस्टेट रेगुलेटर अथॉरिटी के पास रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हालांकि, राज्य सरकारों के पास अधिकार होगा कि वे प्लॉट साइज और फ्लैटों की संख्या कम या ज्यादा कर सकते हैं।

=>स्ट्रक्चर बदलने पर लेनी होगी 66% खरीदारों की मंजूरी 

- नए कानून के अनुसार, डेवलपर और खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए जमीन का बीमा करना होगा। प्रोजेक्‍ट का स्‍ट्रक्‍चर बदलने के लिए डेवलपर को 66% यानी दो-तिहाई खरीददारों की सहमति लेनी होगी। इसके बिना डेवलपर प्रोजेक्ट के स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं कर सकेगा।

=> तो डेवलपर को होगी तीन साल तक की जेल

- नएकानून के मुताबिक कब्जा देने देरी होने या कंस्‍ट्रक्‍शन में दोषी पाए जाने पर डेवलपर को ब्‍याज और जुर्माना देना होगा।

- अगर कोई डेवलपर खरीदारों के साथ धोखाधड़ी का दोषी पाया जाता है, तो नए बिल के अंतर्गत उसे तीन साल की सजा मिलेगी। 

 

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