=>सफल परिक्षण का विश्लेषण और महत्त्व
- मान्यता है कि अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र व परमाणु शक्ति संपन्नता युद्ध टालने का सबब बनती है। तर्क दिया जाता है कि भारत-पाक के बीच चरम तनाव के बाद युद्ध का टलना दोनों देशों का परमाणु शक्ति संपन्न होना ही है।
- शायद यही वजह है कि हाल के दिनों में सफलतापूर्वक छोड़ी गई भारत की इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-पांच को भारत ने शांति अस्त्र नाम दिया है। यह हमारे मिसाइल वैज्ञानिकों की बड़ी कामयाबी है।
- लगभग छह हजार किलोमीटर तक मारक क्षमता रखने वाली मिसाइल चीन की चुनौतियों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। अब तक की कम दूरी की मारक अग्नि परिवार की एक, दो, तीन, चार तथा धनुष व पृथ्वी मिसाइलें पाकिस्तान की चुनौती के मुकाबले को ध्यान में रखकर तैयार की गई थीं। अब एशिया व यूरोप इस मिसाइल के दायरे में होंगे।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मिसाइल परमाणु शस्त्र ले जाने में सक्षम है और शत्रु की पकड़ में आने से बचने के लिए उन्नत तकनीक से लैस है।
- डिफेंस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी डीआरडीओ द्वारा तैयार मिसाइल 85 फीसदी स्वदेशी है।
- सतह से सतह में मार करने वाली इस मिसाइल के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत सुपर एक्सक्लूसिव क्लब में शामिल हो गया है, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस व रूस जैसे देश शामिल हैं।
- ध्यान रहे कि भारत इसी साल 35 देशों वाले मिसाइल टेक्नॉलाजी कंट्रोल रिजीम यानी एमटीसीआर ग्रुप में शामिल हुआ है। दरअसल एमटीसीआर मानवरहित परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइलों की निगरानी करता है।
- भारत पहले ही सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस से लैस है। कुछ समय बाद अग्नि-पांच को भारतीय सेना में शामिल कर लिया जायेगा। हालांकि अभी अग्नि-छह का परीक्षण प्रारंभिक दौर में है।
- यद्यपि डीआरडीओ अग्नि-पांच को पांच हजार आठ सौ किलोमीटर तक सटीक मारक क्षमता वाला अस्त्र बता रहा है, वहीं चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि अग्नि-पांच की क्षमता आठ हजार किलोमीटर तक है।
- बहरहाल, अग्नि-पांच का सफल परीक्षण जहां देश के वैज्ञानिकों की मेधा को प्रतिस्थापित करता है, वहीं क्षेत्र में शक्ति संतुलन कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस उपलब्धि पर हर कोई भारतीय गर्व कर सकता है कि हमने यह लक्ष्य स्वदेशी तकनीक और भारतीय वैज्ञानिकों की प्रतिभा से हासिल किया।
- नि:संदेह इस परीक्षण से भारत की मिसाइल शक्ति में वृद्धि ही हुई है। जब यह सेना में शामिल होगी तो सेना का मनोबल भी बढ़ेगा। वक्त के साथ अब परंपरागत युद्ध का स्थान आधुनिक तकनीक व परमाणु शक्ति ने ले लिया है। हम अपनी संप्रभुता व स्वतंत्रता की रक्षा तभी कर पायेंगे जब उन्नत अस्त्र-शस्त्रों से लैस होंगे।