33 साल पहले भारतीय सेना के इस बेहद अहम ऑपरेशन को शौर्य और पराक्रम के मिसाल के तौर पर देखा जाता है. वर्ष 1984 में सियाचिन ग्लैशियर को फतह करने के उद्देश्य से इस ऑपरेशन को लॉन्च किया गया था.
- सियाचिन में भारतीय फौजों की किलेबंदी इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान चाह कर भी इसमें सेंध नहीं लगा सकता. दरअसल, ये सफलता है 1984 के उस मिशन मेघदूत की, जिसे भारतीय सेना ने सियाचिन पर कब्जे के लिए शुरू किया था.
भारतीय सेना का अहम ऑपरेशन
भारतीय सेना का यह ऑपरेशन इस लिहाज से बहुत अहम है क्योंकि पहली बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर फतह करने के लिए यह ऑपरेशन किया गया था. सेना की इस कार्रवाई का नतीजा रहा कि पूरे सियाचिन ग्लैशियर पर भारत का कब्जा हुआ और सबसे ऊंची चोटी पर भी तिरंगा लहराने लगा.
1984 में सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत हुआ शुरू
80 के दशक से ही पाकिस्तान ने सियाचिन पर कब्जे की तैयारी शुरू कर दी थी. बर्फीले जीवन के तजुर्बे के लिए 1982 में भारत ने भी अपने जवानों को अंटार्कटिका भेजा. 1984 में पाकिस्तान ने लंदन की कंपनी को बर्फ में काम आने वाले साजो-सामान की सप्लाई का ठेका दिया. इस पर भारत ने 13 अप्रैल, 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू कर दिया. पाकिस्तान 17 अप्रैल से सियाचिन पर कब्जे का ऑपरेशन शुरू करने वाला था. हालांकि भारत ने तीन दिन पहले ही कार्रवाई कर उसे हैरान कर दिया, लेकिन ये ऑपरेशन आसान नहीं था.
भारतीय सैनिकों को वायुसेना की मदद से पहुंचाया गया
ऑपरेशन मेघदूत के तहत भारतीय सैनिकों को वायुसेना के II-76, AN-12 और AN-32 विमानों से ऊंचाई वाली एयरफील्ड तक पहुंचाया गया. वहां से MI-17, MI-8, चेतक और चीता हेलीकॉप्टरों के जरिए सैनिकों को ग्लेशियर की उन चोटियों तक पहुंचा दिया गया. जब पाकिस्तानी फौज इस इलाके में पहुंची तो उन्हें पता चला कि करीब 300 भारतीय जांबाज पहले से ही सियाचिन, सलतोरो ग्लेशियर, साई-लॉ, बिलाफोंड लॉ दर्रे पर कब्जा जमाए बैठे हैं. तब से भारतीय फौज सियाचिन की दुर्गम पहाड़ियों पर हर तरह के मुश्किल हालातों का सामना करती हुईं डटी हुई है.
दुनिया का सबसे ठंडा और ऊंचा रणक्षेत्र
दुनिया के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं. भारत ने यह महसूस किया कि सियाचिन पर भारत को पैनी नजर बनाए रखनी होगी.