मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) से सरकार और रिजर्व बैंक के बीच का समीकरण सुधरता है तो इससे सबका भला होगा

The Asian Age  का संपादकीय

सन्दर्भ :-अभी तक सरकार और रिजर्व बैंक ब्याज दरों को लेकर अक्सर टकराव की मुद्रा में रहे हैं. 
 
Why in news:
आने वाले चार अक्टूबर को पहली बार नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) नई मौद्रिक नीति का ऐलान करेगी. छह सदस्यों की इस समिति में तीन प्रतिनिधि सरकार के हैं और तीन रिजर्व बैंक के. 

  • सरकार ने अपने तीन प्रतिनिधियों के नामों की घोषणा की है. रिजर्व बैंक यह काम काफी पहले कर चुका है. अगर किसी मुद्दे पर सदस्यों की राय बराबरी से बंटी तो निर्णायक वोट आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का होगा. 
  • अभी तक सारी शक्ति गवर्नर के पास ही रहती थी. रिजर्व बैंक का मुखिया इससे पहले वजूद में रही उस पांच सदस्यीय तकनीकी परामर्श समिति की सिफारिशों की उपेक्षा कर सकता था जो उसे मौद्रिक नीति के ऐलान से पहले ब्याज दरों पर 'इनपुट' देती थी.
  • एमपीसी सरकार और रिजर्व बैंक के बीच जरूरी पुल की तरह काम करेगी. अभी तक ये दोनों अक्सर ब्याज दरों को लेकर टकराव की मुद्रा में रहते आए हैं. दोनों के उद्देश्य अलग रहे.
  •  सरकार का जोर विकास पर रहा और रिजर्व बैंक का महंगाई को कम रखने पर. इसलिए बैंक हमेशा मौद्रिक नीति अपने हिसाब से बनाता रहा. अक्टूबर 2012 में तो तत्कालीन गवर्नर डी सुब्बाराव और यूपीए सरकार में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बीच टकराव इस हद तक बढ़ गया था कि चिंदबरम ने कह दिया कि विकास भी महंगाई जितनी ही बड़ी चुनौती है और अगर सरकार को इस चुनौती से निपटने के रास्ते पर अकेले चलना है तो वह अकेले ही चलेगी.
  • टकराव की इसी पृष्ठभूमि में एमपीसी का गठन हुआ था. अब देखना होगा कि क्या यह नई कवायद विकास बनाम महंगाई की इस बहस को सुलझा पाती है या नहीं. कइयों का मानना है कि महंगाई और विकास को सिक्के के दो पहलुओं की तरह नहीं बल्कि एक दूसरे के साथ चलने वाले कारकों की तरह देखा जाना चाहिए.
  •  पिछले गवर्नर रघुराम राजन हमेशा कहते रहे कि महंगाई की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ती है जिन्हें आवास, खाने, दवाइयों और शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ता है. 
  • आवास जैसे मुद्दे सरकार की जिम्मेदारी हैं और अगर इन पर उसका नियंत्रण नहीं है या वह कमजोर तबकों के लिए सस्ते विकल्प उपलब्ध नहीं करवा पाती तो यह उसकी असफलता है. दूसरी तरफ यह भी ध्यान देना होगा कि अगर अपेक्षित विकास नहीं होगा तो वे रोजगार के अवसर भी पैदा नहीं होंगे जिनसे लोगों की क्रयशक्ति बढ़ती है.
  • उम्मीद करनी चाहिए कि एमपीसी का गठन विकास बनाम महंगाई के इस मुद्दे को सुलझा सकेगा और सरकार और रिजर्व बैंक के बीच तालमेल को उस दिशा में ले जा सकेगा जिसमें सबका भला हो. आशा यह भी है कि इससे सरकार समाज के कमजोर तबके के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति पहले से ज्यादा संवेदनशील बनेगी.

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download