CONTEXT : सूक्ष्म,लघु और मध्यम यानी एमएसएमई क्षेत्र के लिए सरकार ने जिस तीन लाख करोड़ रुपये के गारंटी फ्री लोन का ऐलान किया(कोविड-19 की मार से बुरी तरह जख्मी अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने के लिए एमएसएमई क्षेत्र के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के लोन पैकेज), उसमें इसके इस रवैये की झलक साफ दिख रही थी.
- उम्मीद की जा रही है कि यह बेरोजगारी के महासंकट को खत्म करने में मददगार साबित होगा. बाजार में मांग पैदा करेगा और प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के ‘विजन’ को नई ऊंचाई तक ले जाएगा. लेकिन इस क्षेत्र के हालात ऐसे नहीं है कि सिर्फ एक गारंटी फ्री लोन पैकेज से तस्वीर बदल जाएगी
FACT
- एमएसएमई मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट (2018-19) के मुताबिक देश में 6.34 करोड़ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग हैं. (पुराने मानकों के हिसाब से)
- इनमें से 51 फीसदी ग्रामीण इलाकों में मौजूद हैं और 49 फीसदी शहरी क्षेत्रों में. कुल मिलाकर यह क्षेत्र 11 करोड़ लोगों को रोजगार देता है. हालांकि कुल रोजगार में 55 फीसदी हिस्सेदारी शहरी इलाकों की है.
- देश की जीडीपी में एमएसएमई क्षेत्र की हिस्सेदारी 30 फीसदी है.
- जीवीए (GVA) में इसकी हिस्सेदारी 31.8 फीसदी है.
- देश से होने वाला 48 फीसदी निर्यात यह क्षेत्र करता है.
MISSING MIDDLE SYNDROME & SOME OTHER FACT
- 6.34 करोड़ इकाइयों वाले एमएसएमई क्षेत्र में अगर 11 करोड़ लोग काम कर रहे हैं तो
- 99.5 फीसदी इकाइयां माइक्रो यानी सूक्ष्म उद्योग (मौजूदा परिभाषा के हिसाब से 25 लाख रुपये से कम टर्नओवर) के दायरे में आती हैं. एमएसएमई क्षेत्र में छोटे और मझोले उद्योग सिर्फ 0.5 फीसदी है. लेकिन रोजगार में इसकी हिस्सेदारी 5 करोड़ से ज्यादा है.
- यानी कुल 11 करोड़ रोजगार में से आधे से अधिक सूक्ष्म (Micro) की 99.5 फीसदी इकाइयों में बंटा है. इससे साफ हो जाता है कि सूक्ष्म उद्योग की इकाई एक या दो लोग चला रहे हैं.
इस तरह यह मिथक टूट जाता है कि एमएसएमई क्षेत्र में भारी तादाद में लोगों को रोजगार मिला हुआ. दरअसल यह क्षेत्र भी कृषि क्षेत्र की तरह छिपी हुई बेरोजगारी का शिकार है, जिसे हमारे नीति-निर्माता देखकर भी नजरअंदाज कर रहे हैं.
IS LOAN A SOLUTION
सरकार को उम्मीद है कि लोन पैकेज के ऐलान के बाद एमएसएमई क्षेत्र की इकाइयां लोन लेकर अपना काम आगे बढ़ाएंगीं, लेकिन इस वक्त अर्थव्यवस्था बड़ी तेजी से मंदी की गिरफ्त में फंसती जा रही है.
दरअसल मरीज को जब इलाज पर भरोसा न हो तो वह दवा क्यों लेना चाहेगा? सरकार को इस क्षेत्र का मर्ज समझ में नहीं आ रहा है. भारत में छोटे कारोबार और माइक्रो उद्योगों के लिए उद्यमी बैंकों के पास नहीं जाते. इसके बजाय वह रिश्तेदारों और प्राइवेट लैंडर्स से फंड लेते हैं.
बैंकों की नौकरशाही और लोन वसूली का तरीका उन्हें रास नहीं आता. बैंक भी बढ़ते एनपीए के डर से इन्हें लोन देने में आनाकानी करते हैं. ऐसी खबरों का आना शुरू हो गया है, जिसमें कहा गया है कि सरकार की ओर से तीन लाख करोड़ रुपये के लोन की गारंटी लेने के बाद भी बैंक लोन देने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.
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Root of the Problem
- लॉकडाउन की तरह ही अचानक देशहित और जनहित के नाम पर लिए गए इस फैसले ने एमएसएमई क्षेत्र की कमर तोड़ कर रख दी. देखते ही देखते इस क्षेत्र में काम करने वालों के रोजगार उजड़ गए, बाजार की लिक्विडिटी बुरी तरह सूख गई.
- उद्योग चलाने वाले और कामगार दोनों हाशिये पर चले गए. खुद रिजर्व बैंक का अध्ययन बताता है कि नोटबंदी ने इस क्षेत्र की लिक्विडिटी को बुरी तरह चोट पहुंचाई। वहीं जीएसटी नियमों की वजह से परिचालन समेत दूसरी लागतें बढ़ गईं.
- लॉकडाउन की तरह ही अचानक देशहित और जनहित के नाम पर लिए गए इस फैसले ने एमएसएमई क्षेत्र की कमर तोड़ कर रख दी. देखते ही देखते इस क्षेत्र में काम करने वालों के रोजगार उजड़ गए, बाजार की लिक्विडिटी बुरी तरह सूख गई. उद्योग चलाने वाले और कामगार दोनों हाशिये पर चले गए. खुद रिजर्व बैंक का अध्ययन बताता है कि नोटबंदी ने इस क्षेत्र की लिक्विडिटी को बुरी तरह चोट पहुंचाई। वहीं जीएसटी नियमों की वजह से परिचालन समेत दूसरी लागतें बढ़ गईं.
Need to focus on Big Manufacturing
- रोजगार और निर्यात बढ़ाने के लिए सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग पर निर्भरता खतरनाक है. भारत को बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग की जरूरत है.
- मैन्युफैक्चरिंग में बड़े निवेश सरकार ही कर सकती है और इसी से बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होंगे. यह कहना आसान है कि सरकार को कारोबार नहीं करना चाहिए और सब कुछ बाजार के भरोसे छोड़ देना चाहिए लेकिन भारत जैसे देश में वो वक्त अभी नहीं आया है.
- इस मामले में चीन से सीखने की जरूरत है जो अपनी सार्वजनिक कंपनियों का पूरा ख्याल रखता है. इस वजह से वह बड़े पैमाने पर इन उद्योगों में लोगों को रोजगार देने में भी कामयाब है.
- दरअसल बड़े उद्योग ही छोटे और मझोले उद्योग के बाजार हैं. जब भी बड़े उद्योग डगमगाते हैं, छोटे उद्योग औंधे मुंह गिर पड़ते हैं. मसलन, अगर बड़ी कार कंपनियों में उत्पादन नहीं होगा तो पार्ट्स बनाने वाले छोटे उद्योगों पर इसका असर पड़ना लाजमी है.
- एमएसएमई क्षेत्र को रफ्तार देने का अब ही एक रास्ता बचा है और वह है मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को जीडीपी के 25 फीसदी तक ले जाने के लक्ष्य पर तेजी से अमल. बड़े उद्योगों की मांग बढ़ेगी तो एमएसएमई क्षेत्र भी चल पड़ेगा. वरना एमएसएमई का जाप करते रह जाएंगे और मौका हाथ से निकल जाएगा.
Reference: http://thewirehindi.com/