छोटे उद्योगों की चिंता करे सरकार

Indian  Economy is in downturn phase and to revive its investment is needed but that have to be directed to incentivize MSME sector which is not just growth propulsive but will also boost JOBS

#Dainik_Jagran

केंद्र सरकार ने मन बनाया है कि वर्तमान में गहरा रही आर्थिक सुस्ती को तोड़ने के लिए सरकारी खर्चों मे वृद्धि की जाएगी। सरकार के इस मंतव्य का स्वागत है, परंतु यह कदम सफल तब ही होगा जब खर्चों की दिशा आम आदमी की ओर होगी।  सरकार को चाहिए कि वह खर्च बढ़ाए, आम आदमी के लिए रोजगार बनाए और अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाए। सरकार इस दिशा में सोच रही है तो यह प्रसन्नता का विषय है।

मंदी का एक और  कारण है ऑटोमेटिक यानी स्वचालित मशीनों से उत्पादन। सरकारी नीति है कि आधुनिक ऑटोमेटिक मशीनों से उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाए जिससे हम विकसित देशों की बराबर गुणवत्ता वाला माल बना सकें, लेकिन हमारे देश की परिस्थिति अलग है। यहां बड़ी जनसंख्या है जिसे रोजगार उपलब्ध कराना है। वर्तमान में रोजगार की दिशा विपरीत है।

Decreasing wages of labours

विश्लेषकों का मानना है कि वर्ष 2013 से श्रमिकों की वास्तविक दिहाड़ी में गिरावट रही है। दिहाड़ी में गिरावट का अर्थ है रोजगार कम बन रहे हैं और श्रम की मांग कम हो रही है। श्रम की मांग कम होने का प्रमुख कारण ऑटोमेटिक मशीनों का उपयोग है। इन मशीनों का दुष्प्रभाव छोटे उद्योगों पर भी पड़ता है। ऑटोमेटिक मशीनों के उपयोग से बड़ी कंपनियों का माल सस्ते में उपलब्ध हो जाता है और छोटे उद्योग पिटते हैं। पहले हर छोटे शहर में डबलरोटी बनाने के कारखाने होते थे। अब बड़े शहरों में ऑटोमेटिक मशीन से बनी डबलरोटी की आपूर्ति हो रही है। छोटे कारखाने बंद हो रहे हैं। इस समस्या का निवारण विशेष प्रकार के सरकारी खर्चों में वृद्धि से ही हो सकता है। जैसे बुलेट ट्रेन में सरकारी खर्च विस्तृत अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी है, परंतु छोटे उद्योगों के लिए वह निष्प्रभावी है, क्योंकि आमतौर पर उन्हें अहमदाबाद से मुंबई कम ही जाना होता है।

Investment to boost Micro small & Medium Enterprises

यही निवेश यदि छोटे शहरों में सड़क, बिजली और इंटरनेट उपलब्ध कराने में किया जाता तो इसका छोटे उद्योगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता। जैसे गांव की सड़क सुधर जाने से दूध वाले के लिए दूध को शहर पहुंचाना आसान हो जाता और वह ऑटोमेटिक डेरी से प्रतिस्पर्धा में खड़ा रह सकता है। तब आम आदमी की आमदनी बढ़ती, बाजार में मांग बढ़ती और मंदी छंट सकती थी। इसलिए केवल सरकारी खर्च बढ़ाने से मंदी नहीं टूटेगी। मंदी को तोड़ने के लिए आम आदमी के हित से जुड़े खर्चों को बढ़ाना होगा।

मंदी जैसे हालात के लिए तीसरा कारण नोटबंदी और जीएसटी है। सरकार का उद्देश्य है कि अर्थव्यवस्था में कालेधन के चलन पर रोक लगे। यह पूर्णतया स्वीकार्य है। नोटबंदी के कारण उपभोक्ताओं का मुद्रा पर विश्वास हिल गया है। गृहणियां कुछ रकम नकद में छुपा कर रखती हैं ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें किसी से याचना करनी पड़े। उनके द्वारा वर्षों से संचित यह रकम उनकी अलमारी से निकल कर बैंक में जमा हो गई। गृहणियां खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी हैं।

उन्होंने पुन: बचत करके धन संचय करना शुरू किया है और तात्कालिक खर्चों मे कटौती की है। इससे बाजार में मांग घटी है। दोबारा दो हजार रुपये के नोटों का संचय करने में उन्हे भरोसा नही रह गया है। उन्हें डर है कि सरकार पुन: इन नोटों को बंद कर सकती है। इसलिए उन्होंने सोना खरीदना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि पिछले वर्ष के बनिस्बत देश में इस साल सोने की मांग दोगुनी हो गई है। सोने की खरीद से देश की आय दूसरे देशों को जा रही है जहां से हम सोने का आयात कर रहे है। इससे देश की अर्थव्यवस्था उसी तरह कमजोर हो गई है जैसे कार के टायर में हवा कम होने से वह धीरे चलने लगती है।
नोटबंदी और जीएसटी का छोटे उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। छोटे उद्योगों का संचालन मुख्य रूप से नकदी में होता था जैसे वाराणसी का बुनकर साड़ी नकद बेचता था। नोटबंदी के कारण छोटे उद्योगों का ढांचा दबाव मे गया है। इस अवधि में उनके कुछ ग्राहक स्थाई रूप से दूसरे माल को पसंद करने लगे। जैसे बनारस की साड़ी दो माह तक उपलब्ध होने के कारण दुकानदार ने स्थाई रूप से सूरत की साड़ी बेचना शुरू कर दिया। जीएसटी के चलते छोटे उद्योगों पर महीने में तीन रिटर्न भरने का बोझ पड़ा है। इससे उनकी बड़े उद्योगों से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता घटी है। तमाम छोटे उद्योगों के मालिकों और कर्मियों की आय घटी है जिसके कारण बाजार में माल की मांग घटी है। मांग में यह गिरावट पूरी अर्थव्यवस्था मे फैल गई है, बिल्कुल वैसे ही जैसे पानी पर तेल फैलता है।

नोटबंदी और जीएसटी से आई मंदी का हल सरकारी खर्च में वृद्धि से हासिल नहीं होगा। सरकारी खर्च बढ़ाने से छोटे उद्योगों को राहत कम ही मिलेगी, क्योंकि सरकार द्वारा बड़ी फैक्ट्रियों द्वारा उत्पादित माल को अधिक खरीदा जाता है। इन समस्याओं का हल है कि सरकार जनता को आश्वस्त करे कि नोटबंदी दोबारा नहीं की जाएगी। साथ ही छोटे उद्योगों के लिए जीएसटी को सरल बनाया जाए। मंदी पर प्रहार करने का यह प्रमुख उपाय है। सरकार को चाहिए कि वह आम आदमी के लिए हितकारी बुनियादी संरचना जैसे झुग्गी तक सड़क निर्माण में खर्च बढ़ाए तो भी मंदी टूट सकती है। इन्हें जितनी जल्दी अपनाया जाए उतना ही बेहतर होगा।

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