SOME FACTS
- इस बार पूरे देश में 29.19 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ है। यह आबादी की जरूरत से 7 करोड़ टन ज्यादा है।
- मध्य-प्रदेश में भी इस साल गेहूं की जबरदस्त पैदावार हुई है। समर्थन मूल्य पर 1 करोड़ 25 लाख 88 हजार 986 टन गेहूं खरीदा जा चुका है। लेकिन इसके भंडारण का संकट पैदा हो गया है।
- करीब 11 लाख टन गेहूं खुले में पड़ा है। निसर्ग तूफान के प्रभाव के चलते हुई बारिश से खुले में पड़ा गेहूं बड़ी मात्रा में खराब हो गया है। सरकार का दावा है कि महज 0.13 प्रतिशत गेहूं ही खराब हुआ है। इस भीगे गेहूं का भी सुखाकर भंडारण किया जा रहा है।
- FCI की कुल भंडारण क्षमता बमुश्किल 738 करोड़ टन है। इसमें किराए के भंडार गृह भी शमिल हैं। यदि सीडब्ल्यूसी और निजी गोदामों को भी जोड़ लिया जाए तो यह क्षमता 12.5 करोड़ टन अनाज-भंडारण की है।
WHY THE PROBLEM
दरअसल, पूरे देश में इस बारिश से गेहूं भीगा है। देश के गोदाम पहले से ही भरे पड़े हैं। मध्य-प्रदेश के गोदामों में ही गेहूं, चना, मूंग, धान सहित दो करोड़ टन अनाज भरा पड़ा है। अतिरिक्त अनाज को भरने के लिए न तो बोरों का प्रबंध है और न ही गोदामों में जगह?
देश में किसानों की मेहनत और जैविक व पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने के उपायों के चलते कृषि पैदावार लगातार बढ़ रही है। हरियाणा-पंजाब ही गेहूं उत्पादन में अग्रणी नहीं हैं, अब मध्य-प्रदेश, बिहार, उत्तर-प्रदेश और राजस्थान में भी गेहूं की रिकार्ड पैदावार हो रही है। इसमें धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, दालें और मोटे अनाज व तिलहन शामिल हैं। इस पैदावार को 2020-21 तक 28 करोड़ टन तक पहुंचाने का सरकारी लक्ष्य था, जो इस बार 29.19 करोड़ टन अनाज पैदा करके पूरा कर लिया गया है। लेकिन पूरा देश बारदाना और इसके भंडारण के संकट से जूझ रहा है। बारदाना उपलब्ध कराने की जवाबदारी केंद्र सरकार की है, लेकिन यह कोई बाध्यकारी नहीं है। राज्य सरकारें चाहें तो वे भी बारदाना खरीद सकती हैं।
SOME BASIC FACTS
- न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की पूरे देश में एक साथ खरीद, भंडारण और फिर राज्यवार मांग के अनुसार वितरण का दायित्व भारतीय खाद्य निगम के पास है।
- जबकि भंडारों के निर्माण का काम केंद्रीय भण्डार निगम संभालता है। इसी तर्ज पर राज्य सरकारों के भी भण्डार निगम हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आजादी के 72 साल बाद भी बढ़ते उत्पादन के अनुपात में केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर अनाज भंडारण के मुकम्मल इंतजाम नहीं हुए हैं।
किसानों के वोट के लालच में राज्य सरकारें जिस हिसाब से समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद कर रही हैं, उस कारण कई करोड़ टन अतिरिक्त अनाज खरीद लिया जाता है। नतीजतन समुचित भंडारण नामुमकिन हो जाता है। केन्द्र सरकार यदि दूरदृष्टि से काम लेती तो गोदामों में पहले से भरे अतिरिक्त अनाज को निर्यात करने की छूट दे सकती थी? इससे जहां गोदाम खाली हो जाते, वहीं व्यापारियों को दो पैसे कमाने का अवसर मिलता? यदि इसी अनाज को पंचायत स्तर पर मध्याह्न भोजन, बीपीएल एवं एपीएल कार्डधारियों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए स्थानीय स्तर पर ही सस्ती दरों में उपलब्ध करा दिया जाता तो भंडारण की समस्या कम हो जाती? किंतु ऐसा लगता है सड़े अनाज से शराब बनाने वाली कंपनियों की राह खोली जा रही है।
भंडारण की ठीक व्यवस्था न होने के कारण कई साल से डेढ़ से दो लाख टन अनाज खराब हो रहा है। इस अनाज से एक साल तक दो करोड़ से भी ज्यादा लोगों को भोजन कराया जा सकता है। अनाज गोदामों की कमी की बजाय भंडारण में बरती जाने वाली लापरवाहियों के चलते भी होता है। दरअसल, कई मर्तबा एफसीआई अपने गोदाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों को किराए पर उठाने को दे देती है। दरअसल, कृषि एवं खाद्य आपूर्ति मंत्रालय की अनाज भंडारण से लेकर वितरण तक की नीतियां परस्पर विरोधाभासी हैं। यदि भारतीय खाद्य निगम विकेंद्रीकृत खाद्य नीति अपनाए तो ग्राम स्तर पर भी अनाज भंडारण के श्रेष्ठ उपाय किए जा सकते हैं। स्थानीय स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा में ऐसी अनूठी भंडारण की तकनीकें प्रचलन में हैं, जिनमें रखा अनाज बारिश, बाढ़, चूहों व कीटाणुओं से बचा रहता है। अनाज-भंडारण की एक नई तकनीक भी कुछ साल पहले ईजाद हुई है। इस तरकीब से वायुरहित ऐसे पीपे (सोलो बैग) तैयार किए गए हैं, जिनमें अनाज का भंडारण करने से अनाज पानी व कीटों से शत-प्रतिशत सुरक्षित रहता है। गांव में अनाज खरीदकर एफसीआई उसके भंडारण की जिम्मेदारी किसानों को सौंप सकती है। सरकार प्रति वर्ष करीब 584 रुपए प्रति क्विंटल खाद्यान्न, फल और सब्जियों के रखरखाव पर खर्च करती है। लेकिन भंडारण में किसान की कोई भूमिका तय नहीं है। बहरहाल, पंचायत स्तर पर भंडारण को नीतिगत मूर्त रूप दिया जाता है तो कालाबाजारी और भ्रष्टाचार की आशंकाएं भी नगण्य रह जाएंगी।
REFERENCE: https://www.dainiktribuneonline.com/