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आखिरकार, नोटबंदी के पूरी तरह से विफल (failure of demonetisation) रहने पर रिजर्व बैंक ने भी आधिकारिक रूप से मोहर लगा दी। महीनों तक टालमटोल करने के बाद, आखिरकार केंद्रीय बैंक ने उस सचाई को विधिवत स्वीकार कर लिया, जो वैसे भी कोई बहुत छिपी हुई नहीं
- पिछले साल नवम्बर के शुरू में प्रधानमंत्री ने पांच सौ और हजार रुपये के नोटों पर जो पाबंदी लगाई थी, उसके बाद नोटबंदीशुदा नोटों का 99 फीसद हिस्सा बैंकों में लौट आया है।
- 15.44 लाख करोड़ रुपये के नोटों को यकायक चलन से बाहर किया गया था, उनमें से 15.28 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकिंग व्यवस्था में लौट आए थे। इस तरह बैंकिंग व्यवस्था में न लौटने वाले नोट 16,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के नहीं होंगे।
ये आंकड़े क्या सचमुच नोटबंदी की विफलता की (failure of demonetisation कहानी कहते हैं?
- यह सवाल इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि रिजर्व बैंक के उक्त आंकड़े आने के बाद भी सरकार ने नोटबंदी की सफलता का अपना दावा दुहराया है। वित्त मंत्री ने खासतौर पर इस मामले में सरकार की ओर से मोर्चा संभाला है। लेकिन नोटबंदी पर वित्त मंत्री का बचाव, वास्तव में नोटबंदी के मूल लक्ष्यों से ही कतराते हुए पेश किया गया है।
Government announcement on demonetization
सभी जानते हैं कि नोटबंदी की घोषणा के प्रधानमंत्री के टेलीविजन प्रसारण में सबसे ज्यादा जोर, काले धन की अर्थव्यवस्था और काले धन पर हमला किए जाने पर था। यहां तक कि नोटबंदी को कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक तक बताया जा रहा था। इसके साथ चलताऊ तरीके से जाली नोटों और आतंकवाद की फंडिंग पर प्रहार की बात भी जोड़ दी गई थी। और नोटबंदी को काले धन पर प्रहार किस तरह करना था? सरकार की ओर से यह माना और बताया जा रहा था कि काले धन का मतलब ही है बेहिसाबी नकदी। नोटबंदी की छन्नी से काली नकदी छनकर अलग हो जाएगी। होगा यह कि जो ईमानदार हैं, वे तो अपने पुराने नोट बैंकों में ले जाकर बदलवा लेगे। मगर काले धन के खिलाड़ियों की अपना काला पैसा, नये नोटों से बदलवाने के लिए बैंकों में जमा कराने की, बैंकों के सामने ले जाने की हिम्मत ही नहीं होगी क्योंकि बैंकों में उन्हें इसकी सफाई देनी पड़ेगी। नतीजा यह होगा कि काल धन, काले धन वालों की तिजारियों में रखा-रखा ही बेकार हो जाएगा। काले धन पर इस सीधे हमले को ही नोटबंदी का सबसे बड़ा निशाना बताया जा रहा था। नोटबंदी की गोपनीयता से लेकर आकस्मिकता तक, सब को ठीक इसी आधार पर जरूरी ठहराया जा रहा था। उस समय इक्का-दुक्का मामलों में औपचारिक तरीके से, लेकिन मुख्यत: अनौपचारिक रूप से शासन में विभिन्न स्तरों से इसके अनुमान भी पेश किए जा रहे थे कि इस तरह नष्ट होने वाला काला धन कितना होगा? 20 से 30 फीसद तक खारिजशुदा नोटों के बैंकिंग व्यवस्था में न लौटने और इस तरह सीधे-सीधे नष्ट हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा था। इतना ही नहीं, इस नष्ट हुए ‘‘काले धन’ को सीधे सरकार की ‘‘कमाई’ मानकर, इसके भी र्चचे हो रहे थे कि 3 से 5 लाख करोड़ रुपये के बीच की ‘‘राष्ट्र’ की इस अप्रत्याशित कमाई को, किस तरह खर्च किया जाना चाहिए। इसके लिए सीधे-सीधे गरीबों में पैसा बांट देने से लेकर, मुफ्त के इन संसाधनों का बुनियादी ढांचे के निर्माण से लेकर कल्याणकारी कायरे पर खर्च करने तक के सुझाव भी आ रहे थे। इसके बल पर ब्याज की दरें घटाए जाने की उम्मीदें जताई जा रही थीं सो अलग।
परंतु अब पता चला है कि मुश्किल से एक फीसद धन इस तरह नष्ट हुआ है और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इसमें काफी पैसा ऐसे ईमानदार लोगों का नहीं होगा, जो तरह-तरह के कारणों से, तय की गई समय सीमा में अपने पुराने नोट बैंकों तक नहीं ले जाए पाए थे।
- साफ है कि काले धन के खिलाड़ियों पर नोटबंदी का कम-से-कम सीधे तो कोई असर नहीं पड़ा है। और जहां तक ‘‘राष्ट्र’ की इस कसरत से कुछ कमाई होने का सवाल है, तो नोटबंदी के चलते नये नोट छपवाने और बैंकों को अपने हाथों में पुराने नोटों में जमा हो गई भारी और निवेश के लिए अनुपलब्ध राशि पर जो ब्याज देना पड़ रहा था, उसकी किसी हद तक क्षतिपूर्ति के लिए रिजर्व बैंक द्वारा किया गया खर्च, इन दो मदों में ही 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने का अनुमान है। इस तरह, नष्ट हुए करीब 16,000 करोड़ रुपये को अगर सरकार की कमाई भी मान लिया जाए, तब भी नोटबंदी के लिए इससे दोगुना खर्चा तो सरकारी खजाने से सीधे ही करना पड़ा है। इसमें अगर, नये नोटों के लिए एटीएम मशीनों को रीकैलीबरेट करने पर आया करीब 25,000 करोड़ रुपये का खर्च और जोड़ दिया जाए तो, नोटबंदी का खर्चा इस कमाई से चार गुना हो जाता है।
- बहरहाल, देश के लिए नोटबंदी का बहुत महंगी विफलता साबित होना, नोटबंदी के चलते हुए इन पचास हजार करोड़ रुपये के खर्चो तक ही सीमित नहीं है।
- नोटबंदी से नाहक गई 103 आम लोगों की जानों के हिसाब को अगर हम अलग भी रख दें तब भी, नोटबंदी से हुआ देश की अर्थव्यवस्था का नुकसान उससे बहुत-बहुत भारी है।
- सेंटर फॉर ‘‘मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ के अनुमान के अनुसार यह नुकसान 1.5 लाख करोड़ रुपये के करीब बैठेगा। जैसा कि सभी जानते हैं, नोटबंदी की सबसे बुरी मार कृषि समेत हमारी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर पड़ी है, जो देश में तीन-चौथाई रोजगार का स्रेत है। खास बात यह है कि यह मार अब भी लगातार पड़ ही रही है।
साफ है कि नोटबंदी बहुत भारी और महंगी भूल साबित हुई है। यह दूसरी बात है कि जेटली अब भी यह कहकर नोटबंदी के आलोचकों को ही गलत ठहराने में लगे हुए हैं कि उन्होंने काले धन पर नोटबंदी की मार को सही तरीके से समझा नहीं है। लेकिन सचाई से जेटली भी इनकार नहीं कर सकते हैं कि उनकी सरकार ने नोटबंदी के लक्ष्यों को ही बदलने की लगातार कोशिश की है और इसी क्रम में नकदी अनुपात घटाने से लेकर डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाने तक के नये लक्ष्य उछाले जाते रहे हैं। यह भी तो नोटबंदी की भारी विफलता ही सबूत है