क्रय शक्ति समता Purchasing power parity क्या है?

क्रय शक्ति समता(PPP)  क्या है?

यह इस पूर्व सोच पर बेस्ड है कि किसी प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत को प्रभावित करने वाली ड्यूटी, ट्रांजैक्शन कॉस्ट और दूसरी चीजें नहीं हो तो उसकी कीमत अलग-अलग देशों में (किसी एक करेंसी में) एक होनी चाहिए। इस तरह, परचेजिंग पावर पैरिटी से पता चलता है कि किसी प्रॉडक्ट या सर्विस को दो अलग-अलग देशों में खरीदने पर कीमत में कितना अंतर होगा। इससे पीपीपी एक्सचेंज रेट निकाला जाता है जिसके आधार पर किसी देश की ग्रॉस नैशनल इनकम को सिंगल करेंसी आमतौर पर डॉलर में बदला जाता है। इससे जरूरी अडजसमेंट के बाद प्रॉडक्ट और सर्विसेस की कीमत में अंतर निकाला जा सकता है।

यह संकल्पना (concept) कैसे काम करती है?

द इकनॉमिस्ट का बनाया बिग मैक इंडेक्स पीपीपी कॉन्सेप्ट का अच्छा उदाहरण है। इसमें यह मान लिया जाता है कि लॉन्ग टर्म में मैकडॉनल्ड के बिग मैक बर्गर की कीमत दुनिया से सभी बाजारों में एक ही होगी। भारत में बर्गर की कीमत निकालकर उसकी तुलना अमेरिका की कीमत से करने पर पीपीपी के आधार पर डॉलर का एक्सचेंज रेट निकलता है। इस तरह निकाले गए पीपीपी एक्सचेंज रेट की तुलना मार्केट रेट से की जा सकती है। इससे रुपए के अंडरवैल्यूड या ओवरवैल्यूड होने के बारे में पता चलता है।

पीपीपी आधार पर भारत जापान से कैसे आगे निकल गया?

जीडीपी कैलकुलेशन के रेग्युलर मेथड के हिसाब से इंडिया की इकॉनमी जापान से काफी पीछे है। अगर हम यह मान लें कि अगले पांच साल में भारत की इकॉनमी की ग्रोथ रेट 7.5 फीसदी रहती है तो इसके बाद इंडिया का जीडीपी 2.9 लाख करोड़ डॉलर होगा जबकि जापान का जीडीपी 6.69 लाख करोड़ डॉलर होगा। हालांकि, जापान में कीमतें भारत या अमेरिका के मुकाबले बहुत ज्यादा हैं। जब इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड यानी आईएमएफ ने दोनों देशों की नैशनल इनकम को पीपीपी एक्सचेंज रेट के हिसाब से अजस्ट किया तो पाया कि कीमत कम होने के चलते इंडियन इकॉनमी 2011 में 4.46 लाख करोड़ डॉलर की थी, जबकि जापान की इकॉनमी 4.44 लाख करोड़ डॉलर की थी। इसका मतलब यह हुआ कि दोनों देशों की परचेजिंग पावर एकसमान है।

पीपीपी की प्रासंगिकता क्या है?

पीपीपी का कॉन्सेप्ट अलग-अलग देशों में लोगों के स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग या क्वॉलिटी की तुलना में काम आता है जो प्रति व्यक्ति आय से नहीं किया जा सकता है। जिस देश में लोगों की इनकम कम है तो इसका मतलब यह भी होता है कि उस देश में लोगों का रहन-सहन का स्तर अच्छा होगा। मिसाल के तौर पर लंदन में बाल कटाना दिल्ली के मुकाबले काफी महंगा हो सकता है। पीपीपी एक्सचेंज रेट की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसे आसानी से कैलकुलेट नहीं किया जा सकता।

क्रय शक्ति समता(PPP)  क्या है?

यह इस पूर्व सोच पर बेस्ड है कि किसी प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत को प्रभावित करने वाली ड्यूटी, ट्रांजैक्शन कॉस्ट और दूसरी चीजें नहीं हो तो उसकी कीमत अलग-अलग देशों में (किसी एक करेंसी में) एक होनी चाहिए। इस तरह, परचेजिंग पावर पैरिटी से पता चलता है कि किसी प्रॉडक्ट या सर्विस को दो अलग-अलग देशों में खरीदने पर कीमत में कितना अंतर होगा। इससे पीपीपी एक्सचेंज रेट निकाला जाता है जिसके आधार पर किसी देश की ग्रॉस नैशनल इनकम को सिंगल करेंसी आमतौर पर डॉलर में बदला जाता है। इससे जरूरी अडजसमेंट के बाद प्रॉडक्ट और सर्विसेस की कीमत में अंतर निकाला जा सकता है।


यह संकल्पना (concept) कैसे काम करती है?

द इकनॉमिस्ट का बनाया बिग मैक इंडेक्स पीपीपी कॉन्सेप्ट का अच्छा उदाहरण है। इसमें यह मान लिया जाता है कि लॉन्ग टर्म में मैकडॉनल्ड के बिग मैक बर्गर की कीमत दुनिया से सभी बाजारों में एक ही होगी। भारत में बर्गर की कीमत निकालकर उसकी तुलना अमेरिका की कीमत से करने पर पीपीपी के आधार पर डॉलर का एक्सचेंज रेट निकलता है। इस तरह निकाले गए पीपीपी एक्सचेंज रेट की तुलना मार्केट रेट से की जा सकती है। इससे रुपए के अंडरवैल्यूड या ओवरवैल्यूड होने के बारे में पता चलता है।

पीपीपी आधार पर भारत जापान से कैसे आगे निकल गया?

जीडीपी कैलकुलेशन के रेग्युलर मेथड के हिसाब से इंडिया की इकॉनमी जापान से काफी पीछे है। अगर हम यह मान लें कि अगले पांच साल में भारत की इकॉनमी की ग्रोथ रेट 7.5 फीसदी रहती है तो इसके बाद इंडिया का जीडीपी 2.9 लाख करोड़ डॉलर होगा जबकि जापान का जीडीपी 6.69 लाख करोड़ डॉलर होगा। हालांकि, जापान में कीमतें भारत या अमेरिका के मुकाबले बहुत ज्यादा हैं। जब इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड यानी आईएमएफ ने दोनों देशों की नैशनल इनकम को पीपीपी एक्सचेंज रेट के हिसाब से अजस्ट किया तो पाया कि कीमत कम होने के चलते इंडियन इकॉनमी 2011 में 4.46 लाख करोड़ डॉलर की थी, जबकि जापान की इकॉनमी 4.44 लाख करोड़ डॉलर की थी। इसका मतलब यह हुआ कि दोनों देशों की परचेजिंग पावर एकसमान है।

पीपीपी की प्रासंगिकता क्या है?

पीपीपी का कॉन्सेप्ट अलग-अलग देशों में लोगों के स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग या क्वॉलिटी की तुलना में काम आता है जो प्रति व्यक्ति आय से नहीं किया जा सकता है। जिस देश में लोगों की इनकम कम है तो इसका मतलब यह भी होता है कि उस देश में लोगों का रहन-सहन का स्तर अच्छा होगा। मिसाल के तौर पर लंदन में बाल कटाना दिल्ली के मुकाबले काफी महंगा हो सकता है। पीपीपी एक्सचेंज रेट की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसे आसानी से कैलकुलेट नहीं किया जा सकता।

 

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