रेट्रोफिटिंग तकनीक : एहतियात ही सबसे बड़ी सुरक्षा

- देश में 70 फीसद से अधिक भवन भूकंपरोधी तकनीक के नहीं हैं। न ही मौजूदा समय में बनाए जा रहे हैं। देश के एक बड़े भूभाग में अभी भी भवन भूकंप के लिहाज से सुरक्षित नहीं हैं।

- देश के तमाम शोध संस्थानों और आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट से मदद लेकर भूकंपरोधी तकनीक पर आधारित भवनों की अनिवार्यता की जानी चाहिए। 
- तमाम विकास प्राधिकरणों, स्थानीय निकायों व पंचायतों को सरकार निर्देशित करे कि भवन निर्माण से पहले भूकंपरोधी प्रमाण पत्र अवश्य ले लिया जाए। 
- भूकंप के लिहाज से अधिक संवेदनशील जोन पांच व चार में तो भवन निर्माण से पहले संबंधित क्षेत्र की धरातलीय क्षमता का भी आकलन कर लिया जाए। उसी के मुताबिक भवनों की ऊंचाई के मानक बनाए जाएं व उसे सख्ती से लागू कराया जाना चाहिए। जो भवन बन चुके हैं, उन्हें रेट्रोफिटिंग तकनीक के आधार पर मजबूती प्रदान की जा सकती है।
- इसमें कुल भवन की लागत का महज 10 से 20 फीसद तक ही खर्च आता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 लागू है। राज्यों में नियमों के पालन की जिम्मेदारी आपदा प्रबंधन विभाग/आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र की है। इसके तहत हर जनपद प्रमुख विभागों को शामिल कर सुरक्षा उपाय करने होते हैं। केंद्र व राज्य सरकारों को चाहिए कि इसके नियमों का कड़ाई से पालन कराए। 
- भूकंप के प्रति लोगों को जागरूक करना सरकार का काम है। सरकार विभिन्न स्तर पर प्रचार-प्रसार करे और जनता को बताए कि भूकंप से पहले व भूकंप के समय क्या करना चाहिए और क्या नहीं। नेपाल के भूकंप को उदाहरण माना जाना चाहिए।
- हिमालयन बेल्ट में भविष्य में बड़े भूकंप आने की आशंका है। वैज्ञानिक कई ऐसे क्षेत्र चिह्नित कर चुके हैं, जहां लंबे समय से भूगर्भीय ऊर्जा बाहर नहीं निकली है। 
- भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता, न ही इसे रोका जा सकता है। हम सिर्फ इससे बचाव व कम नुकसान के रास्ते तलाश सकते हैं।

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