ज्वालामुखी की चट्टानों के सक्रिय होने के बाद इनसे उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों के कारण ग्लोबल वार्मिग अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि हमारे वायुमंडल पर इसका प्रभाव पुराने अनुमानों से कहीं ज्यादा पड़ रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष सामने आने के बाद वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन का अनुमान लगाने के अपने पुराने तरीकों में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है।
‘जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़ी भूमिका लार्ज इगनिस प्रोविंसेज (एलआइपी)भी निभाते हैं। एलआइपी उन क्षेत्रों को कहते हैं, जहां आग्नेय चट्टानें सर्वाधिक पाई जाती हैं। भूगर्भिक बदलावों के चलते समय-समय पर इसके क्रस्ट से मैग्मा सतह की ओर निकलते रहता है। जागृत ज्वालामुखी को एलआइपी का सबसे अच्छा उदाहरण माना जा सकता है।
ऐसे किया अध्ययन: इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने एक मॉडल बनाकर लगभग 5.5 करोड़ साल के अंतराल में कार्बन उत्सर्जन के कारण तापमान में आए बदलावों का आंकलन किया। इस दौरान शोधकर्ताओं ने उत्तरी अटलांटिक के आग्नेय चट्टानों वाले हिस्सों में ग्रीनहाउस गैसों के प्रवाह की भी गणना की। पृथ्वी पर ब्रिटेन, आयरलैंड, नॉर्वे और ग्रीनलैंड में सबसे ज्यादा आग्नेय चट्टानें पाई जाती हैं।