क्या हैं हमारी प्राथमिकताएं

वर्ष 2015 के विश्व मानव विकास प्रतिवेदन में भारत का स्थान 187 देशों में 135वें स्थान पर है। इसमें श्रीलंका 73वें व चीन 90वें स्थान पर है।

- यह प्रतिवेदन विभिन्न देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा तथा आय के स्तर के आधार पर यूएनडीपी द्वारा तैयार किया जाता है। आय के स्तर तथा स्वास्थ्य का आकलन बहुआयामी दृष्टिकोण से भी किया जाता है, उदाहरण के लिए मातृत्व मृत्यु दर तथा एक ही परिवार में शिक्षा, स्वास्थ्य व रहन-सहन के स्तर का वंचन। 

- इस रिपोर्ट में वर्ष 2005-06 में भारत की 55.3 प्रतिशत जनता को अनेक दृष्टिकोणों से विपन्न बताया गया है- अर्थात् जिनके पास स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ निजी शौचालय, बिजली, ठोस अपशिष्ट तथा पानी की निकासी की नालियां आदि नहीं हैं। बताया गया है कि मातृत्व मृत्यु दर हमारे यहां 190 प्रति लाख जीवित जन्म पर है, जबकि पाकिस्तान व बांग्लादेश में यह 170 है।
-  सूचना का अधिकार एवं दुनिया में संचार क्रांति, ऐसी घटनाएं हो गई हैं जिनके कारण हम बार-बार तुलना के लिए प्रस्तुत होते हैं, और यह अच्छा ही है। चूंकि यह हमें आगे बढऩे की प्ररेणा देता है। चीन से हमारी अक्सर तुलना की जाती है परन्तु हम दोनों देशों की शासन-पद्धति में जो एक आधारभूत अन्तर है उसके कारण हमें स्पष्ट रूप से अपनी रणनीति बनानी होती है कि हम लोगों को मनाकर वही काम सुनिश्चित करना है, जो चीन में डंडे के जोर से होता है।

-  उदाहण के लिए चीन में भ्रष्टाचार के दोषी अधिकारियों को सरेआम गोली मार दी जाती है, जबकि हम लोकपाल अधिनियम के तहत लोगों को सावधान करते हैं कि वे सत्यनिष्ठा से अपना काम करें।
=>प्राथमिकताएं :-

★इनमें प्रमुख है स्वास्थ्य :- लोगों के स्वास्थ्य की ओर ध्यान देना शासन की एक महती प्राथमिकता है। इसमें पहली जरूरत है उनकी पोषण और सही खान-पान की। यह उचित आय, और भोजन के उचित चयन उसमें सावधानी और सतर्कता के आधार पर मिलता है। 

★वर्तमान में एक जरूरी बात है स्वच्छता और स्वच्छ पेयजल की। शहरों में तो काफी जागरुकता है, पर गांवों में वह कम है। 
★ पेयजल को किन सस्ते साधनों से स्वच्छ बनाया जा सकता है? पानी को कपड़े से छानना, कुएं  में पोटेशियम परमैगनेट डालना, उसे फिटकरी, क्लोरिन टिकिया या जीरो बी से निरापद बनाना, अब लोग ग्रामीण क्षेत्र में भूल क्यों चले हैं? हैंड पम्प से निकलकर बहने वाले पानी को मच्छरों का पालना नहीं बनने देना है- उसे सोख्ता गड्ढे की मदद से निकालना है, पानी टंकियों की सफाई करना है, इस पर कितनी ग्राम पंचायतें या नगर पंचायतें ध्यान देती हैं? 
★ जनगणना के आंकड़े से स्पष्ट होता है कि गांव के 50 प्रतिशत लोगों के पास कोई विशेष काम नहीं है। वे निठल्ले बैठे रहते हैं। कोई उन्हें इन कामों पर क्यों नहीं लगाता? कितना खेद होता है यह पढ़ कर कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में हजारों की तादाद में घरों में स्वच्छ शौचालय बन गये हैं, लेकिन वे उपयोग में नहीं आ रहे। क्या हम उनके आस-पास भू गर्म में पानी टंकियां (सम्प) बनाकर उनकी जलापूर्ति नहीं कर सकते?

★ इस काम के लिए न तो हमारे यहां तकनीकविदों, न कामगारों न जमीन और न सीमेंट की कमी है। एक अच्छा काम सरकार ने टॉयलेट बनवाकर कर दिया। एक दूसरा काम जनता अपनी मर्जी व साधनों से भी तो करें। चूंकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि मलेरिया, पीलिया, डायरिया- ये सब रोग दूषित पानी, खुले में नदी-तालाबों के किनारे शौच की वजह से फैलते हैं बारिश में विशेष तौर पर। रोगों से कितने श्रम-दिनों का ह्रास होता है, दवा पर बेकार खर्चा होता है, जानें जाती हैं, उदासी बढ़ती है।

★ शिक्षा तथा रोजगार : मानव विकास के लिए शिक्षा प्रथम आवश्यकता है बल्कि यह कहना भी ठीक होगा, कि शिक्षा की सहायता से हम अधिक तेजी से सभी क्षेत्रों में मानव विकास में तेजी ला सकते है। आज वह आधारभूत शिक्षा जो 6 से 14 वर्ष की आयु में दी जाकर मनुष्य को लिखने-पढऩे और समझने योग्य बनाती है, हमारा मौलिक अधिकार बन चुकी है। आश्चर्य है फिर भी साक्षरता का कार्यक्रम हमें चलाना पड़ रहा है। श्रीलंका जैसे देश में साक्षरता के आंकड़े रखे ही नहीं जाते, चूंकि वहां 100 प्रतिशत लोग साक्षर हैं।

★ शिक्षा की सहायता से रोजगार भी पाया जा सकता है- विशेषत: उच्च व तकनीकी शिक्षा से। परन्तु शिक्षा तो मन के परिष्कार के लिए भी बहुत जरूरी है। एक सुशिक्षित व्यक्ति की वाणी भी मधुर होती है। असीम सहनशक्ति और हिंसा का प्रतिकार करने का कौशल हमें शिक्षा ही दे सकती है। वही हमें साम्प्रदायिकता, स्वार्थ वृत्ति और संकीर्णता से मुक्ति दिला सकती है। आज अच्छे और पवित्र हृदय के शिक्षकों की थोड़ी कमी हो गई है, और शिक्षा प्रदान करना व्यवसाय बन गया है। समय के साथ यह भी सुधर जायेगा।

स्वच्छ प्रशासन: यह आदर्श वह महत्वपूर्ण इकाई है, जिसके रहते विकास के आंकड़े तथ्यात्मक और विश्वसनीय बन जाते हैं। स्वच्छ प्रशासन के अभाव में हमारी लम्बी-चौड़ी बातें निरर्थक होती हैं। इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अपना नाम लिखवाने लायक मानसिकता लोगों में हो तो जानें।

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