प्रश्न : भारत के समाज की अधिकतर समस्यों की जड़ है उसकी अभिवृत्ति | विवेचना कीजिए |
प्रश्न : भारत में ब्युरोक्रसी में सरंचनात्मक सुधार से पहले आवश्यक है मनोविज्ञानिक सुधार | विवेचना कीजिए |
देश में होने वाली अधिकतर घटनाओं के लिए सामान्यतः लोगों की मनोवृत्ति होती है कि जैसा चल रहा है वैसा चलने दिया जाए| अक्सर आम बोलचाल की भाषा में सामान्यजन " चलता है" का प्रयोग करके अपने आसपास होने वाली घटनाओं से मुंह फेर लेते हैं| समय की मांग है की इस " चलता है" की मनोवृत्ति को छोड़कर " बदल सकता है" की मनोवृत्ति को अपनाया जाए| यह विचार माननीय नरेंद्र मोदी जी द्वारा व्यक्त किए गए परंतु आवश्यकता है कि इस विचार को अपने जीवन में अपनाया जाए अन्यथा यह विचार भी पूर्व के कई क्रांतिकारी विचारों की भांति गुम हो जाएगा|
" चलता है" की मनोवृत्ति का ही दुष्परिणाम है की सरकार अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में असफल है, कार्य संस्कृति दूषित हो चुकी है तथा भ्रष्टाचार जैसी विकृति समाज कि प्रत्येक तंत्र में दीमक की तरह लग चुकी है| यदि हम सीखना चाहे तो जापान की कार्य संस्कृति से सीख सकते हैं जहां के नागरिक व्यक्तिवाद को छोड़कर राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं|
सार्वजनिक शौचालय की गंदगी को देख कर भी नजरअंदाज करना, ट्रैफिक जाम में फंसी एंबुलेंस को रास्ता न देना तथा लाइन में ठीक प्रकार से खड़े न होना इत्यादि उदाहरण हमारी इसी मनोवृत्ति को जाहिर करता है| अभी हाल ही में गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी से 50 बच्चों की मौत, मुंबई रेलवे स्टेशन पर भगदड़ के कारण हुई 22 लोगों की मौत कहीं ना कहीं हमारे दैनिक जीवन में " चलता है" की मनोवृत्ति को प्रदर्शित करता है|
इस मनोवृत्ति के लिए सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता है जोकि नागरिक मूवमेंट द्वारा ही संभव है| iAS कम्युनिटी इस मनोवृति को बदलने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है| ऐसा कहना इसलिए तर्कसंगत है क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही iAS द्वारा कृषिगत सुधारों से लेकर और संरचनात्मक सुधारों को बेहतर तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी रही है| नीति निर्माण में अलग-अलग सरकारों द्वारा उन्हें स्थानीय स्थलों तक लागू करने का तथा उनके सही क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने का कार्यभार आईएएस कम्युनिटी पर ही रहा है| 1970 तक उनके द्वारा यह कार्य इमानदारी पूर्वक किया गया परंतु 1970 के दशक से ही उनके बीच भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत होने लगी तथा परिणाम यह निकला कि जिस उद्देश्य को ध्यान में रखकर IAS सेवा का गठन किया गया था वह आज असफल होता नजर आ रहा है| आज भी युवाओं के बीच IAS सेवाओं को लेकर उत्साह पहले जैसा ही है परंतु समस्या यह है किस सेवा में प्रवेश के पश्चात बहुत सारे युवा राजनीतिक दबाव तथा व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण अपने मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं| आज के आम नागरिकों की IAS सेवाओं के बारे में यह राय बन चुकी है कि iAS सेवाओं में कार्य करने वाले अपने व्यक्तिगत हितों को सार्वजनिक हित ज्यादा महत्व देते हैं|
आवश्यकता है कि आइए सेवाओं में कार्य करने वाले युवकों को अनुशासन, सीखने की ललक, स्वयं की गलतियों को स्वीकारने का साहस तथा जनसामान्य संवाद को बनाए रखने संबंधी मूल्य का प्रशिक्षण दिया जाए तब जाकर ही हम" चलता है" की मनोवृत्ति को बदल कर" बदल सकता है" मैं रुपांतरित कर सकते हैं|
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