#Dainik_Jagaran
अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया पर अपनी सरकार की नीति जारी की। यदि उनका प्रशासन इसे पूर्ण रूप से लागू करने में सफल रहा तो इससे न सिर्फ अफगानिस्तान में स्थायित्व का नया युग आरंभ होगा, बल्कि अमेरिका की पारंपरिक नीति में ऐतिहासिक बदलाव भी दिखेगा। जहां पाकिस्तान पर इस नीति का व्यापक प्रभाव पड़ना तय है वहीं भारत के लिए भी यह गहरे निहितार्थ लिए हुए है।
Analysis of new Afgan Policy
- अफगानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका पिछले 15 वर्षों से ज्यादा से युद्धरत है जो उसकी सबसे लंबी लड़ाइयों में से एक है। अमेरिका अफगान सरकार और तालिबान के साथ बातचीत के जरिये भी अफगान समस्या का राजनीतिक समाधान निकालने को प्राथमिकता देता रहा है, लेकिन तालिबान की डोर अभी भी पाकिस्तान के हाथों में है।
- Pakistan & Terrorism: वह उसे 20 वर्षों से अधिक समय से खाद-पानी दे रहा है। 2001 में एक हद तक उसकी कमर टूट गई थी तब भी पाकिस्तान ने उसे फलने-फूलने के लिए आश्रय दिया। उसने अमेरिकी रोक के बावजूद तालिबान को समर्थन देना जारी रखा। दुर्भाग्य से इसके बाद भी अमेरिका ने पाकिस्तान के खिलाफ कभी कोई कदम नहीं उठाया। उलटे उसने तालिबान के जरिये पाकिस्तान को न सिर्फ अफगानिस्तान में घुसने दिया, बल्कि वहां भारत की बढ़ती भूमिका को लेकर उसकी कटुतापूर्ण और निराधार बातों पर ध्यान भी दिया।
- पाकिस्तान अफगानिस्तान से भारत के प्रभाव को हमेशा के लिए मिटा देना चाहता है। कुछ वर्ष पूर्व तक पाकिस्तानी चिंताओं में दुबला हुआ जा रहा अमेरिका भी वहां भारत की मौजूदगी का अनिच्छुक था, लेकिन ट्रंप ने तालिबान के प्रति अमेरिकी प्राथमिकताएं बदल दीं। उनके नेतृत्व में अमेरिका अब चाहता है कि अफगानिस्तान में भारत अपनी भूमिका खासकर आर्थिक क्षेत्र में बढ़ाए।
ट्रंप ने राजनीतिक विकल्पों को भी पूरी तरह बंद नहीं किया, लेकिन सीमित जरूर कर दिया है, क्योंकि उन्होंने तालिबान को अब तक आतंकी संगठन घोषित नहीं किया है। जाहिर है कि उनकी पहली प्राथमिकता तालिबान को सैन्य कार्रवाई के जरिये कुचलना है ताकि यदि कभी राजनीतिक समझौते की नौबत आए तो उनका सामना कमजोर तालिबान से हो। इसके लिए अमेरिका को पाकिस्तान में तालिबान के सुरक्षित ठिकानों को नष्ट करना होगा। अमेरिका ने पाकिस्तान को यह सख्त चेतावनी दी तो है कि यदि उसने तालिबान को समर्थन देना बंद नहीं किया तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा, लेकिन अभी यह तय नहीं कि वह अपने इस रवैये पर कायम रहता है या नहीं, क्योंकि पाकिस्तान को धमकाने के बाद उसके सुर में कुछ नरमी भी आई है।
How Pakista reacted to thuis policy
ट्रंप की नई नीति पर पाकिस्तान की ओर से उम्मीद के अनुरूप कड़ी प्रतिक्रिया आई। पाक प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई जिसमें उनके कैबिनेट मंत्री सहित सेना प्रमुख और अन्य रक्षा अधिकारी शामिल हुए। बैठक के बाद बयान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान के योगदान और बलिदान का बढ़ा-चढ़ाकर जिक्र किया गया और अफगान समस्या के लिए स्वयं स्थानीय सरकार को जिम्मेदार बताया। साथ ही पाकिस्तान ने अफगानिस्तान समस्या का राजनीतिक समाधान निकालने की मांग की। उसने दावा भी किया गया कि वह खुद पूर्वी अफगानिस्तान से संचालित पाक विरोधी आतंकी गतिविधियों का भुक्तभोगी है।
- पाकिस्तान को अफगानिस्तान में भारत की भूमिका के विस्तार की बात नागवार गुजरी है। यही वजह है कि उसने अपने बयान में पड़ोसी देशों से अपने खराब रिश्तों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वह आतंकवाद का पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है और पूर्व से लेकर पश्चिम तक पाकिस्तान को अस्थिर करना चाह रहा है।
- हमेशा की तरह उसने जम्मू-कश्मीर पर घड़ियाली आंसू बहाते हुए वहां सक्रिय भारत विरोधी तत्वों को समर्थन जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई। फिर पाकिस्तानी संसद ने ट्रंप के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी पारित किया।
यहां भारत के लिए दो बातें महत्वपूर्ण हैं:
- पहली, भारत ने अफगान सरकार और वहां के लोगों के साथ द्विपक्षीय रिश्ते निभाने के लिए जो स्वतंत्र नीति अपनाई है उसे जारी रखना चाहिए। अफगानिस्तान के अनुरोध पर भारत उसे आर्थिक मदद दे रहा है और सड़क, बांध, बिजली से जुड़ी परियोजनाओं के निर्माण का दायित्व बखूबी निभा रहा है। भारत शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सक्रियता से काम कर रहा है। सुरक्षा क्षेत्र में उसने अफगानिस्तान के सैनिकों को गहन प्रशिक्षण के साथ हथियार भी मुहैया कराए हैं। भारत को अपना यह अभियान जारी रखना चाहिए। अच्छा है कि अमेरिका को अब भारत की अहमियत का अहसास हुआ है।
- भारत अमेरिका को इसके लिए राजी करे कि वह अपनी नई नीति हर हाल में लागू करे ताकि तालिबान की कमर तोड़ी जा सके।
अफगानिस्तान में शांति के लिए पाकिस्तान पर आर्थिक, कूटनीतिक और यहां तक कि सैन्य दबाव भी डाला जाना चाहिए। तालिबान और उसके रहनुमा बने पाकिस्तान को यह अहसास दिलाना जरूरी है कि वह बंदूक के बल पर यह लड़ाई नहीं जीत सकता। ट्रंप ने संकेत दिए हैं कि अमेरिकी सेना की जब तक जरूरत होगी तब तक अफगानिस्तान में मौजूद रहेगी और आवश्यकता के अनुरूप कार्रवाई भी करेगी। यदि अमेरिका अब भी पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता तो उसकी विश्वसनीयता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।
CHINA & Its Support to Pakistan
हैरत नहीं कि चीन पाकिस्तान के बचाव में उतरा है। उसने दावा किया है कि पाकिस्तान आतंकवाद का खुद सबसे बड़ा शिकार है। चीन ने हमेशा तालिबान का पक्ष लिया है। रूस ने भी ट्रंप की नीति की निंदा की है। रूस पिछले कई वर्षों से तालिबान और पाकिस्तान के करीब जाता दिख रहा है। उसने तमाम रियायतें देकर ईरान के साथ भी नजदीकी कायम कर ली है। रूस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अफगानिस्तान के संदर्भ में पाकिस्तान एक प्रमुख क्षेत्रीय ताकत है। उस पर ज्यादा दबाव क्षेत्रीय सुरक्षा की दृष्टि से घातक हो सकता है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भी चीन, रूस और तुर्की से मिले समर्थन को लपकने में देरी नहीं की। ऐसा कर वह अमेरिकी दबाव को कम करना चाहते हैं
1990 के दशक में जब पाकिस्तान तालिबान के समर्थन में आया था तब अमेरिका को लगा था कि दोनों की जोड़ी अफगानिस्तान में स्थिरता लगाएगी, लेकिन ये दोनों वहां अपना प्रभुत्व बढ़ाने लगे। लिहाजा तालिबान को उखाड़ फेंकने के लिए रूस, ईरान और भारत अफगानिस्तान के कद्दावर नेता अहमद शाह मसूद को मदद देने लगे, लेकिन 9/11 की घटना के दो दिन पूर्व आतंकवादियों ने मसूद की हत्या कर दी। अब अंतरराष्ट्रीय समीकरणों में एक बार फिर तब्दीली आई है। इसका फायदा उठाने के लिए भारत को समय रहते चतुराई भरी कूटनीतिक चालें चलनी होंगी।