जैविक दवाब का अर्थ है ऐसे रोग, कीट- नाशीजीव और खरपतवार जो की जीवों (पौधे पशु और मनुष्य) के सामान्य विकास को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते है।
- जैविक दबाव के लिए परपोषी, नाशीजीव औऱ पर्यावरण के बीच हितकारी पारस्परिक संपर्क की आवश्यकता होती है।
- इस प्रकार के प्रतिबलो से महामारी के वर्ष में 100 प्रतिशत तक की हानि हो सकती है और इसका कटु उदाहरण 1943 में चावल में भूरा धब्बा (हैलमिनथोस्पोरियम ओरिजिए) की महामारी थी, जिसके कारण पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीशा में भीषण आकाल पड़ा
- इस ऐतिहासिक नुकसान से लगभग 40 लाख लोगो की भूख के कारण मृत्यु हुई I नाशीजीव और रोगजनक उभरते रहते है और यदि पर्यावरण अनुकूल हो सकता है तो उनके उदभव की दर में तेजी आती है।
- इस प्रकार पर्यावरण में परिवर्तन, रोगजनकों की नई प्रजातियों के उदभव का मुख्य कारण है तथा गौण रोग या कीटनाशीजीव मुख्य जैविक प्रतिबल बन जाते है।
- जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्या : ग्रीनहाउस गैस तथा कार्बनडाइऑक्साइड, पतियो में सरल शर्करा के स्तरों को बढ़ा सकती है और नाइट्रोजन की मात्रा कम कर सकती है। ये अनेक कीटो द्वारा होने वाले नुक्सान को बड़ा सकती है जो नाइट्रोजेन की अपनी मेटाबोलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक पतियो को खायेगे। इस प्रकार कोई भी आक्रमण अधिक संक्रामक होगा। मुख्य रूप से कार्बनडाइऑक्साइड के कारण होने वाले वैश्विक उष्मण से उच्चतर तापमान का अर्थ है कि सर्दी के मौसम में अधिक सख्या में नाशीजीव जीवित रहेगे। जबकि ऐसा स्पस्ट संकेत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पशु और पौधों, नाशीजीव और रोगों के वितरण में परिवर्तन हो रहा है और इसके पुरे प्रभावो का अनुमान लगाना कठिन है।
तापमान, नमी और वायुमंडलीय गैसों में परिवर्तन से पोधो, फफूंद और कीटो की वृद्धि और प्रजनन दर बढ़ सकती है जिससे नाशजीवो उनके प्राकृतिक शत्रुओं और परपोषी के बीच पारस्परिक सम्पर्क में परिवर्तन होता है। भूमि कवर में परिवर्तन जैसे कि वनकटाई या मरुस्थल से बाकी बचे पौधे और पशु नाशीजीवों और रोगों के प्रति और अधिक संवेदनसील हो जायेगे। यदपि नए नाशीजीव और रोग पुरे इतिहास में नियमित रूप से उभरते रहे है, जलवायु परिवर्तन से इस समीकरण में अज्ञात नाशिजीवों की संख्या बढ़ जाती है।
1. पोधो के नाशीजीव, निरंतर खाद्य और कृषि उत्पादन के लिए सबसे बड़ी बाधाओं में से एक बने हुए है। इनके कारण विश्व की खाद्य आपूर्ति में औसतन 40 प्रतिशत से भी अधिक की वार्षिक हानि होती है, और जिससे खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।
2. जलवायु परिवर्तन आधारित प्रभाव से या तो नए जैविक दबाबो का उद्गमन हुआ, प्रमुख चुनौती के रूप में छोटे दबाबो में परिवर्तन हुआ या किसी अन्य देश में आक्रमणकारी नाशजीवो का बस्तीकरण व पदार्पण हुआ।
3. जलवायु परिवर्तन से गेहू में तना रतुवे के यूजी 99 के विरुद्ध प्रतिरोधिता को निगमित करने वाली एसआर जीनो की श्रृंखला के टिकाऊपन के प्रति गंभीर चुनौती प्रस्तुत हो रही है।
4. बड़े हुए तापमान और कार्बनडाइऑक्साइड ने गेहू के ब्लास्ट के पर्यानुकूलन के विरुद्ध, आलू की पछेती अंगमारी के उग्र पृथको, चावल के महत्वपूर्ण रोग नामतः ब्लास्ट और शीथ ब्लाइट जैसे खतरे उत्पन किये है
5. देश ने हाल ही में विनाशकारी नाशीजीवों और रोगों जैसे टमाटर पर साउथ अमेरिकन पिनवॉर्म, फूल पर वेस्टर्न फ्लावर थ्रिप्स, केले पर फ्यूजोरियम मुरझान, नारियल में सफेद मक्खी का बढ़ता प्रकोप आदि का अनुकूलन और उदभव देखा है।
6. तापमान और आद्रता स्तरों में परिवर्तन के साथ इन कीटो की संख्या में उनके भैगोलिक क्षेत्र में वृद्धि हो सकती है और पशुओ और मनुष्य को ऐसे रोगों का इस प्रकार से सामना करना पड़ सकता है जिनके लिए उनके पास कोई प्राकृतिक प्रतिरक्षा नही है।
7. सूखे में बढ़ोतरी का परिणाम जल निकायों में कमी के रूप में सामने आ सकता है जो इसके बदले पालतू पशुधन एवं वन्य जीवन के बीच अधिक परस्पर सम्पर्को को सुगम बनाएगा और इसका परिणाम असाध्य "केटाहैरल बुखार" के प्रकोप के रूप में हो सकता है जो पशुओ की एक घातक बीमारी है क्योकि सभी जंगली पशु बुखार के विषाणु के वाहक होते है।
8. मछलिया विशेष रूप से उभरती जलवायु-परिवर्तन के प्रति सवेदनशील होती है क्योकि उनकी परिस्थितिक प्रणाली बहुत निर्बल होती है और जल एक प्रभावी रोग वाहक है।
9. पिछले कुछ वर्षो में भारत में पादप सुरक्षा विजयन और जैव –सुरक्षा जागरूकता में उल्लेखनीय रूप से प्रगति हुई है I हाल ही में भारत ने अनेक ऐसी आकस्मिकताओं का प्रभावकारी रूप से प्रबंधन किया है जिनसे राष्टीय आपदाएं हो सकती थी
10.अफ्रीका में तना रतुवे की प्रजाति यूजी 99 के उभरने के कारण भारतीय गेहूं को किसी भी प्रकार के जैव सुरक्षा खतरे कि संभावनाओं से दूर रखने के लिए भारत ने कीनिया में रोगजनक के विरूद्ध अपनी किस्मों कि स्क्रीनिंग करने में समय से पहले सक्रियता से कार्य किया इसके परिणामस्वरुप हमारे पास देश में लगाई गई अनेक यूजी 99 प्रतिरोधी किस्में हैं और हमने किसी भी महामारी के होने से रोका है
11.वर्ष 2015-16 के दौरान बांग्लादेश में गेहूं के ब्लास्ट रोग द्वारा नष्ट किये जाने के तुरंत बाद भारत ने दक्षिण अमेरिकी देशों में जहाँ कि यह रोग मौजूद है, गेहूं के ब्लास्ट रोग के विरूद्ध स्क्रीनिंग के लिए सिमिट संस्था को गेहूं के 40 जीन प्रारूप भेजे
12.घरेलू स्तर पर, डेयर -भाकृअप, डीएसी, राज्य कृषि विश्वविद्यालय और राज्य कृषि विभाग जैविक दबावों के कारण होने वाले नुकसानों से बचाने के लिए सुरक्षा तकनीकियों को कार्यान्वित करने में लगे हुए है
13.एनपीपीओ के सक्रीय प्रयासों के परिणामस्वरूप 2016-17 के दौरान श्वेत मक्खी के कारण कपास में होने वाले आसन्न नुकसानों का प्रभावकारी रूप से प्रबंधन किया जा सका जिसके परिणामस्वरूप उत्तर भारत में कपास का उत्पादन पिछले तीन वर्षों कि उपज से अधिक होने कि संभावना है
14.उचित जैव सुरक्षा और जैव प्रदूषक उपायों को अपनाने से देश में एवियन इन्फ्लुएंजा के आक्रामक एच5एन8 विभेद के हाल ही में हुए प्रकोप का प्रभावकारी रूप से प्रबंधन किया जा सका 15.परिवर्तनशील जैविक प्रतिबल परिदृश्य ने ऐसे मॉडलों पर भविष्य में अध्यन करने की आवश्यकता को रेखाकिंत किया है जोकि खेत की वास्तविक परिस्थितियों में मुख्य फसलों, पशुओं और मछलियों क्र रोगजनकों कि गंभीरता का अनुमान लगा सकें इसके साथ ही साथ बदल रही परिस्थितियों में टिकाऊ खाद्य उत्पादन के लिए नयी कार्यनीतियों को मिलते हुए रोग प्रबंधन कार्यनीतियों का पुनः अभिविन्यास किया जाना चाहिए।
कृषि जैव सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए तथा जैविक दवाबो के दक्ष प्रबन्धन को सुनुश्चित करने के लिए कुछ तत्काल क्षेत्र और कार्यनीतियों जो आवश्यक है :-
क. देशी के साथ ही साथ जंगली संसाधनों का प्रयोग करते हुए जैविक दबाव प्रतिरोधी फसलो और पशुओ की नस्लो का विकास।
ख. जैविक प्रतिबल अनुकूल जीवो के विकास की प्रक्रिया को तेज करने में लिए एमएएस, पराजीनी और जीन एडिटिंग तकनीकियों जैसे उपकरणों और आधुनिक तकनीकियों का प्रयोग बढ़ाना।
ग. संक्रमित उत्पादों को नाशीजीव मुकत क्षेत्रों/ देशों में जाने से रोकने के लिए देशी और अर्न्तराष्ट्रीय संगरोधों को मजबूत बनाना।
घ. आईपीएम एप्रोचों को आयोजित करना और जैव नियंत्रक एजेंटों की डिलीवरी की प्रभावकारी प्रणाली को मजबूत बनाना तथा प्रभावकारी नाशक जीवनाशियों के लेबल का प्रसार करना।
ड. जैव सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग को विकसित करना।
च. आक्रमण और आक्रमणकरी नाशीजीवों /रोगजनकों के प्रसार की निगरानी के लिए तथा टीकाकरण के लिए निदानकरी उपकरणों/टीकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक नेटवर्किंग।