रिकार्ड फसल उत्पादन होना तय : भारतीय किसान खाद्य और अच्छी प्रेरणा उपलब्ध कराते हैं:

भारत 2016-17 में खाद्यानों का रिकार्ड उत्पादन दर्ज कराएगा। दाल कृषि उत्पादन क्षेत्र में देश की उपलब्धियों का एक उच्च बिन्दु होगा और इसके लिए प्रेरणादायक साबित होगा कि किस प्रकार नीतिगत युक्तियां और किसानों तक पहुंच उन्हें भयंकर कमी की स्थिति से निकालकर लगभग आत्मनिर्भरता की स्थिति तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

  • देश के किसान विभिन्न फसलों की बदलती उत्पादन , उपभोग एवं मूल्य निर्धारण पद्धति के प्रति ग्रहणशील रहे हैं और नये मीडिया के माध्यम से उन्हें वास्तविक समय की सूचना भी उपलब्ध होती रही है और इन सबकी बदौलत वे एक बार फिर से देश की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। द्वितीय अग्रिम आकलनों के अनुसार, वे 2016-17 में 271.98 मिलियन टन खाद्यान का उत्पादन करेंगे और 2013-14 के 265.57 मिलियन टन के पिछले रिकार्ड को ध्वस्त करेंगे। वर्ष दर वर्ष के आधार पर कुल खाद्यान उत्पादन पिछले वर्ष के 251.56 मिलियन टन की तुलना में 2016-17 के दौरान 8.1 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर दर्ज कराएगा।
  • अगर हम 2013-14 के पिछले सर्वश्रेष्ठ वर्ष और 2016-17 के नये रिकार्ड को तोड़ने वाले वर्ष के बीच तुलना करें तो किसानों ने बेहतर रिटर्न और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए सकारात्मक संकेतों को ग्रहण किया और दालों के रकबा क्षेत्र में बढ़ोतरी की।
  •  पिछले तीन वर्षों के दौरान दालों के लिए रकबा क्षेत्र 252.18 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 288.58 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया , जबकि उपज 19.78 मिलियन टन से बढ़कर 22.14 मिलियन टन तक पहुंच गई। यह प्रोटीन समृद्ध मसूर की दाल के लिए देश की मांग के निकट होगी और इसके उपभोग से ग्रामीण और शहरी दोनों परिवार की औसत आय में वृद्धि होना तय है। निश्चित रूप से दालों का उत्पादन बढ़ाने तथा स्व निर्भरता अर्जित करने के लिए एक सतत प्रयास किया जा रहा है।
  • वर्तमान में दालों के मूल्य को लेकर स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। अब आसमान छूती कीमतों को लेकर दालों की खबरें मीडिया की सुर्खियों में नहीं आ रही है , जिनकी थोक मंडियों में कीमत 4200 से 5500 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे आ चुकी हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापित दालों एवं उत्पादों के लिए खुदरा वार्षिक मुद्रास्फीति दर जनवरी 2017 में नकारात्मक 6.62 प्रतिशत थी। दालों के मामले में आत्मनिर्भरता के निकट पहुंचने का श्रेय किसानों और कुछ हद तक सरकार द्वारा उठाए गए प्रभावी कदमों को दिया जा सकता है।
  •  इससे संबंधित कार्य नीति में महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , राजस्थान , गुजरात , कर्नाटक, आंध्र प्रदेश , तेलंगाना, उत्तर प्रदेश एवं तमिलनाडू में वर्षापूरित क्षेत्रों के तहत दालों में उच्चतर रकबा अर्जित करना शामिल था। 2016 में हुई पर्याप्त वर्षा ने भी किसानों की सहायता की जिन्हें उनकी उपज के लिए बोनस के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्राप्त होने का भरोसा था। चूंकि दालों के उत्पादन में मौसम की अनिश्चितताओं का जोखिम शामिल होता है, उन्नत फसल बीमा स्कीम ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ (पीएमएफबीवाई) ने भी किसानों को काफी प्रोत्साहित किया। 2016-17 के लिए पीएमएफबीवाई पर अनुमानित सरकारी व्यय 13240 करोड़ रुपये आंका जा रहा है।
  • दालों के मामले में एक उच्च बिन्दु बहुकोणीय कार्यनीति के माध्यम से उत्पादन में तेजी लाने के लिए मिशन में पूर्वोत्तर राज्यों को शामिल करने से संबंधित रहा है। इस कार्य योजना में राज्यों एवं केंद्र की विस्तार मशीनरी द्वारा प्रौद्योगिकियों के कलस्टर प्रदर्शन के जरिये चावल अजोत भूमि, अनाजों, तिलहनों एवं वाणिज्यिक फसलों के साथ अंत:फसलीकरण, खेतों के मेड़ पर अरहर की खेती, गुणवत्तापूर्ण बीजों के लिए बीज केंद्रों का निर्माण एवं किसानों को नि:शुल्क बीज मिनी किटों का वितरण शामिल है।
  • इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के दाल संघटक को वर्तमान 468 से बढ़ाकर पूर्वोत्तर राज्यों के सभी जिलों एवं हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर एवं उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के सभी जिलों समेत 29 राज्यों के 638 जिलों तक विस्तारित कर दिया गया है।
    मौसम की मदद एवं नीतिगत युक्तियों के सहयोग से रिकार्ड खाद्यान उत्पादन की बदौलत भारतीय कृषि का 4 प्रतिशत से अधिक की प्रभावशाली वृद्धि दर अर्जित करना तय है। इसका प्रभाव बाजार में सब्जियों समेत खाद्य उत्पादों की उपलब्धता एवं मूल्यों पर व्यापक रूप से देखा जा रहा है। तथापि, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खुदरा मुद्रास्फीति के एक मामूली स्तर और उत्पादकों को लाभकारी मूल्यों के बीच एक अच्छा संतुलन अर्जित किया जाए। आखिरकार एक व्यवसाय के रूप में खेती देश के लिए एक प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए जो किसानों के कल्याण एवं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, दोनों के लिए जरूरी है।
  •  2015-16 की तुलना में चालू फसल वर्ष में क्रमश: 4.26 प्रतिशत एवं 4.71 प्रतिशत की दर से फसल के उगने से चावल और गेहूं के भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने की उम्मीद है। 2016-17 के लिए चावल उत्पादन के 108.86 मिलियन टन के अब तक के सर्वाधिक रिकार्ड स्तर पर पहुंचने की उम्मीद ह
  • दूसरी तरफ , 2016-17 में गेहूं उत्पादन के बढ़कर 96.64 मिलियन टन पहुंचने की उम्मीद है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 4.71 प्रतिशत अधिक है।
  • चावल एवं गेहूं के मामले में एक उल्लेखनीय विशेषता यह है पिछले तीन वर्षों के दौरान उपज में बढ़ोतरी हुई है जबकि रकबा में गिरावट आई है , यह बेहतर कृषि उत्पादकता की ओर इंगित करती है , जिसमें बेशक और वृद्धि किए जाने की आवश्यकता है। 2013-14 में चावल की खेती के तहत क्षेत्र 441.36 लाख हेक्टेयर था जिसमें 106.65 मिलियन टन उत्पादन हुआ था। 2016-17 में रकबा घटकर 427.44 लाख हेक्टेयर जबकि उत्पादन के 108.86 मिलियन टन तक रहने का अनुमान है।
  • गेहू के लिए भी ऐसी ही तस्वीर उभर कर सामने आई है। 2013-14 में गेंहूं की खेती के तहत क्षेत्र 304.73 लाख हेक्टेयर था, जबकि उत्पादन 95.85 मिलियन टन का हुआ था। 2016-17 के लिए तुलनात्मक संख्या 302.31 लाख हेक्टेयर है , जबकि उत्पादन के 96.64 मिलियन टन रहने का अनुमान है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के किसानों की उनके प्रयासों के लिए सराहना की जानी चाहिए। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार द्वारा उठाए गए नये कदमों की बदौलत वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश के किसान भी खुशहाल हो जाएंगे।

साभार : विशनाराम माली

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