- उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत उन सभी पर लागू किया जाना चाहिए जो दैनिक वेतनभोगी, अस्थायी और अनुबंधित कर्मचारियों के तौर पर नियमित कर्मचारियों की तरह ही ड्यूटी करते हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने समान कार्य के लिए समान वेतन से इनकार को शोषणकारी गुलामी, अत्याचारी, दमनकारी और जबर्दस्ती करार दिया। न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सिद्धांत अस्थायी कर्मचारियों तक भी विस्तारित किया जाना चाहिए।
- कोर्ट ने कहा उनकी दृष्टि से श्रम के फल से वंचित करने के लिए कृत्रिम मानदंड बनाना गलत है।
- एक ही काम के लिए संलग्न किसी भी कर्मचारी को उस कर्मचारी से कम वेतन का भुगतान नहीं किया जा सकता जो वही कार्य और जिम्मेदारियां वहन करता है।
- निश्चित रूप से किसी भी कल्याणकारी राज्य में नहीं। ऐसा कदम अपमानजनक होनेे के साथ ही मानव गरिमा के आधार पर चोट करता है।
- पीठ ने कहा है कि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से कम वेतन वेतन पर काम नहीं करता बल्कि उसे ऐसा करने पर मजबूर किया जाता है। कम मजदूरी पर वह सिर्फ इसलिए काम करना चाहता है कि वह अपनी आजीविका चला सके। वह अपने सम्मान और प्रतिष्ठा की तिलांजलि देकर अपने परिवार के रहने-खाने के लिए ऐसा करता है क्योंकि उसे यह मालूम है कि अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो उसके आश्रितों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। समान कार्य के लिए समान वेतन न देना उस व्यक्ति का शोषण करना है।