राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा आदेश के बाद भी अवैध धार्मिक ढांचों को हटाने की दिशा में हलफनामा दाखिल नहीं किए जाने सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को फटकार लगाई है|
Background:
अनधिकृत धार्मिक स्थलों को हटाने संबंधी गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सरकार का कहना था कि इससे कानून व्यवस्था खराब हो सकती है। उस समय कोर्ट ने ऐसे धार्मिक स्थलों के बारे में राज्यों को कई निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारें ऐसे धार्मिक स्थलों की सूची बनाएं और यह बताएं कि कौन से धार्मिक स्थल बहुत पुराने हैं जिन्हें नियमित किया जा सकता है। उन्हें छोड़ कर बाकी सभी अवैध धार्मिक स्थल ढहाए जाएं। यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में कहीं भी सार्वजनिक स्थान पर अवैध धार्मिक स्थल न बने।
कोर्ट ने क्या कहा
सार्वजनिक स्थानों जैसे सड़क, फुटपाथ आदि पर अवैध धार्मिक स्थलों निर्माण का भगवान का सम्मान, नहीं बल्कि अपमान है। सड़क लोगों के चलने के लिए होती है। ईश्वर कभी भी वहां अवरोध नहीं पैदा करना चाहते।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जो लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते वे ईश्वर को ऐसी जगह बैठा देते हैं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए। यह ईश्वर का सम्मान नहीं बल्कि अपमान है
सार्वजनिक जगहों और फुटपाथ पर गैरकानूनी तरीके से जो धार्मिक ढांचे बनाए गए हैं, वह आस्था का मामला नहीं है; कुछ लोग इसकी आड़ में पैसा बना रहे हैं; फुटपाथ पर चलना लोगों का अधिकार है और भगवान उसमें कतई बाधा नहीं डालना चाहते|
यह मामला पेचीदा क्यों?
- धर्म और आस्था ऐसा संवेदनशील मसला
- इससे जुड़ी कोई भी बात दखल से परे मान ली जाती है, भले उसमें किसी व्यक्ति या समूह का निहित स्वार्थ छिपा हो। बल्कि इसे तब भी सही ठहराने की कोशिश की जाती है जब उससे देश के कानूनों का उल्लंघन होता हो।
- हमारे देश में जो भी चीज आस्था या धार्मिकता से जोड़ दी जाती है, उसके गलत होने के बावजूद लोग उस पर कोई सवाल उठाने से बचते हैं।