केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को सरोगेसी (नियमन) विधेयक को मंजूरी दे दी। इसमें किराये की कोख (सरोगेसी) के व्यावसायिक इस्तेमाल को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का प्रावधान है।
किराये की कोख मसौदा विधेयक 2016 का लक्ष्य देश में किराये की कोख संबंधी प्रक्रिया के नियमन को समुचित ढंग से अंजाम देना है। कमर्शियल सरोगेसी कई देशों में बैन है जिसमें ऑस्ट्रेलिया,यूके,कैनेडा, फ्रांस,जर्मनी,स्वीडन,न्यूजीलैंड,जापान और थाईलैंड शामिल हैं।
क्यों भारत surrogacy के लिए एक attractive market बना
भारत में बेहतर चिकित्सा सुविधा अपेक्षाकृत कम कीमत पर उपलब्ध है, लिहाजा विदेश से लोगों का आना तेज हुआ है। एक आकलन के अनुसार, दुनिया भर में करीब पांच करोड़ नि:संतान दंपति हैं। इनमें से कई की उम्मीद भारत और थाइलैंड जैसे देश हैं, जहां किराये पर कोख मिलना अपेक्षाकृत आसान होता है| इस कारण पिछले एक दशक में ये दोनों ही देश व्यावसायिक सरोगेसी का बड़ा केंद्र बनकर उभरे हैं। क अनुमान है कि भारत में कम से कम 40,000 सरोगेट बच्चों का जन्म पिछले एक दशक में हुआ है। चूंकि यहां कोख का ‘किराया’ अपेक्षाकृत कम है, इसलिए विदेशी दंपति यहां आकर सरोगेट मां ढूंढ़ते हैं और मां-बाप बनने का सुख पाते हैं। इसके लिए कोख किराये पर देने वाली महिला को आठ हजार से 40 हजार डॉलर तक दिए जाते हैं। साल 2012 की यूएन रिपोर्ट की मानें, तो सरोगेसी का यह कारोबार भारत में 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है।
क्यों यह बिल :
- कई ऐसे मामले आए हैं जब सरोगेसी के तहत लड़की पैदा होने पर माता-पिता ने बच्ची को किराये की कोख देने वाली महिला के पास ही छोड़ दिया। कई मामले ऐसे भी आए जब दिव्यांग बच्चा होने पर उसे छोड़ दिया गया। इन विसंगतियों को देखते हुए ही सरकार ने नए कानून का प्रस्ताव तैयार किया है|
- भारत में इसके लिए कोई ठोस कानून नहीं था । सरकार ने हाल में स्वीकार किया था कि वर्तमान में किराये की कोख संबंधी मामलों को नियंत्रित करने के लिए कोई वैधानिक तंत्र नहीं होने के चलते ग्रामीण एवं आदिवासी इलाकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किराये की कोख के जरिए गर्भधारण के मामले हुए, जिनमें शरारती तत्वों द्वारा महिलाओं के संभावित शोषण की आशंका रहती है।
- विदेशों से भ्रूण आयात करने और विदेशियों को भी किराए पर कोख लेने की इजाजत होने की वजह से यहां सरोगेसी एक तरह से धंधे का रूप ले चुकी था
- भारत में चूंकि गरीबी के चलते किराए पर बच्चा जनने को औरतें आसानी से मिल जाती हैं, अनेक देशों से लोग यहां आकर सरोगेसी के जरिए बच्चा हासिल करने लगे हैं। मगर मुश्किल यह थि कि इस प्रक्रिया में कोई महिला कितनी बार अपनी कोख किराए पर दे सकती है, उसके स्वास्थ्य का समुचित ध्यान रखा जाता है या नहीं, उससे पैदा होने वाले बच्चे की नागरिकता क्या हो, अगर बच्चा अपंग पैदा हुआ और कोख किराए पर लेने वाला दंपति उसे अपनाने से इनकार कर गया या प्रसव के दौरान मां का देहांत हो गया, आदि स्थितियों की बाबत स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं हैं। कई मामलों में सरोगेसी से पैदा बच्चे की नागरिकता को लेकर कानूनी अड़चनें पैदा हो चुकी हैं।
- चूंकि भारत में किराए की कोख देने वाली ज्यादातर महिलाएं गरीब और निम्न तबके की होती हैं, उनमें से बहुतों को करार संबंधी कानूनी पहलुओं की जानकारी नहीं होती। इसलिए यह खतरा हमेशा बना रहता है कि सरोगेसी के नाम पर उनका यौन शोषण किया जा सकता है। फिर ज्यादातर मामलों में समाज से लुक-छिप कर किराए की कोख ली और दी जाती है, इसलिए भी सरोगेट मां के साथ धोखाधड़ी की आशंका रहती है।
क्या है प्रावधान :
- सिर्फ नि:संतान भारतीय दंपतियों को ही किराये की कोख के जरिए बच्च हासिल करने की अनुमति होगी।
- इस अधिकार का इस्तेमाल विवाह के पांच वर्ष बाद ही किया जा सकेगा’ एनआरआई और ओसीआई कार्ड धारक इसका इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे’
- अविवाहित युगल, एकल माता-पिता, लिव इन में रह रहे पार्टनर और समलैंगिक किराये की कोख से बच्चे हासिल नहीं कर सकते’
- एक महिला अपने जीवनकाल में एक ही बार कोख किराये पर दे सकती है
- इस व्यवस्था के नियमन के लिए केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और प्रदेशों में राज्य सरोगेसी बोडरें का गठन किया जाएगा।
इस क़ानून का विरोध
- सरकार को कानून द्वारा इसको नियंत्रित करना था ना की पूरा प्रतिबन्ध लगाना था | इस व्यवसाय पर रोक लगाना लगभग नामुमकिन है। से में, व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा देने से यह पूरा का पूरा व्यवसाय काले बाजार के हवाले हो जाएगा। तमाम परिवारों में अपना बच्च पैदा करने की रुचि है, साथ ही इस तरह का प्रतिबंध गरीब माओं के लिए मुश्किल पैदा करेगा।
- इसका विरोध उस प्रावधान को लेकर भी है, जो समलैंगिक रिश्तों या लिव इन को सरोगेसी की सुविधा नहीं देता। हमें यह समझना होगा कि समलैंगिक लोग भी हमारे देश और समाज का हिस्सा हैं। देश-दुनिया में अब परिवार की तस्वीर बदल रही है। एकल परिवार में एक पिता या एक मां भी अब अपने बच्चे को पाल सकती है। ऐसे में, समलैंगिक लोगों को हमें स्वीकार करना चाहिए। समाज में उन्हें पूरा सम्मान मिलना चाहिए। परिवार बनाना उनका मौलिक अधिकार है|
- एक लोकतांत्रिक देश व समाज में यह अधिकार किसी को नहीं है कि वह यह तय करे कि दूसरा किस तरह का परिवार बनाना चाहता है।
way ahead :
किसी भी उदार समाज में प्रतिबंध को लागू करना मुश्किल होता है। जब आप प्रतिबंध लगाते हैं, तो अनायास ही उस कारोबार के दबे-छिपे या गोपनीय ढंग से चलने की राह भी तैयार हो जाती है। लिहाजा प्रतिबंध की बजाय जरूरत एक ऐसा सिस्टम बनाने की है, जिसमें सुरक्षा की पूरी गारंटी हो। इसमें न सिर्फ सरोगेसी पर सख्त निगरानी हो, बल्कि सरोगेट मां के अधिकारों की भी रक्षा की जाए। दलालों की भूमिका को भी पूरी तरह खत्म करना होगा, क्योंकि आमतौर पर ऐसे ही लोग गरीब और अशिक्षित महिलाओं का शोषण करते हैं। डॉक्टरों की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।सरोगेसी विधेयक को अगर इन्हीं प्रावधानों के साथ संसद की मंजूरी मिल गई, तो हालात और बिगड़ सकते हैं।