- राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) द्वारा अंगदान में मिली किडनी को मरीजों को आवंटित करने के लिए तैयार दिशा-निर्देश के मसौदे को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय ने कुछ जरूरी संशोधनों के साथ मंजूरी दे दी है।
- नए प्रावधानों के मुताबिक, मरने से पहले अंगदान कर दूसरों को जीवन का तोहफा देने वालों के करीबी परिजनों को भी जरूरत पड़ने पर किडनी प्रत्यारोपण के लिए प्रमुखता दी जाएगी।
- इसके अलावा किडनी प्रत्यारोपण कराने की अधिकतम उम्रसीमा भी 65 से बढ़ाकर 75 वर्ष तक तय कर दी गई है।
क्या है राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो):
- केंद्र सरकार ने मानव अंग और ऊतक को निष्कासन और संग्रहण के लिए एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्था्पित किया है, जिसका नाम एनओटीटीओ (NOTTO)है
- NOTTO के पांच क्षेत्रीय नेटवर्क हैं (ROTTO)और देश के प्रत्येक क्षेत्र में प्रत्येक राज्य / संघ राज्य क्षेत्र में SOTTO (राज्य मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन) विकसित किया जाएगा।
- देश के प्रत्येक अस्पताल में प्रत्यारोपण गतिविधि, चाहे इसका संग्रह या प्रत्यारोपण हो, यह एक राष्ट्री्य नेटवर्क के भाग के रूप में ROTTO / SOTTO के जरिए NOTTO से जुड़ा है।
कानून
- अंग प्रत्यारोपण कानून 1994 के तहत परिजनों की अनुमति से किसी भी मरीज में अंग प्रत्यारोपण किया जा सकता है
- डोनर पत्नी, पिता, माता, भाई या बहन हो सकती है।
- इधर के वर्षो में 1994-95 के कानून में बदलाव लाया गया जिसमें स्वैप डोनेशन को अनुमति दी गई। इसके तहत किसी जरूरतमंद दो डोनर के अंगों की अदला-बदली की जा सकती है, बशर्ते दोनों मरीजों को डोनर का अंग मरीज में प्रत्यारोपण के लिए मैच न कर रहा हो।
- नए कानून के तहत दादा, दादी भी डोनेशन कर सकते हैं।
देश मे अंगदान की स्थिति
- आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रति दस लाख लोगों पर अंग दान करने वालों की संख्या एक से भी कम है
- देखने में आता है कि धार्मिक अंधविश्वास और पारिवारिक उदासीनता लोगों को अंगदान करने से रोकते हैं
- भारत में सरकारी स्तर पर उपेक्षा इसकी बड़ी वजह है. जागरूकता भी काफी कम है। यही वजह है कि भारत में बड़ी संख्या में मरीज अंग प्रतिरोपण के लिए इंतज़ार करते-करते दम तोड़ देते हैं.
- भारत में उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थिति बहुत ख़राब है जबकि दक्षिण भारत अंगदान के मामले में जागरूक प्रतीत होता है.