माइनॉरिटी रिपोर्ट: अल्पसंख्यकों की अल्पतम शिक्षा

केंद्र सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि भारत में अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक लाभ देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की निगरानी में दो दर्जन योजनाएं चल रही हैं.

★इसका मकसद मुसलमानों की धार्मिक-सामाजिक स्थिति में बदलाव लाना था. हालांकि इतनी योजनाओं के बावजूद मुसलिम समुदाय की स्थिति में कोई खास बदलाव अब तक नहीं हुआ है.

उनके बयान के कुछ अंशः

1. 68.5 फीसदी मुसलमानों की साक्षरता दर है. जबकि राष्ट्रीय औसत 74.0 फीसदी है.

2.इसके अतिरिक्त स्कूल जाने वाले कुल भारतीय बच्चों की तुलना में मुसलमान बच्चों की संख्या पूरे देश में सबसे कम है.

3. 25 फीसदी 6 से 14 वर्ष आयुवर्ग के ऐसे मुसलमान बच्चों की हिस्सेदारी जो या तो कभी स्कूल ही नहीं गए या फिर बीच में जाना छोड़ दिया.

★हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक शिक्षा के लिये पंजीकरण करवाने वाले मुसलमान बच्चों की संख्या 2012-13 में 13.5% के मुकाबले 2013-14 में बढ़कर 13.7% हो गई.

★एमसीडी के विद्यालयों में हुए कुल पंजीकरण में मुसलमान लड़कियों की संख्या कुल मिलाकर 50.5% है, जो आबादी में उनकी कुल हिस्सेदारी से अधिक है.

★मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के अनुसार विभिन्न बोर्डों में पढ़ने वाली मुसलमान लड़कियों और युवतियों के बीच पढ़ाई को लेकर ‘मजबूत इच्छा और उत्साह’ देखा जा रहा है.

★4 फीसदी या इससे भी कम है मुसलिम स्नातकों या डिप्लोमाधारी ऐसे युवकों की संख्या जिनकी उम्र 20 वर्ष या उससे अधिक है. इस आयु वर्ग के लिये राष्ट्रीय औसत 7 फीसदी है.

★★वजह - अधिकतर मुसलमान या तो मैट्रिक में फेल हो जाते हैं या फिर उससे बहुत पहले ही पढ़ाई छोड़ देते हैं.

=> 2 कारणों की पहचान एमएचआरडी ने की है जिसकी वजह से मुसलमानों के बीच कम साक्षरता दर है.
1पहला मुस्लिम क्षेत्रों में स्कूलों (माध्यमिक और उच्च माध्यमिक) की संख्या बहुत कम है जबकि लड़कियों के लिये स्कूलों की संख्या तो और भी कम है.

2 दूसरा लड़कियों के लिये छात्रावास सुविधाओं की कमी.

♂ संसद में नकवी का जवाब था, ‘‘मुसलमान अभिभावक अपने बच्चों को आधुनिक और मुख्यधारा की शिक्षा दिलवाने के प्रति उदासीन होने के अलावा अपने बच्चों को सस्ते सरकारी स्कूलों में भेजने के प्रति भी लापरवाह हैं. वे अपने बच्चों को मदरसों में भेजना भी पसंद नहीं करते हैं. हालांकि मुसलमान बच्चों के लिये सरकारी स्कूलों की पहुंच बेहद सीमित है.’’

♂ 12 फीसदी सड़कों पर सामान बेचने के कामों में लगे मुसलमान पुरुषों की संख्या. इस मामले में राष्ट्रीय औसत 7 फीसदी से भी कम है.

♂ उत्पादन से संबंधित कामों और परिवहन उपकरणों में मुसलमानों की हिस्सेदारी देशभर की औसत 21 फीसदी के मुकाबले 34 फीसदी है.

♂ करीब 16 फीसदी मुसलमान बिक्री से संबंधित कामों में लगे हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 10 फीसदी है.

♂गौरतलब है कि मुसलमानों के बीच स्वरोजगार को आजीविका के एक मुख्य स्रोत के रूप में देखा जाता है.

=> मुसलमानों के बीच रोजगार को लेकर निकाले गए मुख्य निष्कर्ष :-

1.पहला पेशेवर, तकनीकी, लिपिकीय और प्रबंधकीय कामों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बहुत कम है.

2. दूसरा वे अधिकतर असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं और उनके काम करने की स्थितियां बहुत बुरी हैं.

3.तीसरा इसी वजह से बैंकिंग सेवाओं का लाभ लेने वाले मुसलमान परिवारों की संख्या काफी कम है यहां तक कि मुसलमानों की अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में भी.

 

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