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मोबाइल फोन की लत यानी ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ के खतरे पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है, लेकिन हाल ही में आई एक खबर सबके लिए चौंकाने वाली है. इस समय दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हरियाणा के एक नौ वर्षीय बच्चे इलाज चल रहा है, जो ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ का शिकार है. इसे भारत में सबसे कम उम्र का ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंट’ बताया जा रहा है. कुछ दिन पहले जब मां-बाप ने जबर्दस्ती इससे स्मार्टफोन ले लिया था तब इसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी. बाद में यही असामान्य व्यवहार देखते हुए बच्चे को अस्पताल लाया गया.
Negatve effects of Smart phones:
हालांकि परंपरागत मनोचिकित्सा विज्ञान के हिसाब से बच्चे की इस हालत का कोई औपचारिक नाम नहीं है. फिर भी पूरी दुनिया के मनोरोग विशेषज्ञ मानते हैं कि स्मार्टफोन, जो कि मनोरंजन उपलब्ध कराने से लेकर रास्ता बताने जैसे कई कामों में उपयोगी हैं, के कुछ खतरनाक नकारात्मक असर हो सकते हैं. जेब में समा जाने वाले सूचना के अकूत भंडार का यह स्रोत आज हमारी जिंदगी में केंद्रीय भूमिका अदा कर रहा है, लेकिन साथ ही यह हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी प्रभावित कर रहा है. स्मार्टफोन के जरिए लोगों और सूचनाओं से ज्यादा से ज्यादा जुड़े रहने की चाहत ने इस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की मानसिक जरूरत उस स्तर तक पहुंचा दी है, जहां इसके नतीजों को हल्के में नहीं लिया जा सकता.
- 2014 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) ने एक अध्ययन कराया था. इसके मुताबिक इंटरनेट की लत का सबसे प्रचलित रूप मोबाइल फोन सर्फिंग की लत में देखा जा सकता है. अध्ययन का एक निष्कर्ष यह भी था कि 14 से 35 वर्ष के आयु वर्ग में आने वाले लोग इस लत का शिकार सबसे आसानी से बनते हैं.
Responsibility of Parents:
बच्चों में ‘मोबाइल फोन डिपेंडेंसी’ की लत के लिए उनके अभिभावकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. दरअसल ज्यादातर मां-बाप मोबाइल फोन या टैबलेट को बच्चों के लिए खिलौनों का विकल्प समझते हैं. वहीं दूसरी तरफ अगर कोई बच्चा टैबलेट का इस्तेमाल अपना होमवर्क करने में करता है तब उसका ध्यान इस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में मौजूद कार रेसिंग या ऐसे ही दूसरे खेलों पर होना भी कोई असामान्य बात नहीं है. मनोरोग विशेषज्ञों के मुताबिक मोबाइल फोन की लत लगने में मां-बाप और बच्चों के इस व्यवहार का सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है.
इस समय भारत में निम्हांस और सर गंगाराम अस्पताल जैसे कुछेक निजी संस्थानों को छोड़कर और कहीं यह सुविधा नहीं है जहां मोबाइल फोन की लत से जुड़े लक्षणों का इलाज किया जाता हो. इसलिए यह जरूरी है कि यह लत जनस्वास्थ्य के लिए खतरा बने इससे पहले दूरसंचार, मानव संसाधन और स्वास्थ्य मंत्रालयों को मिलकर इसके खिलाफ किसी रणनीति पर काम शुरू कर देना चाहिए.