- भारत में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत बच्चों की प्राथमिक शिक्षा शुरू करने की उम्र 6 साल है लेकिन प्री स्कूल के नाम पर ढाई साल के बाद से ही बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया जाता है
- यही वजह है कि प्राइवेट प्ले स्कूलों की तर्ज पर अब इसे सरकारी स्कूलों में भी लागू करने की योजना है. नई शिक्षा नीति के मसौदे में इसे शामिल करने की सिफारिश की गई है
- साल 2010 में पहली बार 6 से 14 साल के बच्चों के लिए देश में शिक्षा का अधिकार कानून बना था अब इसे 4 साल की उम्र से ही लागू करने पर विचार हो रहा है
- नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में कहा गया है की किसी भी बच्चे का दिमाग 4-6 साल के उम्र में नई चीजें सीखने की सबसे ज्यादा क्षमता रखता है. इसी का फायदा उठा कर प्ले स्कूल की तादाद बढ़ रही है. इसका व्यवसायीकरण भी हो रहा है. इसलिए आज के माहौल में 4-6 साल के प्री स्कूल को भी शिक्षा का हिस्सा बना देना चाहिए.
- इस सुझाव को अमल में लाने के लिए समिति ने आंगनबाड़ियो को जिम्मेदारी देने की बात कही है. मौजूदा समय में देश में 16 करोड़ बच्चे हैं जिनकी उम्र 6 साल के नीचे है.
- 2015 तक के आंकड़े बताते हैं की 3 से 6 साल की उम्र तक के करीब साढ़े 3 करोड़ बच्चे आंगनबाड़ी जाते हैं. ऐसे में सरकार को प्री स्कूल का फॉर्मूला लागू करने में आसानी होगी.
- हालांकि कुछ जानकार आंगनबाड़ी को प्री स्कूल का जिम्मा देने के खिलाफ भी हैं. अगर नई शिक्षा नीति की सिफारिश को अमल में लाया जाता है तो सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को फायदा होगा. आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए प्ले स्कूल का खर्चा उठाना आसान नहीं होता है
- नई शिक्षा निति की इस ड्राफ्ट पालिसी की बात अगर देश में आने वाली शिक्षा निति में शामिल कर ली जाती है, तो हर गली मोहल्ले में दो कमरों में खुलने वाले प्ले स्कूलों और क्रेच पर लगाम लग जायेगा.
- साथ हे इनके लिए नियम और कये कानून बनाने से इनका रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य हो जायेगा. लेकिन सरकार को इस बात का धयान देना होगा की नन्हे बच्चों पर इसके बाद स्कूल के बस्तों का बोझ न आ जाये.