ट्रांसजेंडर्स को भी अब सरकारी स्कीम्स का फायदा मिलेगा। ऐसा जल्द होने वाला है क्योंकि इन्हें ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया जायेगा। सरकार के इस कदम को थर्ड जेंडर को देश के कानूनों के तहत लाने के बड़े फैसले का हिस्सा माना जा रहा है।
=>सुप्रीम कोर्ट ने दी थी फॉरमली रिक्गनिशन (पहचान)...
- भारत में अभी ट्रांसजेंडर्स के लिए कोई कानून नहीं है।
- 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को 'थर्ड जेंडर' कहा था जो न तो मेल हैं और न ही फीमेल।
- सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह यह तय करे कि थर्ड जेंडर भी वोटर कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस समेत बाकी सरकारी फैसिलिटीज हासिल कर सकें।
- साथ ही सरकार से ट्रांसजेंडर्स को 'सोशियली एंड इकोनॉमिकली बैकवर्ड' मानने को कहा गया था।
- ताकि ऐसे लोगों को जॉब्स और एजुकेशन में कोटा दिया जा सके।
=>क्या है नए कानून का मकसद?
- प्रपोज्ड नया लॉ जॉब्स, एजुकेशन, हेल्थ सर्विस और वेलफेयर स्कीम्स में ट्रांसजेंडर के साथ जारी भेदभाव पर रोक लगाएगा।
- ट्रांसजेंडर्स के पास प्रॉपर्टी खरीदने का राइट होगा।
- ऐसे लोगों को परिवार अपने से अलग नहीं कर सकेंगे।
- कानून तोड़ने वालों पर क्रिमिनल चार्जेज लगाए जाएंगे।
=>सरकार ने कब किया था वादा?
- डीएमके सांसद तिरुछी सिवा ने ट्रांसजेंडर्स को मान्यता दिलाने के लिए राज्य सभा में बिल पेश किया था जो पास हो गया था।
- इसके बाद सरकार ने पिछले साल इसे कानून बनाने का वादा किया था।
- 2013 में इलेक्शन कमीशन ने पहली बार ट्रांसजेंडर्स को वोटर्स कार्ड जारी किए थे।
=>अभी क्या है स्थिति?
- एक अनुमान के मुताबिक भारत में ट्रांसजेंडर्स की संख्या करीब पांच लाख है।
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले (2004) से पहली बार थर्ड जेंडर को देश में फॉरमली रिक्गनिशन मिली।
- हालांकि ऐसे लोगों को अभी भी देश में ज्यादातर जगहों पर अपना जेंडर बताते वक्त मजबूरी में मेल या फीमेल लिखना पड़ता है।
- ऐसा करने के दौरान ये अपनी पहचान साबित नहीं कर पाते हैं।
- फॉर्म में थर्ड जेंडर का कोई ऑप्शन नहीं होने की वजह से ये लोग केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से मिलने वाले बेनिफिट्स से भी दूर हैं