जानलेवा खेल (Blue Whale)

#Jansatta

भारत में हाल के दिनों में सुर्खियों में आया ‘ब्लू ह्वेल’ नामक Online  खेल आज कई बच्चों के लिए जानलेवा साबित होने लगा है।

  • इंदौर में राजेंद्र नगर के एक स्कूल में यह दूसरा मामला सामने आया, जिसमें तेरह साल के एक छात्र ने तीसरी मंजिल से छलांग लगा कर खुदकुशी की कोशिश की।
  • जबकि हाल ही में मुंबई के अंधेरी इलाके में ‘ब्लू ह्वेल’ गेम खेलते हुए ही एक चौदह साल के बच्चे ने पांचवीं मंजिल से कूद कर जान दे दी थी।

Big Question:

सवाल है कि किसी Online खेल में मशगूल बच्चे आखिर किस मन:स्थिति में पहुंच जाते हैं कि उन्हें खेलने और जान दे देने में कोई फर्क नजर आना बंद हो जाता है! जिस खेल में खुदकुशी एक शर्त हो, उसे किस तरह खेल कहा जा सकता है?

करीब चार साल पहले रूस में ‘ब्लू ह्वेल’ गेम को बनाने का दावा करने वाले फिलिप बुदीकिन का कहना था कि समाज के लिए जैविक कचरा बन चुके लोगों की सफाई जरूरी है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस तरह की बेहद खतरनाक मानसिक विकृति से भरा हुआ था। बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उसके बनाए इस खेल की चपेट में आकर दुनिया भर से अब तक ढाई सौ से ज्यादा बच्चों के जान गंवा बैठने की खबरें आ चुकी हैं।स्वाभाविक ही भारत में भी इसे लेकर चिंता पैदा हुई है।

Need to take action against such games:

इस खेल पर पाबंदी लगाने की मांग राज्यसभा में उठ चुकी है। बच्चों को आधुनिक तकनीक से लैस मोबाइल या ऐसे दूसरे साधनों की लत तो लगा दी गई है, पर उनमें यह समझ नहीं पैदा हो सकी है कि वे उनका उपयोग खुद को नुकसान पहुंचाने की कीमत पर न करें।

Technology and Human beings:

तकनीक से घिरी जिंदगी में कोई व्यक्ति समाज और मानवीय संवेदनाओं से कब कट जाता है, इसका अंदाजा उसे खुद भी नहीं होता। हाल के वर्षों में रोजमर्रा के जीवन को आसान बनाने में लोगों की निर्भरता जितनी तेजी से आधुनिक तकनीकी से लैस साजो-सामान पर बढ़ती गई है, उसी क्रम में धीरे-धीरे आसपास के लोगों और यहां तक कि रिश्ते-नाते या दोस्तों से भी दूरी बनती गई है। किसी बात या काम के लिए सीधे मेल-मुलाकात के बजाय लोग मोबाइल या फिर वाट्सऐप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के जरिए मैसेज से बात करके काम चला लेते हैं।

परिवार के बाकी सदस्यों तक से आपसी संवाद की स्थितियां खो रहे हैं।
घर में वयस्कों की जीवन शैली में आए इस बदलाव का सीधा असर बच्चों पर भी पड़ा है। जिस उम्र में बच्चों के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए उनका हमउम्र साथियों के साथ खेलना-कूदना, हंसना-बोलना जरूरी होता है, वे हाथ में मोबाइल लिए या फिर कंप्यूटर में कोई कृत्रिम गेम खेल रहे होते हैं। खेल या व्यवहार में संवेदना के गायब होने का प्रभाव बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क पर पड़ता है और वे गंभीर अवसाद के शिकार हो जाते हैं। उसी मानसिक स्थिति में उलझे बच्चों को ‘ब्लू ह्वेल’ जैसे खेल मौत तक खींच ले जा सकते हैं। इस खेल पर पाबंदी लगाई जाए या नहीं, इस पर दो राय हो सकती हैं, पर यह तो निश्चय ही कहना होगा कि बच्चों को आॅनलाइन गेम जैसी अमूर्तन की दुनिया में गुम होने से बचा कर मानवीय संवेदनाओं के साथ जीना सिखाया जाए

GS HINDI NOTE: GS Paper I Society, Can also be used in Paper IV (Ethics)  by drawing Parallel

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