राजनीतिक हितों से ऊपर उठने से ही देश में लागु हो पायेगी "समान नागरिक संहिता"

- संविधान का अनुच्छेद 44 कहता है कि शासन भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।

- महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को ध्यान में रखते हुए ही विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में 16 बिन्दुओं पर सुझाव आमंत्रित करने का निश्चय किया।
आयोग जानना चाहता है कि क्या समान नागरिक संहिता के दायरे में विवाह, विवाह विच्छेद, दत्तक ग्रहण, भरण पोषण, उत्तराधिकार और विरासत जैसे विषयों को भी लाया जाना चाहिए। आयोग यह भी जानना चाहता है कि क्या बहुविवाह और बहुपति प्रथा पर पाबंदी लगायी जानी चाहिए या उसे विनियत करना चाहिए? आयोग ने विभिन्न संप्रदायों के पर्सनल कानूनों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अनुरूप बनाने के लिये उन्हें संहिताबद्ध करने के बारे में भी नागरिकों की राय मांगी है।

- आयोग ने मैत्री करार जैसी रूढ़िवादी प्रथाओं पर पाबंदी लगाने या इसमें संशोधन करने, ईसाई समुदाय में विवाह विच्छेद को अंतिम रूप देने के लिये दो साल की प्रतीक्षा के प्रावधान और विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य बनाने और अंतर-धार्मिक तथा अंतर-जातीय विवाह करने वाले दंपतियों को सुरक्षा प्रदान करने के उपायों पर भी सुझाव मांगे हैं।

- पारसी विवाह एवं तलाक कानून, 1936 की धारा 32-बी के तहत परस्पर सहमति से तलाक लेने के लिये पति-पत्नी को कम से कम एक साल अलग रहना होता है।

- ईसाई समुदाय से संबंधित तलाक कानून, 1869 की धारा 10-क (1) के तहत कम से कम दो साल अलग रहने का प्रावधान है।

- इस मामले में यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि विशेष विवाह कानून के तहत शादी करने वाले जोड़े यदि विवाह विच्छेद करना चाहते हैं तो उन्हें इसी कानून के प्रावधानों के अनुरूप आवेदन करना होगा।

- उच्चतम न्यायालय की नजर में भले ही समान नागरिक संहिता देश की एकता को बढ़ावा देने वाली हो लेकिन इस बारे में विधि आयोग की पहल ने राजनीतिक दलों को दो खेमों में बांट दिया है। कुछ दल इसका विरोध कर रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ इसके पक्ष में हैं।

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