देश में तीन तलाक पर जारी बहस के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे महिलाओं के मूल अधिकारों के खिलाफ बताया है| हाई कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार के खिलाफ है और कोई भी मुस्लिम पुरुष इस तरीके से तलाक नहीं दे सकता| अदालत ने यह भी कहा कि शरियत के नाम पर महिलाओं के मूल अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता और यह व्यवस्था केवल संविधान के दायरे में ही लागू हो सकती है.
- एकल बेंच ने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा ‘अनुपयुक्त’ है और कानूनी आधार पर भी बुरी है, क्योंकि मुस्लिम विवाह को ‘कॉन्ट्रेक्ट’ माना जाता है, जिसे पति एकतरफा आधार पर नहीं तोड़ सकता.
- क्या था मामला : कोर्ट की यह टिप्पणी दहेज उत्पीड़न के आरोपों को रद्द करने की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज करते हुए आई. इस याचिकाकर्ता पर उसकी पत्नी ने दहेज के लिए प्रताड़ित करने और दहेज न मिलने पर तीन तलाक प्रथा के जरिए तलाक देने का आरोप लगाया था.
- सुप्रीम कोर्ट में भी मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला निकाह के खिलाफ मामले लंबित हैं, जिन पर 11 मई से पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ रोजाना सुनवाई करेगी.