सतर्क करती चेतावनीसऐंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने अपने ताजा नोट में चेतावनी दी है कि लगातार धीमी आर्थिक वृद्धि भारत की सॉवरिन रेटिंग पर असर डाल सकती है। गुरुवार देर शाम जारी एक वक्तव्य में एसऐंडपी ने कहा कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं नजर आता है तो वह भारत की सॉवरिन रेटिंग घटा सकती है। गत माह एक और वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को स्थिर से घटाकर ऋणात्मक कर दिया था। इसके लिए आर्थिक मंदी, आवासीय क्षेत्र में वित्तीय तनाव और वित्तीय क्षेत्र में नकदी की कमी को वजह बताया गया था। भारतीय अर्थव्यवस्था कठिन दौर से गुजर रही है और आर्थिक प्रबंधन के जटिल होने से रेटिंग में गिरावट की आशंकाओं में इजाफा ही होगा। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर छह वर्ष के निचले स्तर तक गिरकर 4.5 फीसदी रह गई। उच्च तीव्रता वाले संकेतक भी आने वाली तिमाहियों में किसी सुधार की ओर इशारा नहीं कर रहे हैं। वृद्धि में भारी गिरावट के लिए अस्थायी और ढांचागत दोनों तरह के कारण उत्तरदायी हैं। हालांकि एसऐंडपी को आर्थिक वृद्धि दर में सुधार की अपेक्षा है लेकिन उसका यह कहना भी सही है कि सतत उच्च वृद्धि की वापसी काफी हद तक ढांचागत सुधारों पर निर्भर करेगी। अन्य कारकों के अलावा बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में तनाव भी अर्थव्यवस्था में ऋण के प्रवाह को बाधित कर रहा है। इसका असर धीमी वृद्धि के रूप में देखने को मिल रहा है। इसने भारतीय रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों के पारेषण को भी प्रभावित किया है। जबकि व्यवस्था में पर्याप्त नकदी उपलब्ध है।
इसके अलावा एसऐंडपी का यह कहना एकदम उचित है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के जटिल क्रियान्वयन ने भी अर्थव्यवस्था में कुछ विसंगतियां पैदा की हैं। जीएसटी तंत्र की दिक्कतों को दूर करने पर जरूरत से ज्यादा जोर नहीं दिया जा सकता। जीएसटी परिषद को व्यापक समीक्षा करनी चाहिए और खामियों को दूर किया जाना चाहिए। जीएसटी के कमजोर प्रदर्शन ने केंद्र और राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति को कमजोर किया है। दरअसल देश की राजकोषीय स्थिति एक और खतरे का संकेत है। एसऐंडपी का मानना है कि देश का सरकारी घाटा इस वर्ष में बढ़कर जीडीपी के 7.4 फीसदी तक हो जाएगा। वृहद आर्थिक परिदृश्य सुधरने पर अगले वित्त वर्ष में संयुक्त घाटे के 7.1 फीसदी रह जाने की आशा है। बहरहाल, राजकोषीय घाटे और संचयी ऋण में वृद्धि भी सॉवरिन रेटिंग पर दबाव डाल सकती है। ऐसे में आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए अहम राजकोषीय विस्तार का विकल्प अब व्यवहार्य नहीं रह गया है।
सरकार को वृद्धि दर बहाल करने के तरीके तलाश करने होंगे। इसके साथ ही उसे राजकोषीय संतुलन कायम करने को लेकर भी प्रतिबद्ध रहना होगा। सॉवरिन रेटिंग पर पड़ रहे दबाव के अलावा उच्च घाटा और उधारी भी वित्तीय तंत्र में विसंगति उत्पन्न कर सकती है। इसका असर मध्यम अवधि में वृद्धि पर पड़ेगा। ऐसे में पूरा ध्यान बाजार की गतिविधियों पर प्रतिबंध कम करने पर होना चाहिए। इसमें कारक बाजार मसलन श्रम और भूमि बाजार भी शामिल हैं। ऐसा करके ही वृद्धि को गति दी जा सकती है। सरकार को वैश्विक व्यापार को लेकर अपने रुख पर भी नये सिरे से विचार करना चाहिए। बीते कई वर्षों से निर्यात में ठहराव है। यह भी उच्च वृद्धि दर की वापसी को बाधित करने वाला है। आर्थिक वृद्धि में तेज गिरावट स्पष्ट बताती है कि देश को कई स्तरों पर नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। नीति निर्माता अगर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के विचार की अनदेखी न करें तो बेहतर होगा। |