अंकेक्षक का पेशा और मौजूदा हालात

  1. अंकेक्षक का पेशा और मौजूदा हालात
  • इस महीने के आरंभ तक अंकेक्षण उन पेशों में से एक था जिनका बहुत मजाक उड़ाया जाता था। कंपनी अधिनियम के तहत हर कंपनी को अंकेक्षण कराना होता है। पहेली की शुरुआत इसके बाद होती है। अपेक्षा होती है कि अंकेक्षक की नियुक्ति कंपनी का मालिक/अंशधारक करे, न कि प्रबंधन। परंतु हम सभी जानते हैं कि हर निजी कंपनी में और अधिकांश सरकारी कंपनियों में प्रवर्तक परिवार का प्रबंधन और अंशधारिता दोनों पर नियंत्रण होता है। बहुत कम ऐसी सूचीबद्ध कंपनियां होती हैं जहां प्रवर्तक के पास बहुलांश हिस्सेदारी नहीं होती और केवल प्रबंधन ही अंकेक्षक का चयन करता है। बाहरी अंशधारकों की अंकेक्षक नियुक्त करने या बदलने में कोई खास रुचि नहीं होती। अंकेक्षण का पहला आधारभूत नियम यही है कि प्रबंधन को खिझाने का काम नहीं करें।
  • दूसरा आधारभूत नियम अंकेक्षकों के लिए राहत लाता है। सन 1896 में किंग्सटन कॉटन मिल्स कंपनी के मामले में निर्णय देने वाले लॉर्ड जस्टिस लोप्स के शब्द उधार लें तो आशा की जाती है कि वे निगरानी का काम करें, न कि शिकार करने का। तीसरा नियम चीजों को और आसान बना देता है: अंकेक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे बही खातों को लेकर सच्ची और निष्पक्ष तस्वीर पेश करेंगे। अंकेक्षण रिपोर्ट केवल एक विचार होती है, न कि किसी चीज का प्रमाणपत्र अथवा गारंटी। इन तीनों नियमों के आधार पर ही पीढिय़ों से अंकेक्षकों के प्रभाव का आकलन किया जाता रहा है।
  • यह केवल छोटी कंपनियों और छोटे अंकेक्षकों का मामला नहीं है। सन 2000 के दशक के आरंभ में जब टाटा फाइनैंस बड़े पैमाने पर सटोरिया बाजार की गतिविधियों, सर्कुलर लेनदेन और अन्य संदेहास्पद सौदों में शामिल थी, तब टाटा ने ए फर्गुसन को खास अंकेक्षण के लिए नियुक्त किया था। वरिष्ठ साझेदार वाई एम काले की निगरानी में तैयार फर्गुसन रिपोर्ट में टाटा के निदेशकों को क्लीन चिट नहीं दी गई। टाटा ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया और अपने राजस्व के लिए काफी हद तक टाटा पर निर्भर फर्गुसन ने काले को नौकरी से निकाल दिया।
  • व्यवस्था में अपराध को सुधारने की इजाजत है लेकिन केवल कागज पर। ऐसे मामलों में आप भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) के समक्ष पेशेवर के गलत आचरण की शिकायत कर सकते हैं। परंतु मैं बहुत सारे ऐसे मामलों के बारे में भी जानता हूं जहां आईसीएआई की अनुशासन परिषद अंकेक्षक के साथ मिल गई। जानकारों को पता है कि यह कैसे काम करता है। ऐसे में कई अच्छे सनदी लेखाकार अंकेक्षण के काम से दूर ही रहते हैं। अधिक नैतिक लोग हताश महसूस करते हैं।
  • इस माह के आरंभ में एक नाटकीय घटनाक्रम में अक्सर सुसुप्त रहने वाली सरकार की दो ताकतवर शाखाओं ने इस खेल के नियम बदल दिए। 11 जून को कंपनी मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रीय कंपनी लॉ पंचाट की शरण में जाकर आईएलऐंडएफएस के अंकेक्षकों डेलॉयट हस्किंस और सेल्स ऐंड बीएसआर ऐंड एसोसिएट्स पर पांच वर्ष तक प्रतिबंध लगाने की मांग की। ऐसा उनकी आईएलऐंडएफएस प्रबंधन के साथ कथित मिलीभगत के चलते किया गया। बीएसआर अंकेक्षण कंपनियों बड़े नेटवर्क केपीएमजी का हिस्सा है। मंत्रालय का यह कदम एक ऐसे संस्थान के शानदार प्रदर्शन के बाद उठाया गया है, जिसे हम भुलाते रहते हैं। वह संगठन है गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ)।
  • संगठन ने आरोप लगाया कि आईएलऐंडएफएस मामले में अंकेक्षकों ने पूर्व निदेशकों के साथ मिलकर गलतियों की सूचना छिपाई। इन बातों का असर पडऩा तय था। प्राइस वाटरहाउस ऐंड कंपनी एक और उदाहरण है जिस पर प्रतिभूति बाजार नियामक ने 2018 में दो वर्ष का प्रतिबंध लगाया था। यह प्रतिबंध सत्यम घोटाले में उसकी भूमिका के चलते लगाया गया था। कंपनी ने जून में रिलायंस कैपिटल के सांविधिक अंकेक्षक की भूमिका छोड़ दी। उसका आरोप था कि कंपनी उसे स्वतंत्र आकलनकर्ता की अपनी भूमिका नहीं निभाने दे रही थी।
  • ये घटनाएं ऐसे समय पर हुई हैं जब राष्ट्रीय वित्तीय नियमन प्राधिकार (एनएफआरए) के अधीन अंकेक्षण, लेखा और वित्तीय मानकों के नियमन में सांस्थानिक बदलाव किए जा रहे हैं। आईसीएआई ने सन 2010 से 2017 तक एनएफआरए का भरपूर विरोध किया। उसने दलील है कि वह एक विश्वस्तरीय नियामक है और एनएफआरए अतिरिक्त बोझ बन जाएगा। एक से अधिक नियामकीय संस्थाएं होने से सक्षम कर्मचारियों की कमी होगी। परंतु आम धारणा है कि आईसीएआई स्वनियमन में नाकाम रहा है।

बरकरार रहे गतिशीलता

  • अंकेक्षक केवल अंशधारकों की नहीं बल्कि नियामकों, सरकार, निवेशकों, बैंकरों और व्यापक तौर पर जनता की मदद करते हैं। ऐसे में मौजूदा साफ-सफाई की आवश्यकता थी और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह सिलसिला केवल हाई प्रोफाइल अंकेक्षकों तक सीमित न रह जाए। पहला कदम होगा ऐसे हजारों छोटे सनदी लेखाकारों को सशक्त बनाना जो स्वतंत्र रूप से काम करना चाहते हैं लेकिन प्रवर्तकों या प्रबंधन की दया पर हैं। मैं निजी रूप से जानता हूं कि ऐसे सभी लेखाकार शुरुआत में पेशेवर काम करना चाहते हैं। वे अंकेक्षण में उलझना ही नहीं चाहते। उन्हें देखना होगा कि एनएफआरए की सफलता उनके पेशे में स्वच्छता और निष्पक्षता लाती है।
  • दूसरा कदम होगा अंकेक्षण के मानकों को बेहतर बनाना। मिसाल के तौर पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड मूल कंपनी के अंकेक्षकों को अनुषंगी कंपनियों के बही खातों के लिए भी जिम्मेदार बनाने पर विचार कर रहा है। अन्य देशों ने भी धीरे-धीरे निगरानी वाले रूपक से दूरी बनाई है और बेहतर दायित्व की ओर बढ़े हैं। तीसरा कदम होगा वित्तीय कंपनियों के अंकेक्षकों के लिए विशेष मानक तय करना। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि ये अंकेक्षक दूसरों की भारी भरकम धनराशि से जुड़ा काम करते हैं। लॉर्ड डेनिंग ने सन 1958 में अंकेक्षकों के बारे में लिखा था, 'अपने काम को उचित ढंग से अंजाम देने के लिए उसके पास जिज्ञासु मस्तिष्क होना चाहिए, न कि बेईमानी की आशंका।' हालांकि मुझे संदेह ही है कि अगर डेनिंग और लोप्स आज होते तो वे शायद यही कहते है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों के मामले में अंकेक्षकों को शिकारी की भूमिका में होना चाहिए और उनके दिमाग में जांच परख के अलावा संदेह भी भरा होना चाहिए।

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