ई-कॉमर्स नीति का मसौदा (E-commerce policy draft)

  • ई-कॉमर्स सेक्टर के लिए एक रेग्युलेटर बनाने का प्रस्ताव है जो इससे जुड़ी कंपनियों के कारोबार पर नजर रखेगा।
  • मसौदे में भारतीय ऑनलाइन कंपनियों को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
  • ब्रांडेड मोबाइल फोन, वाइट गुड्स और फैशन आइटम्स की थोक खरीदारी पर रोक लगाने का सुझाव दिया गया है।
  • ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा बड़ी खरीद के बल पर इन सामानों की कीमत कम रख ले जाने का नुकसान खुदरा डीलर्स को उठाना पड़ता है। पॉलिसी में भारतीय और भारतीयों के नियंत्रण वाले ऑनलाइन मार्केटप्लेस को इन्वेंट्री रखने की इजाजत देने की बात कही गई है, बशर्ते वे सामान भारत में ही खरीदे गए हों।
  • विदेशी नियंत्रण वाली कंपनियों को यह छूट नहीं मिलेगी। नए नियमों के मुताबिक, किसी सामान के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर दावे करना या झूठे ग्राहकों के जरिए समीक्षा लिखवाना अनुचित वाणिज्यिक गतिविधि के दायरे में आएगा। कोई सामान जाली निकलता है या उसकी क्वॉलिटी ठीक नहीं होती तो इसकी जवाबदेही ई-कॉमर्स कंपनी और विक्रेता, दोनों की होगी। अभी तक कंपनियां यह कहकर निकल लेती थीं कि वे सिर्फ प्लैटफॉर्म मुहैया कराती हैं, सामान की गुणवत्ता को लेकर उनकी जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन आगे वे इतने सस्ते में नहीं छूट पाएंगी
  • टूटा हुआ सामान, गलत, नकली या जैसा विवरण वेबसाइट पर दिया था, वैसा सामान न होने पर उपभोक्ता के पास उसे वापस करने का अधिकार होगा और कंपनी को 14 दिन में रिफंड देना होगा। सामान लौटाने की पॉलिसी भी कंपनी को अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करनी होगी। ड्रॉफ्ट के मुताबिक, फ्लिपकार्ट जैसी खुदरा ऑनलाइन बिक्री कंपनियों को अपने उपयोगकर्ताओं के आंकड़े भारत में ही रखने पड़ेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए इन आंकड़ों तक सरकार की पहुंच होगी। भारत में ई-कॉमर्स का कारोबार सालाना 51 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। आज भारतीय बाजार पर कब्जे के लिए वॉलमार्ट, ऐमजॉन और रिलायंस रीटेल में होड़ जारी है, लेकिन इस कारोबार के प्रसार के साथ गलत उत्पादों की आपूर्ति और अन्य अनुचित व्यापार-व्यवहार को लेकर शिकायतें बढ़ रही हैं।

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