RECENT CONTEXT
यस बैंक को डूबने से बचाने के लिए सरकारी क्षेत्र का भारतीय स्टेट बैंक जिस तरह आगे आया, उससे यह उम्मीद बंधी है कि उसे बचा लिया जाएगा और लोगों का पैसा सुरक्षित रहेगा। इस उम्मीद के बावजूद रिजर्व बैंक और साथ ही सरकार उन सवालों से बच नहीं सकते, जिनसे वे दो-चार हैं। पिछले कुछ समय से लगातार ऐसी खबरें आ रही थीं कि यस बैंक की हालत ठीक नहीं। समझना कठिन है कि इतने दिन तक किस बात का इंतजार किया जाता रहा? आखिर उसी समय कठोर कदम क्यों नहीं उठाए गए, जिस समय इस बैंक के संस्थापक राणा कपूर के खिलाफ कार्रवाई की गई थी?
What to take from this event
- यदि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की सतर्कता के बावजूद ऐसी स्थिति बनी कि यस बैंक डूबने की कगार पर पहुंच गया तो इसका मतलब है कि बैंकिंग तंत्र की निगरानी सही तरह नहीं की जा रही है
- । इसका संकेत उस समय भी मिला था जब पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक में एक बड़ा घोटाला सामने आया था। यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि इस घोटाले के तार यस बैंक से जुड़ रहे हैं। रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की ओर से चाहे जो दावे किए जाएं, यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि बैंकों का नियमन उचित तरीके से नहीं किया जा रहा है। आखिर ऐसा कैसे संभव है कि कोई बैंक अपनी बैलेंस शीट न तैयार करे और फिर भी वह कठोर कार्रवाई से बचा रहे?
यह शुभ संकेत नहीं कि अधिकतर बैंक अभी भी एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं। चूंकि वे समस्या से ग्रस्त हैं, इसलिए कर्ज देने में भी हीलाहवाली कर रहे हैं। एक ऐसे समय जब अर्थव्यवस्था को गति देने की कोशिश की जा रही है, तब बैंकों की वित्तीय सेहत को लेकर संदेह बरकरार रहना बिल्कुल भी ठीक नहीं।