उर्वरक में नवाचार और शोध को बढ़ावा देने की दरकार

  • अविश्वसनीय रूप से उर्वरक में किए गए किसानों के निवेश का करीब 70 फीसदी हिस्सा व्यर्थ चला जाता है। इसका कारण चलन से बाहर हो चुके उर्वरक उत्पाद और उनका प्रभावहीन इस्तेमाल है। सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला और भारी सब्सिडी पर बिकने वाला नाइट्रोजन-आधारित उर्वरक यूरिया का ही करीब 50-70 फीसदी हिस्सा धुलकर बह जाने, भाप बनकर उडऩे और अन्य कारणों से बेकार हो जाता है। दूसरे शब्दों में, केवल 30-50 फीसदी यूरिया ही फसलों की उपज बढ़ाने में इस्तेमाल हो पाता है। वहीं यूरिया से महंगे उर्वरक फॉस्फेट की हालत तो और भी खस्ता है। फॉस्फेट उर्वरक का तो 70-85 फीसदी हिस्सा व्यर्थ चला जाता है। हालांकि पोटाश उर्वरक के मामले में नुकसान की मात्रा अपेक्षाकृत कम 20-30 फीसदी ही है लेकिन वह भी कम अहमियत नहीं रखती है।
  • मौद्रिक क्षति के संदर्भ में देखें तो उर्वरक के व्यर्थ होने से किसानों को होने वाले नुकसान की कुल मात्रा करीब सात अरब डॉलर बैठती है। इसमें यूरिया में होने वाला 4.2 अरब डॉलर और फॉस्फेट उर्वरकों में होने वाला 2.7 अरब डॉलर का नुकसान भी शामिल है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) ने फरवरी 2019 में प्रकाशित एक रणनीतिक पत्र में ये आंकड़े पेश किए थे। 'अनूठी उर्वरक सामग्रियों का विकास एवं अंगीकरण' शीर्षक से जारी यह रणनीति पत्र उर्वरक क्षेत्र में शोध एवं विकास की कमी, नए उत्पादों को मंजूरी देने की थकाऊ प्रक्रिया और दोषपूर्ण सब्सिडी प्रणाली को अधिक सक्षम एवं कम अवशिष्ट तत्त्वों वाले उर्वरकों के विकास एवं वाणिज्यिक उत्पादन को हतोत्साहित करने के लिए जिम्मेदार बताया था। यूरिया पर नीम की कोटिंग करने को छोड़कर हाल में उर्वरक क्षेत्र में शायद ही कोई सार्थक नवाचार सामने आया है जो पोषक तत्त्वों की क्षति को कम कर सके।

  • भारतीय किसान आज भी उन्हीं उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं जो वे दशकों पहले इस्तेमाल करते थे। इसके उलट दूसरे देशों के किसानों के पास आज के समय में तमाम तरह के उर्वरक विकल्प मौजूद हैं। ये उर्वरक फसलों को सही मात्रा और सही समय पर पोषक तत्त्व पहुंचाने के मामले में काफी कारगर हैं। नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों के क्षेत्र में सबसे ज्यादा नए उर्वरक सामने आए हैं जो धीमी गति से पोषक तत्त्व मिट्टïी में पहुंचाते हैं। इस वजह से उन उर्वरकों के व्यर्थ जाने की घटना काफी कम होती है। अनूठे एवं क्षमता बढ़ाने वाले फॉस्फेट एवं पोटाश उर्वरक उत्पाद संख्या में कम होते हुए भी पोषक तत्त्वों का ह्रïास रोकने में काफी हद तक कारगर हैं।

  • भारत इस बात को लेकर गर्व महसूस कर सकता है कि यहां पर दुनिया के सबसे बड़े कृषि अनुसंधान नेटवर्क में से एक मौजूद है और वह कृषि से जुड़े लगभग सभी आयामों के शोध एवं विकास में लगा हुआ है। लेकिन उर्वरक से जुड़ी नई तकनीकों के विकास एवं शोध पर विशेष रूप से समर्पित कोई निकाय अभी तक नहीं बन पाया है। इस वजह से किसी जगह की मिट्टïी एवं पारिस्थितिकीय परिस्थितियों के हिसाब से अनुकूल उर्वरक का विकास नहीं हो पाता है। नवाचारी उर्वरक उत्पादों के लिए पेटेंट आवेदनों की कम संख्या में भी यह खामी नजर आती है। गत 20 वर्षों में भारत में उर्वरक क्षेत्र में केवल 176 पेटेंट ही दिए गए हैं और इसके अलावा महज 110 अन्य आवेदन किए गए थे। पेटेंट के लिए आवेदन करने और अधिकार हासिल करने वालों में बड़ी संख्या विदेशी उर्वरक कंपनियों की है। इससे भी खराब बात यह है कि इन नए एवं पेटेंट वाले उर्वरकों में से अधिकांश को वाणिज्यिक उत्पादन एवं बिक्री की जरूरी मंजूरी ही नहीं मिल पाई है। एनएएएस के रणनीति पत्र में कहा गया है, 'भारत में अमूमन कोई भी उर्वरक पेटेंट वाला उत्पाद नहीं है। केवल जिंक पॉलिफॉस्फेट ही इसका अपवाद है।'

  • इसके अलावा केवल चुनिंदा उर्वरकों तक ही पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी को सीमित रखने की बिना सोची-समझी नीति भी नवाचारी, प्रभावी एवं परिस्थिति के अनुकूल उर्वरकों के विकास में बड़ी बाधा साबित हो रही है। वित्तीय रियायत नहीं मिलने से नए उर्वरक सब्सिडी वाले पुराने एवं पुराने हो चुके अवशिष्ट-प्रधान उर्वरकों से मुकाबला नहीं कर सकते हैं। कुछ उत्पादकों ने स्थान एवं फसल की जरूरत के हिसाब से उर्वरकों का विकास करना शुरू कर दिया है लेकिन भारतीय बाजार में यह बहुत तेजी नहीं पकड़ पाया है। यूरिया की सल्फर-कोटिंग कर इसे भारतीय मिट्टी के अनुकूल बनाने की कवायद भी इस नीतिगत खामी की शिकार हो चुकी है।

  • इस तरह उर्वरक क्षेत्र को संचालित करने वाली नीतियों के व्यापक फलक में ही सुधार करने की जरूरत है। नवाचारी एवं परिस्थिति-केंद्रित उर्वरकों के विकास को संभव बनाने के लिए नीतियों को नए सिरे से ढालना अपरिहार्य है ताकि फसलों की जरूरत के मुताबिक पोषक तत्त्व देने वाले उर्वरक तैयार किए जा सकें। ऐसे उर्वरकों के आने से उनकी बरबादी कम करने और लाभ बढ़ाने में मदद मिलेगी। इनपुट लागत में कमी लाना कृषि क्षेत्र का मुनाफा बढ़ाने के लिहाज से काफी अहम है।

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