इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग’

जब कोई कंपनी पूंजी जुटाने के लिए पहली बार अपने शेयर सार्वजनिक तौर पर बेचती है तो शेयर बेचने की इस पूरी प्रक्रिया को आइपीओ कहते हैं। आइपीओ लाने से पहले कंपनी को प्राइवेट माना जाता है क्योंकि उसमें बहुत कम निवेशकों की हिस्सेदारी होती है। अमूमन एक प्राइवेट कंपनी में संस्थापक, उनके रिश्तेदार या मित्र, वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजल निवेशकों की हिस्सेदारी होती है। लेकिन जब वह कंपनी आइपीओ लाकर पब्लिक कंपनी का रूप धारण करती है तो उसमें व्यक्तिगत निवेशकों से लेकर संस्थागत निवेशकों तक की हिस्सेदारी होती है। वे आइपीओ के माध्यम से कंपनी के शेयर खरीदते हैं। जब तक कोई कंपनी आइपीओ नहीं लाती तब तक वह प्राइवेट ही रहती है। आइपीओ आने के बाद वह पब्लिक लिस्टेड कंपनी बन जाती है और शेयर बाजार में उसके शेयरों की खरीद-फरोख्त होती है।बहरहाल, किसी कंपनी के प्राइवेट या पब्लिक होने के अपने-अपने फायदे नुकसान हैं। मसलन, एक प्राइवेट कंपनी के मालिकों को बहुत सी वित्तीय और लेखा संबंधी जानकारियां जगजाहिर करने की जरूरत नहीं होती जबकि पब्लिक कंपनी को वित्तीय और लेखा संबंधी जानकारियों की जानकारी नियामक संस्थाओं के समक्ष रखनी ही होती है। आमतौर पर बड़ी कंपनियां ही आइपीओ लेकर आती हैं लेकिन यह जरूरी नहीं है कि सभी बड़ी कंपनियां अपना आइपीओ लाएं। कई बड़ी कपंनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने से परहेज करती हैं।आइपीओ लाने का फायदा यह है कि इससे कंपनी को अपने विस्तार के लिए पूंजी जुटाने में मदद मिलती है। दूसरी ओर, आम निवेशकों के लिए भी आइपीओ के जरिये कंपनियों में निवेश करना आसान होता है। इससे कंपनी की छवि भी बनती है जिससे उसका कारोबार बढ़ता है। इसके अलावा उन्हें बेहतर प्रबंधन आकर्षित करने और विलय व अधिगृहण में भी मदद मिलती है। आइपीओ लाने के लिए कुछ शर्ते पूरी करनी होती हैं। भारत में आइपीओ लाने के लिए कंपनियों को पूंजी बाजार नियामक सेबी की शरण में जाना पड़ता है। इसके बाद उन्हें नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होने के लिए जरूरी शर्तो का पालन करना होता है। इसके तहत सिर्फ वे कंपनियां ही आइपीओ ला सकती हैं जिनकी मिनिमम पेड-अप कैपिटल 10 करोड़ रुपये हो। इसके अलावा भी उन्हें कई शर्ते पूरी करनी होती हैं। आइपीओ के लिए कंपनी सबसे पहले एक मर्चेट बैंकर नियुक्त करती है, जो कंपनी का डीआरएचपी तैयार करता है। इसमें कंपनी के बारे में अहम जानकारी होती है। सेबी की हरी झंडी मिलने के बाद इसे सार्वजनिक कर दिया जाता है। इसके बाद कंपनी अपने आइपीओ का प्राइस तय करती है। तीन दिन तक कंपनी के शेयर सब्सिक्रिप्शन के लिए उपलब्ध होते हैं। कंपनी जितने शेयर बेचना चाहती है अगर निवेशक उससे अधिक शेयर खरीदने की बोली लगाते हैं तो आइपीओ ओवरसब्सक्राइड माना जाता है।

आइपीओ के जरिये पूंजी जुटाती हैं कंपनियां

एप आधारित टैक्सी सेवा प्रदान करने वाली जानी-मानी कंपनी उबर अपना आइपीओ ला रही है। माना जा रहा है कि यह इस साल का सबसे बड़ा आइपीओ होगा। आइपीओ क्या होता है? कंपनियों और निवेशकों के लिए इसका क्या मतलब है?

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