क्या है लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट?

हमारे देश में रोजगार की स्थिति के आंकड़े नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) जुटाता है। देश में बेरोजगारी की दर कितनी है, इसका आकलन करने के लिये वह सबसे पहले लेबर फोर्स (श्रम बल) का अनुमान लगाता है। लेबर फोर्स में रोजगार-प्राप्त और बेरोजगार दोनों प्रकार के व्यक्तियों को शामिल किया जाता है। रोजगार-प्राप्त व्यक्तियों और बेरोजगार की पहचान दो स्थितियों को आधार बनाकर की गई है- यूजुअल स्टेटस यानी सामान्य स्थिति और करेंट वीकली स्टेटस अर्थात साप्ताहिक स्थिति। सामान्य स्थिति में उन व्यक्तियों को लेबर फोर्स का हिस्सा माना जाता है जिन्होंने सर्वे किए जाने की तारीख से ठीक पहले 365 दिन में कम से कम 30 दिन काम किया हो। इसका मतलब यह है कि अगर किसी व्यक्ति ने एक साल में कम से कम 30 दिन काम नहीं किया है तो वह लेबर फोर्स से बाहर गिना जाएगा। इसी तरह करेंट वीकली स्टेटस के आधार पर लेबर फोर्स में सिर्फ उन्हीं को गिना जिन्होंने सर्वे किए जाने की तारीख से ठीक पहले के सप्ताह में कम से कम एक घंटे काम किया हो या काम की तलाश की हो। लेबर फोर्स का अनुमान लगाए जाने के बाद लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट का आकलन किया जाता है। कुल जनसंख्या में कार्यशील आबादी यानी लेबर फोर्स के अनुपात को लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट (एलएफपीआर) कहते हैं। इसे फीसद के रूप में व्यक्त किया जाता है। इससे पता चलता है कि आबादी की कितना बड़ा हिस्सा कार्यशील है और कितना नहीं। इससे किसी भी देश समाज की उन्नति का भी संकेत मिलता है। भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट काफी कम है जबकि विकसित देशों में यह काफी अधिक है। वर्ष 2017-18 में सामान्य स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र में सभी आयुवर्ग के पुरुषों का लेबर फोर्स पार्टीसिपेशन रेट जहां 54.9 फीसद है वहीं महिलाओं का मात्र 18.2 फीसद है। वहीं शहरों में यह पुरुषों का एलएफपीआर 57 फीसद जबकि महिलाओं का 15.9 फीसद है।बहरहाल, श्रम बल में शामिल बेरोजगार व्यक्तियों के फीसद को बेरोजगारी दर कहते हैं। इस दर से यह पता चलता है कि श्रम बल के कितने हिस्से का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि बेरोजगारी दर का आकलन पूरी जनसंख्या के आधार पर नहीं बल्कि सिर्फ लेबर फोर्स के आधार पर किया जाता है।

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