बैंकों के नियमन से संबंधित बासेल (तृतीय) नियमों में लीवरेज रेश्यो की परिभाषा दी गई है। इसके मुताबिक लीवरेज रेश्यो बैंकों के एक्सपोजर (वितरित कर्ज) की तुलना में टीयर-1 कैपिटल का अनुपात है। लीवरेज रेश्यो निकालने के लिए बैंक की टियर वन कैपिटल में कुल एक्सपोजर से भाग देने से जो उत्तर आता है उसमें सौ से गुणा करने पर फीसद के रूप में लीवरेज रेश्यो प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए किसी बैंक की टीयर-1 कैपिटल 4.5 करोड़ रुपये हैं जबकि उसका एक्सपोजर 100 करोड़ रुपये है तो उसका लीवरेज रेश्यो 4.5 फीसद होगा। अगर बैंक टियर वन कैपिटल का स्तर सामान रखते हुए लीवरेज रेश्यो को घटाना चाहती है, तो वह एक्सपोजर बढ़ा सकती है यानी ज्यादा कर्ज वितरित कर सकती है। इस उदाहरण में अगर हम लीवरेज रेश्यो को घटाकर चार फीसद पर लाना चाहते हैं तो एक्सपोजर बढ़ाकर 112.5 करोड़ रुपये करना होगा।बासेल नियमों के अनुसार बैंकों को लीवरेज रेश्यो कम से कम तीन फीसद रखना होता है। बैंकों में लीवरेज रेश्यो पर कैपिटल और एक्सपोजर के आधार पर ही नजर रखी जाती है। एक्सपोजर में बैंक के बैलेंस शीट और उसके बाहर दोनों प्रकार के एक्सपोजर शामिल होते हैं। यहां टियर-1 कैपिटल का आशय समझना भी जरूरी है। टियर-1 पूंजी किसी बैंक की फंडिंग का प्राथमिक स्नोत होती है। बैंक अपने जोखिम भरे लेनदेन के वक्त काम चलाने के लिए इस पूंजी को जमा रखता रखता है। ये ऐसी परिसंपत्तियां होती हैं जिन्हें जरूरत पड़ने पर नकदी में तब्दील किया जा सकता है। यही वजह है कि नियामक संस्थाएं भी बैंकों की टियर-1 कैपिटल पर नजर रखती है क्योंकि इससे उनकी वित्तीय क्षमता का पता चलता है । लीवरेज रेश्यो इसलिए अहम हैं क्योंकि वर्ष 2007-08 में वैश्विक वित्तीय संकट का एक कारण बैंकिंग प्रणाली में लीवरेज रेश्यो का काफी ऊंचे स्तर पर पहुंचना था। इसके बाद पूरी दुनिया पर आर्थिक संकट गहराया था। यही वजह है कि बैंकों को बासेल नियमों का पालन करते हुए 2015 से हर तिमाही में लीवरेज रेश्यो की जानकारी देनी होती है।रिजर्व बैंक ने वित्तीय स्थिरता और बासेल (तृतीय) मानकों को ध्यान में रखते हुए लीवरेज रेश्यो घटाकर महत्वपूर्ण बैंकों के लिए चार फीसद और अन्य बैंकों के लिए 3.5 फीसद करने का फैसला किया है। अब तक लीवरेज रेश्यो 4.5 फीसद था। आरबीआइ जून के अंत में इस संबंध में दिशा निर्देश जारी करेगा। लीवरेज रेश्यो घटने से बैंक कर्ज बांटने की गतिविधियां बढ़ा सकते हैं। साथ ही इससे उन बैंकों को भी फायदा होगा जो फिलहाल आरबीआइ के प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन यानी पीसीए नियमों के दायरे में है। आरबीआइ किसी बैंक को पीसीए में डालने से पहले जिन चार संकेतकों को देखता है उनमें लीवरेज रेश्यो भी एक है।