सरकार जब किसी ढांचागत परियोजना को व्यवसायिक रूप से व्यवहारिक बनाने के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराती है तो उसे ‘वाएबिलिटी गैप फंडिंग’ कहते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग, हवाई अड्डे, शहरी परिवहन और बंदरगाह जैसी ढांचागत परियोजनाओं को वीजीएफ के रूप में वित्तीय मदद उपलब्ध कराई जाती है। दरअसल ये परियोजनाएं लंबी अवधि में पूरी होती हैं और उनकी लागत भी काफी अधिक होती है। ऐसी परियोजनाओं का विकास और परिचालन करने वाली कंपनियों को यह लागत वसूलने में लंबा वक्त लग जाता है। वे इन परियोजनाओं द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं के लिए उपयोगकर्ताओं से एक निश्चित यूजर फी (जैसे टोल) वसूलती हैं। अगर वे यूजर फी अधिक रखती हैं तो ग्राहक किनारा कर सकते हैं। और यदि यूजर फी कम रखा जाता है, तो कंपनियों की लागत वसूल नहीं होती है। ऐसी स्थिति में इन परियोजनाओं को व्यवसायिक तौर पर चला पाना संभव नहीं रह जाता है। यही वजह है कि सरकार ने इन परियोजनाओं को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए वीजीएफ देने की योजना शुरू की है।
सरकार ने 25 जुलाई, 2005 को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के मॉडल पर बनने वाली ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं को व्यावसायिक दृष्टि से लाभकारी बनाने के लिए वीजीएफ योजना को मंजूरी दी थी। वित्त मंत्रलय के अधीन सेंट्रल सेक्टर स्कीम के रूप में चलने वाली इस योजना के तहत ढांचागत क्षेत्र की परियोजनाओं को एकमुश्त अनुदान या किस्त के जरिये वीजीएफ दी जाती थी। किन परियोजनाओं को मदद दी जानी है, इसका फैसला एक अधिकारप्राप्त समिति करती है। आमतौर पर सरकार परियोजना की कुल लागत के 20 फीसद के बराबर वीजीएफ प्रदान करती है। अगर परियोजना किसी राज्य सरकार के अधीन है तो वह भी इस पर 20 फीसद तक वीजीएफ मुहैया करा सकती है। यह सहायता राशि परियोजना के निर्माण के दौरान कैपिटल ग्रांट के रूप में दी जाती है।
इसके तहत सड़क और पुल, रेल, बंदरगाह, हवाई-अड्डे, जलमार्ग, बिजली, शहरी परिवहन, जलापूर्ति, सीवरेज, ठोस कचरा प्रबंधन और पर्यटन क्षेत्र की ढांचागत परियोजनाओं को वीजीएफ के रूप में वित्तीय मदद प्रदान की जा सकती है। वीजीएफ के लिए सरकार अपने बजट में धनराशि आवंटित करती है।