हाल ही में पीएनबी बैंक में हुए घोटाले के मध्य बैंको के प्रबंधन में सुधार के लिए बैंको के निजीकरण की बात ने जोर पकड़ लिया है| परन्तु यह समझने की बात है कि बैंको का निजीकरण ही बैंको की समस्या का निराकरण नही है|
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रिज़र्व बैंक of इंडिया द्वारा कई बार पीएसयू बैंको में सरकार के आधिपत्य को बैंको के प्रबंधन में ढिलाई के लिए जिम्मेदार माना है| इसके लिए rbi द्वारा कई बार पीएसयू बैंको में सरकार की अंशधारिता को 51% से कम करने का सुझाव दिया है जिससे प्रबंधन के क्षेत्र में सरकार की भूमिका को कम किया जा सके| परन्तु rbi इन बैंको पर नियंत्रण न रख पाने की वजह को मात्र सरकार की अंशधारिता से जोडकर नही देख सकता|
हालाँकि यह सत्य है कि RBI का जितना नियंत्रण प्राइवेट सेक्टर बैंक के उपर है जैसे बैंकिंग लाइसेंस रद्द करना व बैंको को मर्ज करना इत्यादि , उतना नियन्त्रण पीएसयू बैंको पर नही है|हालाँकि बैंकिंग रेगुँलसन एक्ट 1949 के सेक्शन 51 के द्वारा rbi इन बैंको पर भी कुछ हद तक नियंत्रण लगा सकता है| अन्य भी कई प्रावधान है जिनके माध्यम से rbi नियंत्रण बनाये रख सकता है-
- सेक्शन 21 के अनुसार RBI पीएसयू बैंको की उधार देने की नीति को नियंत्रित कर सकता है|*#GSHINDI)
Ø सेक्शन 30 के अनुसार RBI पीएसयू बैंको के लिए ऑडिटर का चुनाव करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर स्पेशल ऑडिट करने के लिए भी दायित्व भी सोंप सकता है|
Ø सेक्शन 35 के अनुसार RBI पीएसयू बैंको की जाँच पड़ताल प्राइवेट बैंको की ही भांति कर सकता है|
Ø सेक्शन 35(A) के अनुसार RBI पीएसयू बैंको के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकता है|
- सेक्शन 36 के अनुसार rbi पीएसयू बैंको की बैठकों में rbi ऑफिसर्स को बैठने के लिए अधिकृत कर सकता है|
RBI पीएसयू बैंको के डायरेक्टर्स के उपर पेनाल्टी नही लगा सकता परन्तु बैंको के कर्मियों पर जरुर आरोपित कर सकता है|
चूँकि RBI का नियंत्रण पीएसयू बैंको के उपर कम है उसको संतुलित करने के लिए ही rbi को इन बैंको में एक डायरेक्टर को नियुक्त करने की अनुमति प्रदान की गयी है| यदि पीएसयू बैंको की बुरी अवस्था के लिए मात्र सरकारी नियंत्रण ही जिम्मेदार होता तो तो प्राइवेट सेक्टर बैंक की स्थिति बेहतर होती, जबकि ऐसा नही है| प्राइवेट सेक्टर बैंको में भी कोई कम अनियमितता नहीपाई गई है|rbi द्वारा एस बैंक के बताये गये npa से कई गुना ज्यादा npa पाया गया |कुछ इसी प्रकार की गंभीर अनियमितता आईसीआईसीआई बैंक व एक्सिस बैंक में भी पाई गयी है|यस बैंक तथा एक्सिस बैंक के विर्रुध rbi द्वारा कार्यवाही की गयी परन्तु क्या कार्यवाही की गयी , यह किसी को नही पता| बैंकिंग व्यवस्था में स्वामित्व चाहे सरकार का हो या किसी और का जवाबदेहिता तथा पारदर्शिता की उम्मीद करना व्यर्थ है|
प्राइवेट सेक्टर बैंक में शेयरहोल्डर द्वारा बैंको के उपर मजबूत नियंत्रण बनाये रखने के कारन पीएनबी जैसे फ्रॉड होना संभव नही होता|हालाँकि बैंको के लिए आवश्यक पूंजी का मात्र १२% ही इन शेयरहोल्डर द्वारा जुटाया जाता है बाकी की पूंजी की व्यवस्था डिपाजिट होने वाले धन से ही होती है| शेयरहोल्डर इसी ताक में रहते है कि वे किसी भी परिस्थिति में अपना पैसा सुरक्षित करके निकल जाए तथा बैंको की ख़राब स्थिति को जितना हो सके उतना छिपाएं , परन्तु इसमें सबसे जयादा नुक्सान डिपाजिट करने वाले को होता है| मितव्ययि नियामक कानून जैसे एनपीए मानक इसी परिस्थिति से निपटने के लिए लाये गये | एनपीए मानको के अनुसार बैंको को पैसा डिपाजिट करने वालो के लिए बचाकर रखना अनिवार्य बना दिया गया|चूँकि कम एनपीए दिखाकर बैंको के शेयरहोल्डर द्वारा धन को निकाला जा रहा था| तथा यह प्रक्रिया प्राइवेट सेक्टर बैंको द्वारा काफी लम्बे समय तक अपनाई गयी|
चूँकि यह स्पस्ट देखा जा सकता है कि निजीकरण करने के उपरांत भी बैंको में समस्या बनी हुई है| rbi का नियंत्रण प्राइवेट सेक्टर बैंको पर होने के बावजूद उनकी स्थिति भी पीएसयू बैंको के समान ही है| अतः कहा जा सकता है कि निजीकरण करना किसी भी प्रकार से समस्या का समाधान नही है तथा निजीकरण को बैंकिंग सुधारो के लिए जादू की छड़ी समझा जाना बंद कर देना चाहिए|