भारत को अभी ‘लेट कंवर्जर स्टाल’ (‘later convergence stall) का सामना नहीं करना पड़ रहा है


एक अध्‍याय में सर्वेक्षण ने यह समीक्षा की है कि भारत के लिए आवश्‍यक ‘लेट कंवर्जर स्टाल (‘later convergence stall’)  की अवधारणाएं किस हद तक सही हैं और क्या् इस स्टासल से आने वाले वर्षों में भारत के विकास पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।
सर्वेक्षण में यह दर्शाया गया है कि वर्तमान युग आर्थिक समन्वसयन का है, जहां भारत सहित गरीब देश, समृद्ध देशों की तुलना में ज्या‍दा तेजी से आगे बढ़े हैं और उन्होंने अपने जीवन-यापन की स्थिति में अंतराल को भरा है। 1960 में भारत एक कम आय वाला देश से भारत 2008 में निम्नत मध्यै आय वाला देश बन गया था और अब यह मध्या आय स्तहर हासिल करने की दिशा में प्रयासरत है। तथापि, ऐसी कुछ चिंताएं हैं कि भारत जैसे लेट कंवर्जर देशों के लिए समन्व य की प्रक्रिया में सुस्तीम आ सकती है, जो वैश्विक वित्तीजय संकट के पश्चा त इस परिवर्तन को सार्थक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सर्वेक्षण में यह कहा गया है कि आर्थिक विकास की प्रक्रिया में आवश्यसक लेट कंवर्जर स्टाल’ (‘later convergence stall’)  की चिंताओं से निपटने के लिए भारत को चार चुनौतियों का हल करना होगा। इन चार चुनौतियों में वैश्विकीकरण के विरुद्ध विवाद, जिससे निर्यात अवसरों में कमी आती है, कम उत्पा।दकता क्षेत्रों से उच्च उत्पापदकता क्षेत्रों (ढांचागत परिवर्तन) में संसाधनों के अंतरण में समस्यापएं, प्राद्योगिकी-सघन कार्यस्थारन के मांगों के अनुरूप मानव पूंजी के उन्ननयन की चुनौती तथा जलवायु परिवर्तन-प्रेरित कृषि दबाव से निपटना शामिल है।
क. वैश्विकरण के विरुद्ध बढ़ता अस्वीीकरण या विवाद –
    जापान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे अर्ली कंवर्जर देश अपने कंवर्जेंस अवधियों के 30 वर्षों तक 15 प्रतिशत से अधिक पोस्ट एवरेज विकास दर प्राप्तज करने में सक्षम रहे। तथापि, भारत जैसे लेट कंवर्जर देशों के लिए व्याकपार वातावरण बदल चुका है। त्वंरित वैश्विकरण के विरुद्ध विकसित देशों में विवाद से 2011 से विश्वव व्यालपार जीडीपी अनुपातों में गिरावट आई है। इसका अर्थ है कि निर्यात अवसरों में गिरावट, विशेष रूप से जब विकसित देशों में राजनीति निचले जीडीपी अनुपातों की दिशा में प्रत्यवक्ष रूप से अग्रसर हो रही है।
ख. कम उत्पा‍दकता वाले क्षेत्रों से उच्च उत्पानदकता वाले क्षेत्रों में संसाधनों के अंतरण की कठिनाइयां या बाधित ढांचागत परिवर्तन: सफल विकास के लिए संसाधनों को कम उत्‍पादकता वाले क्षेत्रों से उच्‍च उत्‍पादकता वाले क्षेत्रों में परिवर्तित किए जाने की आवश्‍यकता होती है। ढांचागत परिवर्तन तब निष्‍फल होता है जब अनौपचारिक, कम उत्पाजदकता वाले क्षेत्रों से मामूली रूप से कम अनौपचारिक या अधिक उत्पाादकता वाले क्षेत्रों में संसाधनों को परिवर्तित किया जाता है। भारत में अध्यपयनों में समग्र विकास और बेहतर विकास के बीच एक कमजोर सह-संबंध दर्शाया गया है।
ग. प्रौद्योगिक-सघन कार्यबल की मांगों के अनुरूप मानव पूंजी का उन्नकयन: भारत जैसे लेट कंवर्जर देश ढांचागत परिवर्तन के लिए आवश्य्क प्राथमिक शिक्षा उपलब्धी कराने में भी विफल रहे हैं। सर्वेक्षण के निष्क र्ष में यह दर्शाया गया है कि 3 से 8 वीं तक की कक्षाओं में लगभग 40 से 50 प्रतिशत ग्रामीण बच्चेय प्राथमिक शिक्षण मानकों की पूर्ति नहीं कर सकते हैं। यह विफलता काफी महंगी पड़ेगी क्योंीकि नये ढांचागत परिवर्तन के लिए मानव पूंजी क्षेत्र और दूर चला जाएगा और प्रौद्योगिकी कौशल युक्तढ मानव पूंजी की मांग करेगी। फिर भी, यह एक अच्छीज बात है कि 2014 से इस दिशा में सुधार आने लगा है।
घ. जलवायु परिवर्तन-प्रेरित कृषि दबाव
    विकासशील देशों की तुलना में, विकसित देशों की कृषि उत्‍पादकता की विकास दरें निरंतर अधिक रहीं हैं। भारत के संबंध में कृषि उत्‍पादकता विकास दर स्‍थायी रही है, जो कि पिछले 30 वर्षों के दौरान औसतन रूप से लगभग 3 प्रतिशत रही है। तापमान में वृद्धि से कृषि प्रभावित होती है और बरसात पर काफी ज्याशदा निर्भर रहती है। लेट कंवर्जर देशों के लिए कृषि उत्पापदकता न केवल लोगों के आहार के लिए महत्वनपूर्ण है, बल्कि उन क्षेत्रों में मानव पूंजी उपलब्धंता सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वहपूर्ण है जो कृषि से आधुनिक क्षेत्रों की ओर तब्दीाल हो रहे हैं।
    सर्वेक्षण में यह वर्णन किया गया है कि भारत में विकास, कम उत्पाोदकता वाले क्षेत्रों से उच्चे उत्पायदकता और गत्यावत्म क क्षेत्रों में श्रम संसाधनों के सीमित अंतरण के कारण हुआ है और यह कृषि विकास दर में अपेक्षाकृत मामूली वृद्धि के बावजूद है। तेजी से बढ़ती मानव पूंजी भारत की गत्याकत्मपक विकास दर चक्र को कायम रखने के लिए काफी महत्वतपूर्ण होगी। बेहतर स्था यी विकास हासिल करने हेतु जलवायु परिवर्तन और जल अभाव जैसे ज्वमलंत मुद्दों की तुलना में, तेजी से बढ़ती कृषि उत्पादकता की भूमिका अहम होगी। आज भारत को ‘लेट कंवर्जर स्टाल’ (‘later convergence stall’)) का सामना नहीं करना पड़ रहा है, लेकिन इससे बचे रहने के लिए भारत को समय पर सही कदम उठाने होंगे।


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