Covid19 व सामाजिक चुनौती

कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के वैश्विक प्रसार के साथ-साथ हर समाज की विसंगतियां भी सामने आ रही हैं, चाहे वह विकसित समाज हो या विकासशील समाज।

  • वैश्विक स्तर पर संक्रमित लोगों की संख्या 1,56,000 को पार कर गई है और इससे मरने वालों की संख्या 5,800 से ज्यादा हो गई है।
  • विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि लोग भीड़ में जाने से बचें, और यदि वे संदिग्ध मरीज के रूप में अलग-थलग रखे गए हैं, तो लंबे समय तक सुरक्षित रहने वाले खाद्य पदार्थ इकट्ठा कर लें, घर पर रहें तथा बीमार होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
  • लेकिन हाल ही में द टाइम पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, 'उस सलाह के साथ एक महत्वपूर्ण समस्या है कि बहुत से निम्न आय वाले लोग इसका पालन नहीं कर सकते। कम आय वाली नौकरियां (जैसे रसोइया, नर्स, किराने की दुकान के कर्मचारी, आया) दूर रहकर नहीं की जा सकतीं और ज्यादातर कम आय वाली नौकरियों में बीमारी के दिनों का भुगतान नहीं किया जाता। ऐसे ज्यादातर लोगों के पास या तो बीमा नहीं होता या होता भी है, तो कम राशि का होता है। ऐसे अनेक लोगों के लिए खाद्य पदार्थ इकट्ठा करके रखना वित्तीय बाधा के चलते असंभव हो सकता है।'

Position of INDIA
लेकिन भारत की क्या स्थिति है? यहां पहले ही कोरोना वायरस के सौ से अधिक (107) मामलों की पुष्टि हो चुकी है, और दो लोगों की मौत इस वायरस के कारण हुई है।

  • अनेक लोगों को घर से काम करने, भीड़भाड़ से बचने, कोरोना से मिलते-जुलते लक्षणों की अनदेखी न करने, बार-बार साबुन से हाथ धोने और सैनिटाइजर का उपयोग करने के लिए कहा गया है।
  • ऐसे कितने लोग हैं, जो घर से काम कर सकते हैं और इन सलाहों का पालन कर सकते हैं! अपने यहां असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की बहुत बड़ी आबादी  है। लाखों ऐसे दैनिक वेतनभोगी हैं, जिन्हें बीमारी के दौरान छुट्टी का भुगतान नहीं किया जाता।


बंगलूरू स्थित लाइफकेयर एपिडेमियोलॉजी ऑफ पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफेसर और प्रमुख गिरिधर आर बाबू कहते हैं, 'अगर कोरोना वायरस का संक्रमण स्थानीय स्तर पर होता है, तो आबादी का गरीब तबका, मसलन, ड्राइवर, घरेलू नौकरानियां, प्रवासी मजदूर और अन्य लोग निश्चित रूप से भारी नुकसान में रहेंगे, क्योंकि वे उतने शिक्षित नहीं हैं कि नए कोरोना वायरस के बारे में पर्याप्त रूप से अवगत हों। फिर वायरस की जांच सबके लिए नहीं है, ऐसे में, उनकी जांच नहीं की जाएगी और आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं तक उनकी पहुंच तो कठिन और असंभव है। सरकारी अस्पतालों में न तो पर्याप्त आईसीयू हैं और न ही वेंटिलेटर, इसलिए गरीब लोग इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।'

अभी तक वायरस के सामुदायिक स्तर पर प्रसार की पुष्टि नहीं हुई है। यानी सामान्य आबादी में वायरस की पहचान नहीं हुई है। जब सामुदायिक स्तर पर संक्रमण होता है, तो बीमारी इस तरह फैलती है कि संक्रमण के स्रोत का पता नहीं होता। कार्यस्थल पर या खरीदारी करते समय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैल सकता है और वैसे लोगों से भी संक्रमण फैलता है, जिन्हें संभवतः पता नहीं होता कि वे संक्रमित हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में अब तक बहुत से लोगों का परीक्षण ही नहीं किया गया है और इसके साथ शिक्षा, स्वस्थ आचरण के प्रति जागरूकता की कमी, गरीबी और देश के कई हिस्सों में कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली आने वाले दिनों में चुनौती होगी। बार-बार साबुन से हाथ धोना एक अच्छा उपाय हो सकता है, जिसे कोई व्यक्ति मानक स्वास्थ्य सावधानी के साथ कर सकता है। इस मामले में भी भारत की स्थिति चुनौतीपूर्ण है। भले ही भारत के लगभग सभी घरों में (हालिया सर्वे के अनुसार 97 फीसदी घरों में) वाश बेसिन है, लेकिन केवल धनी और शहरी क्षेत्रों के ज्यादा शिक्षित परिवार ही हाथ धोने के लिए साबुन का प्रयोग करते हैं। अमीर और गरीब परिवारों के बीच भारी असमानता है। दस गरीब परिवारों में से केवल दो में ही हाथ धोने के लिए साबुन का प्रयोग होता है, जबकि दस अमीर परिवारों में से नौ में साबुन का इस्तेमाल होता है। विषमताओं को गहरा करने में जाति और वर्ग बराबर भूमिका निभाते हैं। भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के परिवारों में हाथ धोने के लिए साबुन का इस्तेमाल सबसे कम होता है।

संकट एक अवसर भी बन सकता है। वर्ष 1994 में सूरत में प्लेग का प्रसार किस तरह स्थानीय प्रशासन में सुधार की वजह बना था, इसे लोग जानते हैं। 1990 के दशक के मध्य और उत्तरार्ध में सूरत के दो नगर आयुक्तों एस. आर. राव और एस. जगदीशन के प्रयासों से कचरा संग्रह और सड़कों की सफाई में आमूलचूल परिवर्तन आया, खाद्य प्रतिष्ठानों (होटलों) में स्वच्छता मानक को लागू किया गया और मलिन बस्तियों में पक्की सड़कों और शौचालयों की व्यवस्था की गई। ऐसे ही दूसरे बदलावों के फलस्वरूप एक गंदा, बाढ़ प्रभावित और बीमारी से ग्रस्त शहर सूरत देश के स्वच्छ शहरों में से एक बन गया। जनसंख्या में तेज वृद्धि के बावजूद मलेरिया जैसे मच्छर जनित परजीवी रोगों के मामले सूरत में तेजी से घटे हैं।

कोविड-19 एक नया वायरस है। इसका अब तक कोई टीका नहीं बना है। लेकिन बुनियादी स्वच्छता और रोकथाम के उपाय बहुत मायने रखते हैं। भारत में केरल की काफी प्रशंसा हुई है कि उसने कोविड-19 के मामलों को कैसे संभाला है। लेकिन हर भारतीय राज्य केरल नहीं है, जिसके पास साक्षर आबादी और उत्कृष्ट स्वास्थ्य प्रणाली है। अगर इस वायरस का संक्रमण सामान्य आबादी में फैलता है, तो रोकथाम के उपाय बेहद महत्वपूर्ण होने वाले हैं, क्योंकि ज्यादातर राज्यों में स्वास्थ्य प्रणाली उतनी मजबूत नहीं है। तेज शहरीकरण ने कमजोर शहरी स्वास्थ्य प्रणालियों पर जिस तरह दबाव बनाया है, उसमें महामारी को कैसे रोकना है, सिर्फ यह जानना पर्याप्त नहीं है, लगातार सतर्कता और क्रियान्वयन ही सब कुछ है।

Reference: Amar Ujala

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