स्वास्थ्य बीमा की छतरी (Health Insurance and NHPS)

 

#Amar_Ujala

किसी भी देश को आप कई नजरिये से देख सकते हैं। उसमें से एक तरीका मुल्क के आम नागरिकों के स्वास्थ्य की स्थिति को देखना है। लोग कितने स्वस्थ या बीमार हैं, यह किसी राष्ट्र की प्राथमिकता को दर्शाता है। देश में रहने वाले हाशिये के लोगों, कमजोरों, महिलाओं और बच्चों का किस तरह से इलाज किया जाता है, यह राष्ट्र की स्थिति को बताता है। दुनिया में कहीं भी जिनके पास धन है, वे बेहतर चिकित्सा हासिल कर सकते हैं। लेकिन उन लोगों का क्या, जिनके पास धन नहीं है? उनकी स्थिति क्या है?
भारत में हर वर्ष लाखों लोग भारी चिकित्सीय खर्च के कारण कर्ज में डूब जाते हैं और नितांत गरीबी में चले जाते हैं, जिन्हें अपनी जेब से इलाज खर्च का भुगतान करना पड़ता है। इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से स्वास्थ्य शायद ही कभी शीर्ष राजनीतिक मुद्दा रहा है। लेकिन अच्छी बात है कि स्थितियां अब बदल रही हैं।

इस बार स्वतंत्रता दिवस के दिन लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हम देश के गरीबों को गरीबी के चंगुल से मुक्त कर दें, जिसके कारण वे स्वास्थ्य देखभाल का खर्च नहीं उठा सकते। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार आयुष्मान भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना शुरू कर रही है। औपचारिक रूप से इस योजना की शुरुआत 25 सितंबर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर होगी और इसका इरादा भारी स्वास्थ्य खर्च के समय देश के अत्यंत गरीबों को खर्च की लगभग आधी रकम की मदद करना है।

इस स्वास्थ्य बीमा का ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना अभियान’ कहा जाएगा।

  • आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा
  • उद्देश्य 10.74 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को प्रति वर्ष अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रति परिवार पांच लाख रुपये का नकदविहीन स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराना है,
  • पहचान सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना, 2011 के आधार पर की गई है। जब इसे पूरी तरह से क्रियान्वित किया जाएगा, तो उम्मीद है कि इस योजना से 50 करोड़ लोग लाभान्वित होंगे।

भारत जैसे देश में स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने के केंद्र सरकार के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं जता सकता है, लेकिन इसको लेकर कुछ सवाल जरूर जेहन में उभरते हैं। आयुष्मान भारत के दूसरे घटक के साथ क्या हो रहा है? जब इस वर्ष पहली बार इसकी घोषणा की गई थी, तो इसका भी जिक्र किया गया था कि बाह्य रोगियों को मुफ्त सलाह, दवाएं और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए पूरे देश में 1,50,000 स्वास्थ्य व कल्याण केंद्र स्थापित किए जाएंगे। लेकिन हाल के दिनों में इस योजना के इस पहलू के बारे में ज्यादा बातें नहीं हो रही हैं, जो प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत बनाने से संबंधित है।

Need to strengthen Primary Health Care:

अगर नींव (प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र) को मजबूत बनाए बिना गरीब मरीजों का तृतीयक अस्पतालों में सर्जरी के लिए बीमा किया जाता है, तो आगे क्या होगा?

इस संबंध में, इस साल की शुरुआत में ग्रामीण भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रीय परामर्श में दर्जनों स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किया गया विचार-विमर्श अत्यंत प्रासंगिक है। उस कार्यक्रम की रिपोर्ट, जिसे एकेडमी ऑफ फैमिली फिजिशियन ऑफ इंडिया द्वारा वोनका (पारिवारिक चिकित्सकों का विश्व संगठन) ग्रामीण स्वास्थ्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, नीति आयोग, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, बेसिक हेल्थ केयर सर्विसेज (बीएचएस) के सहयोग से आयोजित किया गया था, कई प्रासंगिक सुझाव देती है। उसका एक महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि:

  • प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के तहत केवल तभी लोगों को स्वास्थ्य बीमा का हकदार बनाया जाए, जब उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) द्वारा रेफर (अग्रसारित) किया जाए।
  • स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की गेटकीपिंग व्यवस्था से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की उपयोगिता बढ़ाने में मदद मिलेगी और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की प्रधानता बनी रहेगी। इससे अनावश्यक रेफरल को कम करके खर्च घटाने में भी मदद मिलेगी।

स्वास्थ्य सुधारों के बारे में बात करते समय प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की प्राथमिकता पर जोर देना क्यों आवश्यक है? इसका सीधा कारण है। जैसा कि भारत के अग्रणी जैवचिकित्सा वैज्ञानिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य के पैरोकार डॉ एम के भान स्पष्ट रूप से कहते हैं-‘प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सौ मंजिली इमारत की अनिवार्य पहली तीन मंजिल है।’ इसकी जड़ में यह अवधारणा है कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा बीमारियों की रोकथाम करती है, जिससे लोगों को खुशहाल, सफल और उत्पादक जीवन जीने में मदद मिलती है। इस तरह की व्यवस्था शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी आवश्यक है।

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत बनाने के लिए राज्यों को अपनी भूमिका निभानी होगी, दुर्गम इलाकों में गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की पेशकश करते हुए राज्य की क्षमता के पूरक के तौर पर कई डॉक्टर एक साथ मिलकर गैर-लाभकारी स्टार्ट-अप बना रहे हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण है उदयपुर स्थित बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल सेवा (बीएचएस) है, जो अमृत क्लीनिक नामक केंद्रों के नेटवर्क के जरिये दक्षिणी राजस्थान के दुर्गम और ग्रामीण इलाकों में कम खर्च में उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा रहा है। यह एक आशाजनक संकेत है और उम्मीद है कि और ज्यादा लोग और संस्थान प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत बनाने में सरकार की मदद के लिए आगे आएंगे, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।

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