देश में गैरबराबरी और भूख

Recent death in Jharkhand shows administrative apathy. This article can be used in Governance and Ethics

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Recent Context

कुछ ही दिन पहले झारखंड के सिमडेगा जिले में संतोषी नाम की बच्ची की भूख से हुई मृत्यु कई बड़े-बड़े राजनीतिक दावों को झुठलाती है. हालांकि, मलेरिया और भूख के कारणों के बीच ही पूरा मुद्दा केंद्रित हो गया. लेकिन, यह बदलते समय में बुनियादी जरूरतों की पहुंच व उपलब्धता पर एक बड़ा सवाल है.

  • सिमडेगा झारखंड के दक्षिणी हिस्से में उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की सीमा पर जंगलों से घिरा सुदूरवर्ती नक्सल प्रभावित जिला है.
  • जलडेगा प्रखंड के जिस गांव की यह घटना है, उसकी दूरी जिला मुख्यालय से 50 किमी से भी ज्यादा है. यह दूरी इस घटना के लिए इसलिए भी मायने रखती है कि आधार कार्ड के लिंक न होने की वजह से पीड़ित परिवार को राशन न देने की बात डिजिटल समय में नेटवर्क के इस्तेमाल और उसकी उपलब्धता के मामले में प्रशासनिक नासमझी का बड़ा उदाहरण है.
  • पीड़ित परिवार को पहले सरकारी राशन मिलता था, लेकिन जब राशन के लिए आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया, तो वह परिवार राशन से वंचित हो गया. झारखंड के ऐसे लाखों परिवार आधार लिंक न होने की वजह से राशन आपूर्ति से वंचित हो गये थे.

Rules are important or Human life?

जमीनी हकीकत यह है कि सुदूरवर्ती जंगली क्षेत्रों को भी राजधानी के चकाचौंध वाले नियमों से चलना पड़ता है. जलडेगा जैसे गांव ‘डिजिटल इंडिया’ के नारे के लिए मजाक हैं. यहां सामान्य नेटवर्क और बिजली मिल जाये, यही बड़ी उपलब्धि होगी. यहां की जनता रोज ‘डिजिटल इंडिया’ की जिद के सामने प्रखंड कार्यालय और बैंक से खाली हाथ जंगली पगडंडियों में लौटने के लिए विवश होती है. ऐसे में अधिकारियों की यह जिद कि बिना आधार कार्ड के लिंक के राशन नहीं दिया जायेगा, घोर संवेदनहीनता तो है ही, यह उनकी जमीनी नासमझी भी है. जबकि, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि आधार कार्ड न होने की वजह से कोई सरकारी लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है.

  • विश्व खाद्य दिवस के आस-पास घटित यह घटना सवाल खड़ी करती है कि क्या सच में हम गरीब हैं? या सरकार की नीतियां हमें गरीब बनाती हैं और हमें भूखों मरने के लिए विवश करती हैं?
  • अभी तत्काल ही जारी ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2017’ के अनुसार, 119 देशों की सूची में भारत का स्थान 100वां है. पिछले वर्ष की तुलना में भारत की यह रैंकिंग और गिरी है. यानी भारत विश्व के सबसे भूखे टॉप-10 देशों की सूची में शामिल है.

Hunger Problem in India?

  • भारत सरकार की एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश के 93 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार हैं.
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के बावजूद भारत में दुनिया के भूखे लोगों की 23 फीसदी आबादी बसती है.
  • हमारे देश में खाद्यान्न उत्पादन की स्थिति बेहतर तो है, लेकिन इसके रख-रखाव की स्थिति दयनीय है. प्रत्येक वर्ष लाखों टन आनाज भंडारण की सुविधा न होने की वजह से बर्बाद हो जाते हैं. अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को फटकार लगाते हुए कहा भी है कि अन्न सड़ने से बेहतर है कि गरीबों में बांट दिये जायें. इसके बावजूद न ही राजनेताओं को और न ही ब्यूरोक्रेसी को कोई हवा लगती है.

Digitisation & Social Revolution

  • एक ओर हम तेजी से डिजिटलीकरण की दिशा में बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट बताती है कि हम भूख के आंकड़ों में तेजी से नीचे गिरते जा रहे हैं. यह अजीब विडंबना है. हमारी बुनियादी जरूरत है- रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि. आज भी आम जनता इससे वंचित है. लेकिन, इनको उपलब्ध कराने के बजाय देश की राजनीति जिस कथित ‘विकास’ के जुमलों पर टिकी हुई है, उसका कोई ओर-छोर दिखायी नहीं दे रहा है.
  • आज मेट्रो सिटी, बड़े शहर, कस्बों और सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के बीच का भेद बढ़ता जा रहा है. यह भेद हमारी बुनियादी जरूरतों और जीवनशैली का भेद तो है ही, अब यह सामान्य नेटवर्क, 2जी, 3जी, 4जी और नेक्स्ट जेनेरेशन के भेद के साथ डिजिटलाइज्ड हो गया है.
  • आजकल सरकारी योजनाओं, बैंकिंग की सेवाओं, सामान्य से सामान्य प्रवेश परीक्षाओं एवं प्रतियोगिता परीक्षाओं के ऑनलाइन होने और उसका कोई ऑफलाइन विकल्प नहीं होने से सुदूरवर्ती क्षेत्रों में नयी समस्या खड़ी हुई है. सुदूरवर्ती इलाकों में अब भी नेटवर्क की उपलब्धता नहीं है. यह सिर्फ आधार कार्ड के बनने या लिंक होने का मामला नहीं है. कंप्यूटर और साइबर के इस्तेमाल को लेकर भी है. क्या यह बात भी चिंता के केंद्र में आयेगी कि इंटरनेट की सर्फिंग स्पीड और प्रशासन की वर्किंग स्पीड का तालमेल कैसे बनेगा?

आमतौर पर ऐसी घटनाओं को कभी-कभार होनेवाली घटना मानकर उसे नजरंदाज करने की कोशिश होती है. संतोषी कुमारी की मृत्यु भूख से हुई है, बीमारी से हुई है, अशिक्षा से हुई है, गरीबी से हुई है. डिजिटल इंडिया के शोर से बुनियादी समस्याएं नहीं दबायी जा सकती हैं.

यह बात समाज को स्वीकार करना चाहिए और उसे अपनी सरकारों से, अपने प्रतिनिधियों से, नौकरशाहों से और खुद से सवाल करना चाहिए. दुनिया के अमीरों की सूची में बढ़ते भारतीय अमीरों की उछाल के बीच में हमें यह कहने का साहस रखना चाहिए कि हमारा देश न तो अमीरों की ऐशगाह है, और न ही गरीबों की कब्रगाह.

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