Intercaste marriages will help in curbing caste prejudice in society
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समाज में जाति के आधार पर होन वाले भेदभाव और विभाजन को दूर करने में अंतरजातीय विवाह काफी मददगार हैं। समाज में जैसे- जैसे अंतरजातीय विवाहों की संख्या बढ़ेगी वैसे ही धीरे-धीरे जातिगत पूर्वाग्रह कम होते जाएंगे।
- केंद्र सरकार ने सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए दलित युवक या युवती से विवाह करने पर सरकार से मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए अधिकतम आय की सीमा हटा ली है। इससे अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा मिलेगा और अधिक से अधिक लोगों को इसका फायदा मिल सकेगा।
- वर्ष २०१३ में डॉ. अंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटीग्रेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज के नाम से यह योजना शुरू की गई थी। सरकार चाहती थी इस योजना के जरिए अंतरजातीय विवाह करने वालों को बढ़ावा मिले और उन्हें इस योजना के जरिए आर्थिक संबल भी मिले। पर इस योजना के तहत आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए आय पांच लाख से अधिक न होने की शर्त लगा दी गई थी जिसके कारण बहुत से नवविवाहित जोड़े इस योजना का लाभ नहीं ले पाते थे।
कुछ लोग अधिकतम आय सीमा समाप्त करने के समय को लेकर सवाल उठा रहे हैं और इसे चुनावी राजनीति से जोड़ रहे हैं जो उचित नहीं है। समाज में जातिगत भेदभाव दूर करने और समरसता, भाईचारे को बढ़ाने वाली चीजों को तो कम से कम राजनीति से दूर ही रखा चाहिए। इससे संपूर्ण समाज को फायदा होगा। समाज में जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है या जाति के आधार पर समाज विभाजित है, उस भेदभाव और विभाजन को दूर करने में अंतरजातीय विवाह काफी मददगार हैं।
समाज में जैसे- जैसे अंतरजातीय विवाहों की संख्या बढ़ेगी वैसे ही धीरे-धीरे जातिगत पूर्वाग्रह कम होते जाएंगे। इसलिए समाज को होने वाले फायदे को राजनीतिक चश्में से देखना गलत है। जहां तक इस कदम से गुजरात चुनाव में राजनीतिक फायदा लेने या दलितों को राजी करने के प्रयास की बात है तो वो जमीनी सच्चाई से दूर है। दलित कोई जाति नहीं है बल्कि यह जातियों का समूह है। इसमें कई जातियों शामिल होती हैं और हर जाति की अपनी- अपनी समस्याएं और मुद्दे होते हैं जिनके आधार पर वे वोट करती हैं।
एक मुद्दे पर सभी जातियां शायद ही कभी वोट करती हों। इसलिए राजनीतक समर्थन पाने के लिए कार्य करने की बात गलत है। यह समाज के हित में लिया गया फैसला है और इसे उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। इस फैसले पर राजनीतिक बहस करने की बजाए सामाजिक बहस होनी चाहिए कि आखिर ऐसे फैसले क्यों लेने पड़ रहे हैं? हमारा समाज इनको स्वीकारने के लिए कितना तैयार है? क्यों अंतरजातीय विवाह कम संख्या में हो रहे हैं? समाज में अंदर तक बैठी हुई जातिगत मानसिकता को दूर करने जैसे मुददों पर बहस का समय है।