अराजकता के विरुद्ध : खाप 

SC has come down heavily on KHAP and directed government to take strong action on these Kangaroo Courts.


#नवभारत टाइम्स
वैवाहिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उसने कहा कि खाप पंचायत या कोई भी व्यक्ति या संगठन अगर किसी बालिग लड़के-लड़की को शादी करने से रोकता है या किसी भी रूप में शादी का विरोध करता है तो यह गैरकानूनी है।


    खाप पंचायतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई न करने के लिए कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और कहा कि अगर केंद्र सरकार इन पर प्रतिबंध लगाने में सक्षम नहीं है तो अदालत को ही कदम उठाने होंगे। 
    सुप्रीम कोर्ट एनजीओ ‘शक्ति वाहिनी’ की याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें ऑनर किंलिंग जैसे मामलों पर रोक लगाने के लिए गाइडलाइन बनाने की मांग की गई है।

यह निश्चय ही देश के अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं और तमाम तरक्कीपसंद लोगों की जीत है, जो खाप पंचायतों की अंधेरगर्दी के खिलाफ लंबे समय से संघर्षरत रहे हैं।
हरियाणा, उत्तर प्रदेश और देश के कुछ अन्य राज्यों में सक्रिय ये खाप पंचायतें तमाम नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए आए दिन अजीबोगरीब आदेश जारी करती रहती हैं। पिछले कुछ सालों से इन्होंने प्रेम विवाह करने वाले युवा जोड़ों को अपना निशाना बना रखा है। इन पर युवाओं को प्रताड़ित करने, उनके खिलाफ मौत का फरमान जारी करने और लोगों को उनकी हत्या के लिए उकसाने के आरोप लगे हैं। दरअसल ज्यादातर मामलों में इन पंचायतों की सोच मध्ययुगीन है और सामाजिक बदलाव को ये स्वीकार नहीं करतीं। खासकर स्त्री की आजादी को तो ये बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पातीं। विडंबना यह है कि प्रशासन इनकी हरकतों पर प्राय: मूकदर्शक बना रहता है। राजनीतिक नेतृत्व इन पंचायतों से टकराव में जाने से बचता है क्योंकि इनके प्रतिनिधि कुछ सामाजिक समूहों पर काफी प्रभाव रखते हैं, जो चुनावी गणित को प्रभावित कर सकते हैं।
राजनेताओं को लगता रहा है कि लोग पंचायतों की बातों को आंख मूंदकर मानते हैं, पर सचाई यह है कि लोग अलग-थलग पड़ जाने के भय से इनके खिलाफ बोलने से बचते हैं। यही वजह है कि इनकी मनमानी ज्यादातर मामलों में चल जाती है। कुछ नौजवानों को समाज का विरोध झेलना पड़ा, कुछ को जान से हाथ धोना पड़ा। लेकिन समाज के प्रबुद्ध वर्ग द्वारा बार-बार आवाज उठाने के बाद अदालत ने अपने स्तर पर पहल की। अगर जुडिशरी इस मामले में आगे नहीं आती तो इन पर शिकंजा कसना लगभग नामुमकिन था। यह सिलसिला आगे भी जारी न रहे, इसके लिए सरकार को वक्त की नजाकत को भी समझना चाहिए। एक जनतांत्रिक व्यवस्था में कोई भी संस्था कानून और संविधान से ऊपर नहीं हो सकती। कोर्ट की व्यवस्था को जमीन पर उतारते वक्त यह नहीं भूलना चाहिए कि घरों की चारदीवारी के भीतर भी कई लोग खाप पंचायत की मानसिकता लिए बैठे हैं। सरकार को अपनी मर्जी से शादी करने वाले बालिगों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस सिस्टम बनाना होगा।

UPSC 2015

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