शहरों से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं के कामकाजी होने का सच

 

#Satyagriha

Some facts related to labour force Participation

राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (एनएसएस) की एक हालिया रिपोर्ट में कई हैरान करने वाले तथ्य हैं.

  • पहला तो यही कि आर्थिक विकास के बावजूद देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी घटी है.
  • 2004-05 से लेकर 2011-12 के बीच देश में लगभग दो करोड़ कामकाजी महिलाओं ने काम छोड़ दिया.
  • कुछ समय पहले अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी से भी कुछ इसी तरह की रिपोर्ट सामने आई थी. उसके अनुसार 2017 के शुरुआती चार महीनों में कामकाजी लोगों में नौ लाख से ज्यादा पुरुष जुड़े, जबकि इसी दौरान कामकाजी महिलाओं की संख्या में 24 लाख की कमी देखी गई. .
  • इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक जी-20 देशों में कामकाजी महिलाओं की संख्या के हिसाब से सिर्फ सऊदी अरब ही भारत से पीछे है.
  • 2013 में दक्षिण एशिया में महिला रोजगार के मामले में भारत सिर्फ पाकिस्तान से ही आगे था.
  • भारत में कुल कामकाजी महिलाओं का लगभग 81 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं हैं. इसमें स्थाई और अस्थाई दोनों तरह की कामगार शामिल हैं. गांवों में काम करने वाली लगभग 56 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं. वहीं शहरी इलाकों में काम करने वाली कुल महिलाओं में 28 फीसदी अशिक्षित हैं

कुल कामकाजी महिलाओं में 81 फीसदी ग्रामीण और उसमें भी ज्यादातर महिलाओं का निरक्षर होना दो संभावनाओं की तरफ इशारा करता है. एक, या तो भारत में शिक्षित और सक्षम महिलाओं से ज्यादा निरक्षर और अकुशल महिलाओं की मांग ज्यादा है (क्योंकि वे पुरुषों की अपेक्षा सस्ती श्रमिक होती हैं) या फिर कुशल महिलाओं के पास काम करने के विकल्प निरक्षर महिलाओं से काफी कम हैं.

Marriage & Employment

असल में जो शिक्षित शहरी महिलाएं नौकरी करना चाहती हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहती हैं उन्हें अक्सर ही शादी के बाद काम करने की आजादी नहीं होती. कई बार तो शादी के बाद जगह बदलने के कारण खुद ही उनकी नौकरी छूट जाती है. और बहुत बार ससुराल वालों को ही अपनी बहू का नौकरी करना स्वीकार नहीं होता.

  • शादी के बाद काम करने के मामले में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति शहरी महिलाओं से ज्यादा अच्छी है. एनएसएस के शोध के अनुसार शादी ग्रामीण महिलाओं के कामकाजी होने में बाधा नहीं बनती. बल्कि ग्रामीण इलाकों में अविवाहित से ज्यादा विवाहित महिलाएं ही काम करती हैं. जबकि शहरों में आज भी विवाह के बाद तेजी से काम छोड़ने का पुराना चलन ही प्रचलित है.
  • लेकिन इन ग्रामीण महिलाओं का काम करना यह कतई नहीं दर्शाता कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. असल में वे सभी महिलाएं सिर्फ परिवार की आर्थिक मजबूती को बढ़ाने के लिए ही काम करती हैं. जानकारों का मानना है कि गांवों में महिलाओं का काम करना परिवार की आय बढ़ाने की मजबूरी से जुड़ा है, न कि उनकी काम करने की इच्छा से.
  • यह कितनी बड़ी विडंबना है कि देश में शिक्षित, उच्च शिक्षा प्राप्त या फिर तकनीकी शिक्षा प्राप्त अधिकांशत महिलाएं आज भी नौकरियां नहीं कर पा रही हैं. भारत में कामकाजी महिलाओं से जुड़ा सबसे क्रूर सच यह है कि यहां सबसे ज्यादा शिक्षित, सक्षम और काम करने की इच्छा रखने वाली महिलाएं तो नौकरियां नहीं कर पा रही हैं. लेकिन परिवार के आर्थिक दबाव के चलते निरक्षर महिलाएं कुछ भी चाहा-अनचाहा, कम पैसे वाला काम करने को विवश हैं.
  • यह बेहद अफ़सोस की बात है कि जहां बोर्ड की हाई स्कूल और इंटर की परीक्षाओं में पिछले कई सालों से लड़कियां टॉप कर रही हैं, वहीं उच्च शिक्षा और नौकरी करने में वे लड़कों/पुरुषों की अपेक्षा जरा भी नहीं टिक रहीं. नार्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी के एक शोध में तो यह भी सामने आया है कि निरक्षर की अपेक्षा हाई स्कूल तक पढ़ी-लिखी लड़कियों को काम करने के ज्यादा अवसर मिलते हों, ऐसा व्यवहार में देखने को नहीं मिलता.
  • महिला रोजगार की दर में गिरावट के कई कारण नजर आते हैं. जैसे काम करने लिए घर के मुखिया की अनुमति न मिलना, पत्नी की कमाई को शर्म का विषय मानना, शादी के बाद जगह बदलना या फिर बच्चों या अन्य पारिवारिक वजहों से काम छोड़ना. आश्चर्य का विषय यह है कि विचारों, जीवन शैली, खान-पान, पहनावे आदि हर चीज में आधुनिक होने के बाद भी महिलाओं के कामकाजी होने को लेकर समाज में आज भी पुरानी ही सोच प्रचलित है.
  • इन सबसे अलग एक अन्य कारण भी खासतौर से शहरी महिलाओं के काम करने के गिरते प्रतिशत के लिए जिम्मेदार नजर आता है. यह है यौन हिंसा. हालांकि इससे जुड़े कोई साफ आंकड़े नहीं हैं कि बढ़ती हुई यौन हिंसा भी लड़कियों/महिलाओं के काम छोड़ने या काम पर न ही जाने देने का एक बड़ा कारण बन रही है. लेकिन इस संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता, कि सार्वजनिक जगहों और कार्यस्थल पर बढ़ रही यौन हिंसा की घटनाओं ने शहरी महिलाओं को काम छोड़ने या काम पर न ही जाने के लिए मजबूर जरूर किया है.
  • वैसे कार्यस्थल पर यौन शोषण एक ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जिसका सामना हर जगह की महिलाओं को करना होता है, फिर चाहे वह गांव हो या शहर या फिर महानगर. लेकिन तुलनात्मक रूप से इस मामले में शहरी महिलाओं को ग्रामीण महिलाओं से ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. एक अन्य बात यह भी है कि ठीक आर्थिक स्थिति वाले घरों में, कार्यस्थल पर यौन शोषण की घटना की खबर सुनने के बाद इस बात की प्रबल संभावना होती है कि फिर से महिला को काम पर न ही भेजा जाए. जबकि कमजोर आर्थिक स्थिति वाले घरों में महिलाओं पर कैसी भी असुविधाजनक और अनचाही परिस्थितियों में काम करते जाने का दबाव होता है.
  • कुल मिलाकर पितृसत्तात्मक सोच, महिलाओं की आर्थिक आजादी के प्रति लापरवाही, पुरुषों के महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और यौन हिंसा मिलकर महिलाओं की कामकाजी क्षमता को सबसे ज्यादा नकारात्मक तरीके से प्रभावित करने वाले कारक हैं.

असल में हमारा समाज अभी भी महिलाओं की आर्थिक आजादी के प्रति न तो सचेत है और न ही प्रतिबद्ध. ऐसे में महिला साक्षरता दर में वृद्धि, लड़कियों के साल दर साल स्कूलों में टॉप करने और उच्च शिक्षा में लड़कियों की बढ़ती भागीदारी के कोई मायने नहीं हैं. शिक्षित, सक्षम और हुनरमंद महिलाओं का नौकरी न कर पाना न सिर्फ उनकी आर्थिक आजादी और व्यक्तित्व विकास के लिए एक भारी क्षति है, बल्कि अर्थव्यवस्था के विकास की नजर से भी यह बहुत नुकसानदायक है

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download