#Dainik_Tribune
मासूमों के साथ बलात्कार की घटनाओं के मद्देनजर हाल ही में केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार करने वालों को मौत की सजा का प्रावधान कर दिया। मौत की सजा लागू हो जाने के बावजूद इसी सप्ताह हरियाणा व चंडीगढ़ में मासूमों के साथ रेप तो हुआ ही, उनकी हत्या भी कर दी गई। नीति-नियामकों, विधिवेत्ताओं, शासन-प्रशासन और पुलिस से लेकर समाज के जिम्मेदार लोगों तक के लिए यह गंभीर चिंता और सोच-विचार की घड़ी है कि महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर मौत की सजा तय कर दिये जाने के बावजूद बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी क्यों नहीं हो रही है। दोष हमारी व्यवस्था में है, सामाजिक तानेबाने में या फिर दोषियों की पकड़-धकड़, प्राथमिकी दर्ज होने से लेकर थाना, पुलिस, अदालत तक न्याय की सीढ़ी में ही फिसलन की कोई गुंजाइश बनी हुई है, जिसके चलते मौत की सजा का खौफ भी बलात्कारी की मानसिकता पर हावी नहीं हो पा रहा है। रेप के केसों में इससे कड़ी सजा दूसरी कोई हो ही नहीं सकती कि 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने वालों को फांसी पर चढ़ा दिया जाए। सरकार के इस निर्णय का मकसद यह था ताकि सजा के डर से लोग नाबालिग और मासूम लड़कियों के साथ घृणित कार्य करने से डरें।
तो क्या सजा के डर से हम अपराधों को रोक पाएंगे या फिर हमें दूसरे उपायों को देखना पड़ेगा। अगर हम हरियाणा के संदर्भ में देखें तो महिलाओं और लड़कियों के लिए हरियाणा में वह सम्मान अभी तक नहीं मिल पाया है, जिसकी वे अधिकारी हैं। हाल ही में हरियाणा में दो विभिन्न केसों में नाबालिग बालिकाओं की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। प्रश्न फिर से उठने लगा है कि कहीं कठिन सजा के डर से अपनी पहचान छुपाने के लिए अपराधियों ने यह कृत्य तो नहीं किया। साथ ही यह भी एक मुद्दा है कि सजा का डर इन अपराधियों को क्यों नहीं सुधार पा रहा है। इन अपराधों का कारण चाहे नशे की लत हो, विकृत मानसिकता हो या फिर कानून से बच निकलने का विश्वास, इसकी विवेचना करनी पड़ेगी। इन केसों को लेकर हमें अपने पुलिस सिस्टम पर भी गौर करना पड़ेगा। कानून की पकड़ इतनी ढीली क्यों हो रही है और लोग उसे इतने हल्के में क्यों ले रहे हैं, इसकी विवेचना अति आवश्यक है