India has big problem of malnutrition and for inclusive growth we need to overcome it.
#Nai_Duniya
राष्ट्रीय पोषण कार्यनीति का एलान करते हुए नीति आयोग ने माना है कि कुपोषण देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की तर्ज पर बनाई गई इस पोषण रणनीति के तहत पोषण को राष्ट्रीय विकास एजंडे का हिस्सा बनाने की बात है, ताकि कुपोषित बच्चों के लिए जो भी काम हों, उनका फायदा बच्चों तक पहुंचे। 2030 तक देश से हर तरह का कुपोषण खत्म कर देने का संकल्प लेकर तैयार की गई इस कार्यनीति में पोषण को विकास का आधार बताते हुए कहा गया है कि:
- यह गरीबी को नीचे लाने और आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- कुपोषण से मुकाबला करने के इस अभियान में नीति आयोग के साथ देश के सभी राज्यों को बराबर का भागीदार बनाया जाएगा। पर इस चुनौती भरे मिशन पर अमल कराने का जिम्मा नौकरशाही पर ही है, इसलिए इसकी कामयाबी को लेकर संदेह हो सकते हैं।
- यह वाकई चौंकाने वाली और बेहद दुखदायी बात है कि 21वीं सदी के भारत में आज भी हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। जबकि एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम के नाम से दुनिया में कुपोषण निवारण की सबसे बड़ी योजना भारत में ही अरसे से चलाई जा रही है।
आखिर इस योजना का हासिल क्या है?
- 2015 तक जो सहस्राब्दी लक्ष्य प्राप्त करने थे उनमें से भारत एक भी हासिल नहीं कर पाया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि इस वक्त भारत में पांच साल से कम उम्र के 35.7 फीसद बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं और इस वजह से उनका वजन अपेक्षित औसत वजन से कम है।
- इतना ही नहीं, 15 से 49 साल के बीच की तिरपन फीसद से ज्यादा महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। सोचने वाली बात है कि जब बच्चों की जन्मदात्री खुद कुपोषण का शिकार होगी तो जन्म लेने वाले बच्चे कैसे स्वस्थ होंगे! निश्चित ही यह उस तबके की जमीनी हकीकत है जिसे न साफ पानी पीने को मिल पाता है न भरपेट खाना। पौष्टिक चीजें तो दूर की बात हैं इनके लिए। पर्याप्त भोजन और पीने के साफ पानी के अभाव में बड़ी संख्या में बच्चे बचपन से ही शारीरिक और मानसिक बीमारियों की जद में आ जाते हैं।
चाहे महानगर हों या दूरदराज के इलाके, देश के हर हिस्से में संक्रामक बीमारियों की मार सबसे ज्यादा कुपोषितों और वह भी खासतौर से बच्चों पर ही पड़ती है। संक्रामक बीमारियां फैलने की बड़ी और मूल वजह तो कुपोषण ही है।
जिस देश में बच्चे ही स्वस्थ नहीं होंगे, वह विकास क्या कर पाएगा! अगर भारत को कुपोषण-मुक्त बनाना है तो पहली जरूरत देश के हर नागरिक को साफ पानी, पर्याप्त पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का बीड़ा उठाने की है। और यह बड़ा चुनौती भरा काम है जो अपेक्षित संसाधन आबंटन व गहरी राजनीतिक इच्छाशक्ति की मांग करता है। लेकिन मौजूदा हकीकत यह है कि भारत की गिनती दुनिया के ऐसे देशों में होती है जहां स्वास्थ्य के मद में सरकारी खर्च सबसे कम है। जाहिर है, कुपोषण के खात्मे के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन में कारगर सुधार के साथ-साथ अपनी प्राथमिकताएं भी बदलनी होंगी।