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पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में शामिल करने के सबन्ध में टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘दण्डात्मक प्रावधान’ के दुरुपयोग होने की आशंका पर वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में नहीं लाना आधार नहीं हो सकता। केन्द्र सरकार का मानना है कि इससे विवाह संस्था भी ढह सकती है। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि इस पर तटस्थ होकर गहन विमर्श किया जाए।
किसी भी सामाजिक समस्या का हल सिर्फ कानूनवेत्ताओं के जरिए नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए मनोवैज्ञानिकों एवं समाजशास्त्रियों की राय भी जरूरी है।
वैवाहिक दुष्कर्म पर एक सिरे से राय बना लेना स्त्री-गरिमा के विरुद्ध होगा। उल्लेखनीय है कि न्यायालय में दायर याचिका में भारतीय दंण्ड संहिता की धारा 375 को चुनौती दी गई है जिसमें पति द्वारा अपनी पत्नी के जबरन शारीरिक संबंध को दुष्कर्म नहीं माना गया।
Some Fact: यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत में 15 से 49 वर्ष की दो तिहाई से अधिक महिलाओं को पति द्वारा यौन उत्पीडऩ का शिकार होना पड़ता है। विश्व के 76 देशों में वैवाहिक दुष्कर्म को दंडनीय अपराध माना गया है जिसमें नेपाल भी शामिल है। इसलिए ये मान लेना कि यह पश्चिमी देशों की परंपरा है, गलत सिद्ध होता है।
क्या स्त्री का स्वयं की देह पर कोई अधिकार नहीं है और अगर है तो क्या उसे विवाह बंधन में बंधने के बाद यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं कि वह बीमार या शारीरिक थकान से चूर होने की स्थिति में भी अपने पति से संबंध बनाने की अनिच्छा जाहिर कर सके? क्या किसी भी स्त्री के लिए ये सहज होगा कि अपने पति के साथ स्थापित संबंधों की खुले तौर पर शिकायत कर सके?
जिस देश में यौन दुष्कर्म को भी पुलिस थानों तक पहुंचाने में ‘प्रतिष्ठा’ की तमाम दुहाई अड़चन बन जाती है और खामोश रहना बेहतर समझा जाता है वहां वैवाहिक दुष्कर्म की झूठी शिकायत करना सहज प्रतीत नहीं होता। अगर वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मान लिया जाए तो क्या विवाह बचा रह पायेगा? वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक तथ्य घोषित करने और सजा का प्रावधान दूसरा चरण होना चाहिए।
आवश्यकता इस बात की ही है कि पत्नी इस तरह के कृत्य की शिकायत करे तो पति को परामर्श केन्द्र में ले जाने का प्रावधान हो। अगर फिर भी उसमें परिवर्तन न आए तो दंडात्मक कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि वृहद स्तर पर सर्वेक्षण किया जाए और इस संबंध में महिलाओं की राय ली जाए बजाए इसके कि त्वरित निर्णय हो।