This article talks about national medical commission bill
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National medical commission Bill and Bill to parliamentary committee
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक अब संसद की स्थायी समिति को भेजा जा चुका है। विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने का फैसला असल में भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) की तरफ से दी गई देशव्यापी हड़ताल की धमकी को देखते हुए किया गया है। करीब तीन लाख डॉक्टरों के संगठन आईएमए को आशंका है कि चिकित्सा क्षेत्र के नियामक की भूमिका भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह एनएमसी को सौंपने से निर्मम व्यवस्था शुरू हो जाएगी। हालांकि अपनी छवि सुधारने को लेकर बेफिक्र पेशे की चिंताओं को तो नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन यह चिंता जरूर है कि क्या भ्रष्टाचार से पस्त स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत सुधारने के लिए विधेयक में रचनात्मक प्रावधान किए गए हैं? वैसे विधेयक में इसे स्वीकार किया गया है कि एमसीआई के तहत बनी स्व-नियमन प्रणाली चिकित्सा व्यवसाय के सभी मोर्चों पर नाकाम रही है।
Health sector
Medical Education: भारत में प्राथमिक एवं तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की गुणवत्ता खुद ही अपनी कहानी बयां कर देती है। चिकित्सा की शिक्षा बहुत महंगी है, दुर्लभ है और इसका पाठ्यक्रम भी ऐसा है कि एक पूर्व स्वास्थ्य सचिव ने ‘बाजार में डॉक्टरों की भरमार के बावजूद उनके प्रशिक्षण को झोलाछाप डॉक्टरों से थोड़ा ही बेहतर’ बताया था। निस्संदेह मेडिकल कॉलेजों के भारी अभाव की स्थिति में नियमन की प्रक्रिया भी भ्रष्टाचार में डूबी रही है।
What bill proposes?
नए विधेयक में इन विसंगतियों को दूर करने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं।
पहला, एनएमसी एक छाते की तरह काम करने वाली नियामकीय संस्था होगी। इसमें केंद्र सरकार 25 सदस्यों की नियुक्ति करेगी जिनमें भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के प्रतिनिधि भी होंगे। यह आयोग स्नातक और परास्नातक चिकित्सा शिक्षा का नियंत्रण करने वाले दो निकायों की निगरानी करेगा।
एक निकाय मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा के स्तर पर नजर रखेगा जबकि दूसरा निकाय नीतिगत मसलों एवं पंजीकरण संबंधी मसले देखेगा।
National medical commission Bill चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए होने वाली राष्ट्रीय अर्हता एवं प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) का भी नियंत्रण करेगा और प्रैक्टिस करने की मंशा रखने वाले डॉक्टरों को लाइसेंस देने के लिए एक नई परीक्षा का भी आयोजन करेगा। इस विस्तृत ढांचे में अलग निकायों को शक्तियां दी गई हैं और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कई स्तरों पर नियंत्रण एवं संतुलन भी किया गया है।
Analysis?
सवाल यह है कि क्या विधेयक भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र की बड़ी खामियों पर काबू पाने में कामयाब हो पाएगा?
अनुभव तो यही कहता है कि नियामकीय संस्थाओं में सरकार की तरफ से की जाने वाली नियुक्तियां हमेशा बेहतर नियमन ही नहीं देती हैं।
ऐसे में स्थायी समिति एनएमसी को अधिक चाक-चौबंद करने के तरीके तलाशेगी ताकि जान-पहचान के आधार पर होने वाली नियुक्तियों से बचा जा सके। इसके अलावा एनएमसी को मिले ‘छाता’ दर्जे के चलते बड़े बदलाव कर पाने की उसकी शक्तियों पर भी संदेह होता है।
विधेयक के मुताबिक राज्यों को अपने यहां तीन साल के भीतर चिकित्सा परिषदों का गठन करना होगा। यह प्रावधान एक तरह से राज्यों को जिम्मेदारियों से राहत ही देता है।
चिंता की सबसे बड़ी बात वह सुझाव है जिसमें होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टरों को भी ‘ब्रिज कोर्स’ करने के बाद एलोपैथिक दवाएं लिखने की इजाजत देने की बात कही गई है। मसौदा समिति ने बड़ी आबादी के अनुपात में डॉक्टरों की कम संख्या को देखते हुए यह सुझाव दिया था लेकिन यह प्रस्ताव विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में किए गए विभाजन के मूलभूत सिद्धांत को ही नकारता है। जहां चिकित्सा नियामकीय व्यवस्था के कायाकल्प की जरूरत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, वहीं यह भी सच है कि एक दोषपूर्ण विकल्प केवल बीमारी बढ़ाने का ही काम करेगा।