महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण की मंशा थी कि गांव में शासन हो, प्रशासन नहीं। प्रशासन तो वहां अंग्रेजों के समय एवं उससे पहले से चल रहा था। गांवों में शासन हो, इसके प्रयास 73 वें संविधान संशोधन के जरिये किए थे। पर उसके बाद भी कोई खास सुधार नहीं हुआ।
पंचायतें शासन की इकाई नहीं बन पाईं, तो इसके दो कारण हैं।
- एक तो नेता नहीं चाहते कि पंचायतें शासन की इकाई बनें, क्योंकि वैसे में उनकी नेतागीरी हल्की पड़ जाएगी।
- दूसरा यह कि अधिकारी वर्ग अपने उच्च अधिकारियों के नियंत्रण में कार्य करता है, ताकि उनकी अच्छी प्रगति रिपोर्ट मिल सके, जिसके आधार पर उनकी तरक्की हो सके।वर्तमान में जीपीडीपी यानी ग्राम पंचायत विकास योजना बनाना चलन में है।
लेकिन धरातल पर अपवादों को छोड़कर ऐसा नहीं हो रहा है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं को न्याय मिल रहा है या नहीं, इस ओर ध्यान नहीं जाता। गांव में काम करने का मानदंड जाति है। पंचायती राज नियम-कायदे से नहीं, सरपंच एवं नौकरशाही के बलबूते पर चल रहा है। क्या पंचायतों द्वारा सामाजिक न्याय उनको मिल रहा है, जिनको चाहिए? क्या उन्हें पेंशन मिल रही है, जिन्हें मिलनी चाहिए? क्या आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चे जा रहे हैं? क्या जरूरमंदों को मकान मिल रहा है? शिक्षा अधिनियम एवं स्वास्थ्य अधिनियम में बारे में भी यही बात कही जा सकती है।
पंचायती राज व्यवस्था का मुख्य कार्य सामाजिक न्याय को अमल में लाना है। लेकिन यह संस्था इसे छोड़कर सारे काम करती है। पंचायती राज अधिनियम में जमीन, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, सामाजिक न्याय, महिला एवं बाल विकास आदि से संबंधित समितियां बनाने का प्रावधान है। महाराष्ट्र एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में तो आठ-दस समितियां है। ये समितियां संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेती हैं। उत्तर प्रदेश में पंचायती राज अधिनियम की धारा '28क' के अनुसार, पंचायतें भूमि के अतिरिक्त वन एवं वृक्षों, जलाशयों एवं तालाबों का अनुरक्षण एवं विकास भी करती हंै। इस समिति का प्रधान (सरपंच) अध्यक्ष होता है और लेखपाल सदस्य होता है। ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्य चाहें, तो मुद्दे सुलझाए जा सकते है। लेकिन होता क्या है? गांव का व्यक्ति, जिसे समिति के बारे में ज्ञान ही नहीं, तहसील में शिकायत करता है। तहसील से लेखपाल गांव में मुआयना करने आता है। जिसके विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज हुई है, वह लेखपाल से पूछता है कि वह क्या करे। लेखपाल सलाह देता है कि तुम भी शिकायत कर दो। इस प्रकार गांव में लड़ाई-झगड़ों और भ्रष्टाचार की शुरुआत हो जाती है।
अभी ग्राम पंचायत विकास योजना सभी ग्रामों में बननी है। इस योजना को वार्ड स्तर पर लागू करना चाहिए। वार्ड में जो पैसा लाना है, वह वार्ड सदस्य की देखभाल में लाना चाहिए। सरकार को आदेश निकालना चाहिए कि पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत सभी समितियों का गठन होना है, उनकी लगातार बैठकें होनी हैं और बैठकों की कार्यवाही ग्राम पंचायत की वेबसाइट पर अपलोड करनी है। अगर ऐसा नहीं किया, तो पैसा नहीं मिलेगा। गांव के अंदर शासन लाने की ओर यह महत्वपूर्ण कदम होगा। उत्तर प्रदेश में इसी वर्ष पंचायतों के चुनाव होने हैं। राज्य सरकार वार्ड सदस्यों को जिम्मेदारी दे कि वे अपने स्तर पर वार्ड की योजना बनाकर उसे ग्राम पंचायत की योजनाओं में शामिल करें। तभी गांव में वास्तविक शासन होगा।
Reference: Amar Ujala