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कश्मीर के युवाओं का केंद्रीय वार्ताकार के साथ मिलकर उनसे रोजगार उपलब्ध करवाने का मुद्दा उठाना यह दर्शाता है कि राज्य में बेरोजगारी किस कदर बढ़ रही है। चिंता का विषय यह है कि घाटी के कई युवाओं ने रोजगार न मिलने पर पाकिस्तान की शह पर आंतकवाद का रास्ता चुन लिया।
- ढाई दशक से जारी आतंकवाद के कारण हजारों युवक मौत के आगोश में समा चुके हैं। मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए इस पर केंद्र व राज्य सरकार दोनों को ही मंथन करने की आवश्यकता है। इस समय राज्य की जो स्थिति है वह किसी से छिपी नहीं है।
- गैर अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राज्य में इस समय छह लाख से अधिक बेरोजगार युवा हैं। इनमें डॉक्टर, इंजीनियर भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। यह सही है कि कुछ दिन पहले राज्य की मुख्यमंत्री ने भी युवाओं को रोजगार देने के लिए राज्य सेवा भर्ती बोर्ड और लोक सेवा आयोग को चयन प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश जारी किए थे।
- विचारणीय विषय यह है कि क्या मात्र दस से बीस हजार युवाओं को सरकारी नौकरी देकर बेरोजगारी की समस्या का समाधान संभव है?
- अब सरकारी नौकरी से आगे कौशल विकास की ओर जाने की जरूरत है। दो दिन पूर्व कश्मीर के दौरे पर आए भारतीय टीम के पूर्व कप्तान मोङ्क्षहद्र सिंह धौनी ने भी कश्मीर के युवाओं को रोजगार के लिए कई विकल्पों पर विचार करने की सलाह दी थी। विडंबना यह है कि अभी तक राज्य सरकारें पर्यटन को रीढ़ की हड्डी कह कर इसी क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध करवाने पर जोर देती आई हैं।
What to be done
बेहतर होगा अगर सरकार पर्यटन के साथ-साथ बागवानी, कृषि के अलावा उद्योग स्थापित करने पर भी जोर दे। इसके लिए यह जरूरी है कि मुख्यमंत्री स्वयं पहल कर बाहरी राज्यों के निवेशकों को यह विश्वास दिलाएं कि यहां पर हालात सामान्य हैं। अगर राज्य में उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा तो इससे बेरोजगारों को भी रोजगार मिलने में मदद मिलेगी। वहीं केंद्रीय वार्ताकार से भी युवाओं को उम्मीद है कि वह केंद्र व प्रदेश सरकार को युवाओं के लिए रोजगार और बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाने की मांग पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश करेंगे। रोजगार मिलने से युवाओं की ऊर्जा को भी सकारात्मक दिशा मिलेगी